A Hindu spiritual and ascetic discipline, a part of which, including breath control, simple meditation, and the adoption of specific bodily postures, is widely practised for health and relaxation. Yoga is a practical aid, not a religion. Yoga is an ancient art based on a harmonizing system of development for the body, mind, and spirit. The continued practice of yoga will lead you to a sense of peace and well-being, and also a feeling of being at one with their environment. This is a simple definition.
- In the practice of Yoga the ultimate aim is one of self-development and self-realization.
- Yoga is a group of physical, mental, and spiritual practices or disciplines which originated in ancient India.
- There is a broad variety of Yoga schools, practices, and goals in Hinduism, Buddhism, and Jainism. Among the most well-known types of yoga are Hatha yoga and Raja yoga.
About Yoga Definations:
A Hindu theistic philosophy teaching the suppression of all activity of body, mind, and will in order that the self may realize its distinction from them and attain liberation.
Derived from the Sanskrit word yuj, Yoga means union of the individual consciousness or soul with the Universal Consciousness or Spirit. Yoga is a 5000-year-old Indian body of knowledge. Though many think of yoga only as a physical exercise where people twist, turn, stretch, and breathe in the most complex ways, these are actually only the most superficial aspect of this profound science of unfolding the infinite potentials of the human mind and soul. The science of Yoga imbibes the complete essence of the Way of Life.
About Yoga Conclusion:
One of the beauties of the physical practice of yoga is that the poses support and sustain you no matter how old or young, or fit or frail, you come to your mat. As you age, your understanding of asana becomes more sophisticated. You move from working on the external alignment and mechanics of the pose to refining the inner actions to finally just being in the asana.
Yoga has never been alien to us. We have been doing it since we were a baby! Whether it is the Cat Stretch that strengthens the spine or the Wind-Relieving pose that boosts digestion, you will always find infants doing some form of yoga throughout the day. Yoga can be many things to many people. We are determined to help you discover your “Yoga Way of Life!”
The Parts of Yoga:
According to Ashtang Yoga it has classified in eight parts.
- Yama [moral codes]- It is a life discipline which is concerned with human beings. This shows the practice, non-violence, avoid stealing, sacrifice and piousness.
- Niyaman [self-purification and study]- It is the posture related to physical discipline. This shows the purity of health, mind satisfaction and worship of god. Practice of purity of body is observed in this.
- Asana [posture]- It means to keep the body in a certain position for a long. for example to keep the back bone straight, limbs to a certain position etc.
- Pranayam [breath control]- About Yoga is a process of systematic breathing.
- Pratyahara [sense control]- To concentrate on god leaving own mind and organs apart.
- Dharana [concentration]- This means to concentrate mind to a certain aim. This creates a great energy and fulfils the desire.
- Dhyana [meditation]- This is the condition in which one has to forget the worldly desire and the mind is set on god.
- Samadhi [absorption into the Universal] – The body absorbed in the soul during this practice.
- Note: First four parts are meant for family persons and next four are for hermits and sages.
“योग” ‘युज’ शब्द धातु से बना है। इसका अर्थ है “मिलाना, जोड़ना“ दो वस्तुओं का मिलना ही योग कहलाता है। शरीर में प्राण को अपान से मिलाना ही योग है। प्राण ह्रदय में स्थित होते है और अपान गुदा में स्थित होता है। इन दोनों को योग कर सहस्त्र चक्र में इसको ले जाना ही योग है।
योग की परिभाषाएं:
भारत के विद्वानों ने आत्मशक्ति द्वारा संसार को योग विज्ञान से परिचित करवाया और उन में यह बताया कि मनुष्य का शरीर तथा मन एक दूसरे से अलग है। यह उसे अलग अलग दिशा में खींचते है जिसके कारण मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास रुक जाता है। शरीर तथा मन को एकाग्र करके परमात्मा से एक सुर होने के मार्ग को योग नाम से जाना जाता है।
योग वह क्रिया है, जिसके द्वारा हम अपनी आत्मा को परमात्मा से मिला सकते है। प्रसिद्ध विद्वान् महर्षि पतंजली ने योगशास्त्र में लिखा है, “योगीश्चित वृत्ति निरोध।” साधारण शब्दों में, चित्त की वृत्ति के निरोध का नाम योग है। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों को रोकता है और मन की स्थिरता को प्राप्त करना ही योग साधना है।
श्री व्यास जी ने लिखा है, “योग का अर्थ समाधी है।” योग शब्द बहुत समय से प्रचलित है। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता में कहा है, “योग: कर्मसु कौशलं।“ दूसरे शब्दों में कर्मो में कुशलता अर्थात कार्यकुशलता ही योग है। रामायण तथा महाभारत युग में भी इस शब्द का काफी प्रयोग हुआ है। इन पवित्र ग्रन्थों में योग द्वारा मुक्ति प्राप्त करने के विषय में विस्तार पूर्वक लिखा हुआ है। डाक्टर सम्पूर्णानन्द के अनुसार “योग आध्यात्मिक कामधेनु” है, जिस से जो मांगो वह मिलता है।
निष्कर्ष:
योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। मानव शरीर स्वस्थ तथा मन शुद्ध होने से उसका परमात्मा से मेल हो जाता है। योग द्वारा शरीर निरोग हो जाता है और मन की एकाग्रता बढती है, जिससे आत्मा तथा परमात्मा का मेल आसान हो जाता है। योग विज्ञान द्वारा मनुष्य शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण विकास कर लेता है। इस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मेल योग है। इस मधुर मेल का माध्यम शरीर है। स्वस्थ तथा शक्तिशाली शरीर के कारण ही आत्मा का परमात्मा से मेल हो सकता है और उस सर्व शक्तिमान प्रभु के दर्शन हो सकते है। योग शरीर को स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाता है जिस कारण योग आत्मा तथा परमात्मा के मेल का बड़ा साधन है। ईश्वर अलौकिक गुण, कर्म तथा विद्यायुक्त है। वह आकाश के समान व्यापक है। इसलिए जीव तथा ईश्वर में एक दूसरे से सम्बन्ध होना आवश्यक है। योग इन सम्बन्धों को दृढ करने में सहायक है। मनुष्य का लक्ष्य संसार में सारे सुखों को प्राप्त करते हुए अंत में इस जीव आत्मा का परमात्मा के साथ एकीकरण करना है ताकि वह आवागमन के चक्कर से छुटकारा पा कर मुक्ति प्राप्त कर सके।
योग के अंग:
अष्टांग योग के अनुसार निम्नलिखित आठ अंग बताए है–
- यम : इसमें अनुशासन के वे साधन सम्मिलित है जो मनुष्य के मन से सम्बन्धित है। यम का अभ्यासी अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, पवित्रता तथा त्याग सीखाता है।
- नियम : इसमें वे ढंग सम्मिलित है जिनका सम्बन्ध मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से है अर्थात शरीर तथा मन की शुद्धि, संतोष, दृढ़ता तथा ईश्वर की पूजा। शरीर की सफाई करने के लिए नेति, धोती तथा वस्ति का प्रयोग किया जाता है।
- आसन : आसन शब्द से अभिप्राय है मानव शरीर को अधिक से अधिक समय के लिए किसी विशेष स्थिति में रखना। उदाहरणतया रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रख कर टांगों को किसी विशेष दिशा में रख कर बैठने को पदमासन कहते है।
- प्राणायाम : प्राणायाम शब्द से अभिप्राय है एक स्थिर स्थान पर बैठकर किसी विशेष विधि के अनुसार सांस को अंदर ले जाने तथा बाहर निकालने की क्रिया।
- प्रत्याहार : मन तथा इन्द्रियों को उनसे सम्बन्धित क्रिया को हटा कर ईश्वर की ओर लगाने को प्रत्याहार कहते है।
- धारणा : धारणा से अभिप्राय है मन को किसी इच्छित विषय में लगाना। एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान शक्ति उत्पन्न होती है तथा उसके मन की इच्छा पूरी होती है।
- ध्यान : यह अवस्था धारणा से ऊँची है। इसमें व्यक्ति सांसारिक चीजों से ऊपर उठकर अपने आप में अंतर्ध्यान हो जाता है।
- समाधि के समय मनुष्य आत्मा परमात्मा में लीन हो जाता है।
नोट: योग के प्रथम चार अंगों का अभ्यास सभी ग्रहस्थ व सांसारिक लोगों के लिए है। और योग के अंतिम चार अंगों का अभ्यास ऋषि, मुनि तथा योगियों के लिए है।