Aparajita Stotra | अपराजिता स्तोत्र
Aparajita Stotra (अपराजिता स्तोत्र हिंदी): Aparajita means one who has never been defeated. Vijayadashami and Goddess Aparajita have a deep connection with the Kshatriya kings. Aparajita is the Mahadevi of the Kshatriyas. Aparajita Devi is a superpower that causes destruction. A devotee who recites Aparajita Stotra or worships the Goddess cannot be defeated even in the most difficult situations. Aparajita Devi never lets her devotee face defeat. Even when all the roads are closed, there is no way out, Aparajita Devi happily saves her devotee, no matter how big the trouble is.
The worship and veneration of Goddess Aparajita first started when Navadurga Shakti had destroyed the entire dynasty of demons during the battle of Devasura. During that period, Mother Durga manifested one of her Peethashaktis, Aadi Shakti, which we know as Aparajita Devi. At the same time, through the Aparajita Stotra, Mother Aparajita was praised. After that the mother disappeared into the Himalayas.
Thereafter, the kings of Aryavarta established Vijay Dashami as a victory festival, which is celebrated as Vijay Dashami on the tenth day after Navratri in the autumn season. Vijay Dashami festival is basically celebrated to commemorate the victory (Aparajita Stotra) of the gods over the demons. After this, again when the earth and the gods and demons were troubled by the atrocities of Ravana in Treta Yuga, Ravana was again killed by Purushottam Ram on the day of Dussehra, which once again started being celebrated as Vijayadashami.
Aparajita Stotra Method:
Recite Aparajita Stotra from any Friday, between evening time (5:30-7:30Pm) or night time (9:15-10:30Pm), when your mind is calm from within. Sitting on a Red Woollen Seat, facing east or south direction, install the Idol or Picture of Maa Durga in front of you, light a mustard or sesame oil lamp in front of Maa and wear Aparajita Gutika around your neck. Pray to your Guru, Ancestor, Ishta and Pray to Aparajita Devi for complete success in your work.
While speaking the wish, offer 8 roses, hibiscus or red Kaner flowers at the feet of Maa Durga. After offering the flowers, take water in your hand and apply it to Aparajita, after applying it, leave the water on the ground. After this, speaking loudly, recite 8 rosaries of Aparajita Stotra for 21 days. By doing this, one gets 200 percent success in the terminal disease, court case, enemy, system obstacle, election, competition etc. This is a tested experiment.
Aparajita Stotra Benefits:
- With this Aparajita Stotra, all the defects of Navagraha, Kalsarp Dosh, Pitra Dosh, Daridra Dosh, Mangalik Dosh etc. eliminates.
- One gets freedom from obstacles like ghosts etc., besides, negative powers are destroyed.
- There is no greater hymn in the world to conquer work than this.
- Aparajita Stotra all the wishes of man are fulfilled.
- Sins committed knowingly or unknowingly are destroyed.
- Students definitely get success in the examination.
- The doors to having a child are opened for the childless.
- Aparajita Stotra success is achieved in government work.
- There is no fear of any kind, all kinds of disturbances subside.Tantra defects like Maran, Mohan, Ucchatan etc. Enemy are destroyed.
- If bad cases like ED, CBI, CID are registered, then definitely recite Aparajita Stotra.
- One wins elections and gets social respect.
- Continuous recitation of this Aparajita Stotra protects from infectious diseases (bird flu, swine flu, corona virus etc.).
- Incurable diseases like cancer, AIDS, heart disease, skin disease etc. are cured.
अपराजिता स्तोत्र | Aparajita Stotra
अपराजिता का अर्थ है, जो कभी पराजित नहीं हुआ, विजयदशमी और देवी अपराजिता का सम्बन्ध क्षत्रिय राजाओं के साथ गहरा सम्बन्ध रखता है, अपराजिता क्षत्रियों की महादेवी है। अपराजिता देवी बहुत संहार कारणी महाशक्ति है, अपराजिता स्तोत्र का पाठ करने वाला या देवी की पूजा करने वाला साधक, विषम से विषम परिस्थतियों में भी पराजित नही हो सकता, अपराजिता देवी अपने भक्त को कभी भी पराजय का मुख नही देखने देती, जब सारे रास्ते बंद जाए, कोई रास्ता नही हो, तब भी अपराजिता देवी अपने भक्त को हस्ते-खेलते बचा ले जाती है, चाहे कितनी भी बड़ी से बड़ी मुसीबत हो।
सर्वप्रथम देवी अपराजिता की पूजा, साधना, तब प्रारम्भ हुई थी, जब जब देवासुर संग्राम के दौरान नवदुर्गाओ शक्ति ने दानवों के सम्पूर्ण वंश का नाश कर दिया था। उसी समय माँ दुर्गा अपनी पीठशक्तिओं में से एक आदि शक्ति का प्रदुभाव किया, जिसे हम अपराजिता देवी के नाम से जानते है, उसी समय यह अपराजिता स्तोत्र/अपराजिता स्तोत्र के माध्यम से, माँ अपराजिता की स्तुति हुई, उसके बाद माँ हिमालय में अंतर्ध्यान हो गयी।
इसके बाद आर्यवर्त के राजाओ ने विजय पर्व के रूप में विजय दशमी की स्थापना की, जो शरद ऋतू में नवरात्री के बाद दसमी तिथि के दिन, विजय दशमी के नाम से मनाई जाती है। विजय दशमी पर्व मूलत: देवताओं द्वारा दानवो पर विजय प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके पश्चात पुन: जब त्रेता युग में रावण के अत्याचारों से पृथ्वी एवं देव दानव सभी त्रस्त हुए तो पुन: पुरषोत्तम राम द्वारा दशहरे के दिन रावण का अन्त किया गया, जो एक बार पुन: विजयदशमी के रूप में मनाये जाने लगा।
अपराजिता स्तोत्र पाठ विधि:
अपराजिता स्तोत्र का पाठ किसी भी शुक्रवार से, शाम के समय (5:30-7:30Pm) या रात के समय (9:15-10:30Pm) के बीच, जिस समय आपका मन अंदर से शांत हो, लाल ऊनि आसन पर, पूर्व या दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठे, अपने समाने माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, माँ के सामने सरसों या तिल के तेल का दीपक जलाये और अपने गले में अपराजिता गुटिका धारण करकें, अपने गुरु, पितृ, इष्ट ओर अपराजिता देवी से, अपने कार्य में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें, कमाना बोलते हुए माँ दुर्गा के चरणों में 8 गुलाब, गुल्हड़ या लाल कनेर के पुष्प चढायें, पुष्प चढ़ाकर, सीधे हाथ में जल लेकर अपराजिता विनयोग करें, विनियोग के बाद जल भूमि पर छोड़ दे।
इसके बाद उच्च स्वर में बोलते हुए, अपराजिता स्तोत्र के 8 पाठ 21 दिन तक करें, ऐसा करने से बड़ी से बड़ी बीमारी, कोर्ट केस, शत्रु, तंत्र बाधा, चुनाव, प्रतियोगिता आदि में 200 प्रतिशत सफलता मिलती है, यह अजमाया हुआ प्रयोग है।
अपराजिता स्तोत्र के लाभ:
- इस स्तोत्र से सभी नवग्रह का दोष, कालसर्प दोष, पितृ दोष, दरिद्र दोष, मांगलिक दोष आदि समाप्त हो जाता है।
- भूत-प्रेत आदि बाधाओं से मुक्ति मिलती है, नकारात्मक शक्तिओं का नाश हो जाता है।
- कार्य पर विजय प्राप्त करने के लिए संसार में इससें बड़ा कोई स्तोत्र नही है।
- मनुष्य की सभी मनोकामना सिद्ध होती है।
- जाने-अनजाने किये गए या हुए पापों का विनाश हो जाता है।
- विद्ध्यार्थियो को परीक्षा में निश्चित ही सफलता मिलती है।
- नि:सन्तान को सन्तान प्राप्ति के द्वार खुल जाते है।
- सरकारी कामो में सफलता प्राप्त होती है।
- किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं होता, सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाते है।
- शत्रु के द्वारा किये हुए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि तंत्र दोष नष्ट होते है।
- ईडी, सीबीआई, सीईडी जैसे यदि बुरे केस लग जाते तो, अवश्य ही अपराजिता स्तोत्र का पाठ करें।
- चुनाव में विजय प्राप्त होती है, सामाजिक सम्मान प्राप्त होता है।
- इस स्तोत्र के निरंतर पाठ से संक्रामक रोग (बर्डफ्लू, सॉर्स, स्वाइनफ्लू, करोनावायरस आदि) से रक्षा होती है।
- कैंसर, एड्स, हृदय रोग, त्वचा रोग आदि जैसे असाध्य रोग शांत होते है
अपराजिता स्तोत्र हिंदी | Aparajita Stotra Lyrics
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करे:
विनियोग: ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ॠषयः। गाय्त्रुश्धिगानुश्ठुब्ब्रेहती छंदासी। लक्ष्मी नृसिंहो देवता। ॐ क्लीं श्रीं हृीं बीजं हुं शक्तिः सकल्कामना सिद्ध्यर्थ अपराजित विद्द्य्मंत्र पाठे विनियोग:। जल भूमि पर छोड़ दें।
अपराजिता देवी ध्यान:
ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजंगाभरणानिव्ताम।
शुद्ध्स्फटीकंसकाशां चन्द्र्कोटिनिभाननां॥
शड़्खचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजिताम।
बालेंदुशेख्रां देवीं वर्दाभाय्दायिनीं।
नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कंडेय महातपा:॥
मार्कंडेय उवाच:
शृणुष्वं मुनय: सर्वे सर्व्कामार्थ्सिद्धिदाम।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजिताम्॥
विष्णोरियमानुपप्रोकता सर्वकामफलप्रदा।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभितिविनाशनी।
सवैश्र्च पठितां सिद्धैविष्णो: परम्वाल्लभा ॥
नानया सदृशं किन्चिदुष्टानां नाशनं परं ।
विद्द्या रहस्या, कथिता वैष्ण्व्येशापराजिता ।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्शात्स्त्वगुणाश्रया ॥
ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अथात: संप्रवक्ष्यामी हृाभ्यामपराजितम् ।
यथाशक्तिमार्मकी वत्स रजोगुणमयी मता ॥
सर्वसत्वमयी साक्शात्सर्वमन्त्रमयी च या ।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ॥
सर्वकामदुधा वत्स शृणुश्वैतां ब्रवीमिते ।
यस्या: प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ॥
भ्रियते बालको यस्या: काक्बन्ध्या च या भवेत् ।
धारयेघा इमां विधामेतैदोषैन लिप्यते ॥
गर्भिणी जीवव्त्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशय:।
भूर्जपत्रे त्विमां विद्धां लिखित्वा गंध्चंदनैः ॥
एतैदोषैन लिप्यते सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।
रणे राजकुले दुते नित्यं तस्य जयो भवेत् ॥
शस्त्रं वारयते हृोषा समरे काडंदारूणे ।
गुल्मशुलाक्शिरोगाणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम्॥
इत्येषा कथिता विद्द्या अभयाख्या अपराजिता।
एतस्या: स्म्रितिमात्रेंण भयं क्वापि न जायते ॥
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्करा:।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रव: ।
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहा: ॥
अग्नेभ्र्यं न वाताच्च न स्मुद्रान्न वै विषात् ।
कामणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ॥
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।
न किन्चितप्रभवेत्त्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ॥
पठेद वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।
हृदि वा द्वार्देशे व वर्तते हृाभय: पुमान् ॥
ह्रदय विन्यसेदेतां ध्यायदेवीं चतुर्भुजां ।
रक्त्माल्याम्बरधरां पद्दरागसम्प्रभां ॥
पाशाकुशाभयवरैरलंकृतसुविग्रहां ।
साध्केभ्य: प्र्यछ्न्तीं मंत्रवर्णामृतान्यापि ॥
नात: परतरं किन्च्चिद्वाशिकरणमनुतम्ं ।
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ॥
प्रात: कुमारिका: पूज्या: खाद्दैराभरणैरपि ।
तदिदं वाचनीयं स्यातत्प्रिया प्रियते तू मां ॥
ॐ अथात: सम्प्रक्ष्यामी विद्दामपी महाबलां ।
सर्व्दुष्टप्रश्मनी सर्वशत्रुक्षयड़्करीं ॥
दारिद्र्य्दुखशमनीं दुभार्ग्यव्याधिनाशिनिं ।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्श्गंध्वार्क्षसां ॥
डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्मांडनां च नाशिनिं ।
महारौदिं महाशक्तिं सघ: प्रत्ययकारिणीं ॥
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वंपार्वतीपते: ।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श्रृणु ॥
एकाहिृकं द्वहिकं च चातुर्थिकर्ध्मासिकं।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्थ्मासिकं ॥
पाँचमासिक षाड्मासिकं वातिक पैत्तिक्ज्वरं।
श्रैष्मिकं सानिपातिकं तथैव सततज्वरं ॥
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरं ।
द्वहिंकं त्रयहिन्कं चैव ज्वर्मेकाहिकं तथा ॥
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणाद्पराजिता।
यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छ्तु, स्वाहेत्योंम ॥
अमोघैषा महाविद्दा वैष्णवी चापराजिता ।
स्वयं विश्नुप्रणीता च सिद्धेयं पाठत: सदा ॥
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजित ।
नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्दते ॥
तमोगुणमयी साक्षद्रोद्री शक्तिरियं मता ।
कृतान्तोऽपि यतोभीत: पाद्मुले व्यवस्थित: ॥
मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरेत ।
नीलजीतमूतसंड़्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ॥
उद्ददादित्यसंकाशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।
शक्तिं त्रिशूलं शड़्खं चपानपात्रं च बिभ्रतीं ।
व्याघ्र्चार्म्परिधानां किड़्किणीजालमंडितं ॥
धावंतीं गगंस्यांत: पादुकाहितपादकां ।
दंष्टाकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषितां ॥
व्यात्वक्त्रां ललजिहृां भुकुटिकुटिलालकां ।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पान्पात्रत: ॥
सप्तधातून शोषयन्तीं क्रूरदृष्टया विलोकनात् ।
त्रिशुलेन च तज्जिहृां कीलयंतीं मुहुमुर्हु: ॥
पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तन्दिके ।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं ध्यायेंमहबलां ॥
यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मंत्रं निशांतके ।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापियोगिनी ॥
ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति, अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीं। श्रीमद्पाराजिताविद्दां ध्यायते ॥
दु:स्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमिते तथैव च ।
व्यवहारे भवेत्सिद्धि: पठेद्विघ्नोपशान्त्ये ॥
यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्धऽक्षरहीमीड़ितं ।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सड़्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायतां ॥
तव तत्वं न जानामि किदृशासी महेश्वरी।
यादृशासी महादेवी ताद्रिशायै नमो नम: ॥
य इमां पराजितां परम्वैष्ण्वीं प्रतिहतां
पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्द्यां ॥
जपति पठति श्रृणोति स्मरति धारयति किर्तयती वा
न तस्याग्निवायुवज्रोपलाश्निवर्शभयं ॥
न समुद्रभयं न ग्रह्भयं न चौरभयं
न शत्रुभयं न शापभयं वा भवेत् ॥
क्वाचिद्रत्र्यधकारस्त्रीराजकुलविद्वेषी
विषगरगरदवशीकरण विद्वेशोच्चाटनवध बंधंभयं वा न भवेत् ॥
।। इति अपराजिता स्तोत्रम् ।।
अपराजिता स्तोत्र हिंदी अर्थ | Aparajita Stotra In Hindi
ॐ अपराजिता देवी को नमस्कार। (इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्दा के वामदेव, ब्रहस्पति, मारकंडये ऋषि है गायत्री उष्णिग् अनुष्टुप बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता, क्लीं बीजम्, हुं शक्ति, सकलकामना सिद्धि के लिए अपराजिता विद्दा मंत्रपाठ में विनियोग है।)
नीलकमलदल के समान, श्यामल रंग वाली, भुजंगो के आभरण से युक्त, शुद्धस्फ़टिक के समान उज्जवल तथा कोटि चन्द्र के प्रकाश के समान मुख वाली, शंख-चक्र धारण करने वाली, बालचंद्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवी को नमस्कार करके महान् तपस्वी मारकण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र का पाठ आरम्भ किया । । १-३। । मारकण्डेय ऋषि ने कहा- हे मुनियो। सिद्धि देने वाली, असिद्धिसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी (के इस स्तोत्र) को श्रवण। । ४। । ॐ नारायण भगवान् को नमस्कार, वासुदेव भगवान् को नमस्कार, अनंत्भागवान को नमस्कार, जो सहस्त्र सिर वाले क्षीरसागर में शयन करने वाले, शेषनाग के शैया में शयन करने वाले, गरुण वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित तथा पीताम्बर धारण करने वाले है।
ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्दुम्न अनिरुद्ध, हयग्रिव, मतस्य, कुर्म, वाराह,नृसिंह, अच्युत,वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलराम, परशुराम, हे वरदायक, आप मेरे लिए वर प्रदायक हों । आपको नमन हैं। ॐ असुर, दैत्य, यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, कुष्मांड, सिद्ध्योगिनी, डाकिनी, शाकिनी, स्कंद्ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र्ग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो-मारो, पाचन करो- पाचन करो । मंथन करो- मंथन करो, विध्वंस करो- विध्वंस करो, तोड़ दो- तोड़ दो, चूर्ण करो- चूर्ण करो । शंख, चक्र, वज्र, शूल, गदा, मूसल तथा हल से भस्म करो ।
ॐ हे सहस्त्रबाहू, हे सह्स्त्रप्रहार आयुध वाले, जय, विजय, अमित, अजित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्र्नेत्र जलाने वाले, प्रज्वलित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषिकेश, केशव, सभी असुरों को उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत-प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दु:स्वप्न को नाश करने वाले, सभी यंत्रो को भेदने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों को महादेव, सभी बंधनों को मोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों का निवारण करने वाले, सभी पापों का प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आपको नमस्कार है ।
ये भगवान् विष्णु की विद्दा सर्वकामना के देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भय को नाश करें वाली है । । ५। । ये विष्णु की परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित है, इसके समान दुष्टों को नाश करने वाली कोई और विद्दा नही है। । ६। । ये वैष्णवी अपराजिता विद्दा साक्षात सत्वगुण, सम्निवत, सदा पढने योग्य तथा मार्ग प्रशस्ता है । । ७। ।
ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले, चंद्र्वर्ण वाले, चार भुजा वाले, प्रसन्न मुख वाले भगवान् का सर्व विघ्नों का विनाश करने हेतुध्यान करें । हे वत्स । अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूँगा, जो रजोगुणमयी कही गई है । । १। । ये सत्व वाली सभी मन्त्रों वाली स्मृत, पूजित, जपित कर्मों में योजित, सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है । इसको ध्यान पूर्वक सुनो । । १०। ।
जो इस अपराजिता परम वैष्णवी, अप्रतिहता पढने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली, विद्दा को सुनें, पढ़ें, स्मरण करें, धारण करें, कीर्तन करें, इससे अग्नि , वायु , वज्र, पत्थर, खड़ग, वृष्टि आदि का भय नहीं होता । समुद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय भी नहीं होता। रात्री में, अन्धकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष देने वालों से, वशीकरण आदि टोटका करने वालों से, विद्वेशिओं से, उच्चाटन करने वालों से, वध-भय, बंधन का भय आदि समस्त भय से इसका पाठ करने वाले सुरक्षित हो जाते हैं । इन मन्त्रों द्वारा कही गई, सिद्ध साधकों द्वारा पूजित यह अपराजिता शक्ति हैं ।
ॐ आप को नमस्कार है। भयरहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्व परिपूर्ण, अपरा, अपराजिता पढने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि से देने वाली, नवासिवाँ स्थान वाली, एकांत प्रिय, निश्चेता, सुदृमा, सुगंधा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुन्धती, गायत्री, सावित्री, जातवेदा, मानस्तोका, सरस्वती, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गांधारी, मातंगी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, ब्रम्हावादिनी, काली कपालिनी, कराल नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जल में, स्थल में, अन्तरिक्ष में, सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करों स्वाहा । (Aparajita Stotra)
जिस स्त्री का गर्भ नष्ट हो जाता है, गिर जाता है, बालक मर जाता है अथवा वह काक बंध्या भी हो तो इस विद्दा को धारण करने से अर्थात जप करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमें कोई संशय नहीं है । । ११-१२। । इस मन्त्र को भोजपत्र में चन्दन से लिखकर धारण करने से सौभाग्यवती स्त्रियाँ पुत्रवती हो जाति है, इसमें कोई शंका नहीं है । । १३। । युद्ध में, राजकुल में, जुआ में, इस मन्त्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाती है । भयंकर युद्ध में भी विद्दा अर्थ-शस्त्रों से रक्षा करती है । । २४। ।
गुल्म रोग, शूल रोग, आँख के रोग की व्यथा इससे शीघ्र नाश हो जाती है । ये विद्दा शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है । । १५। । इस प्रकार की अभया ये अपराजिता विद्दा कही गई है, इसके स्मरण मात्र से कही भी भय नहीं होता । । १६। । सर्प भय, रोग भय, तरस्करों का भय, योद्धाओं का भय, राज भय, द्वेष करने वालों का भय और शत्रु भय नहीं होता है । । १७। । यक्ष, राक्षस, वेताल, शाकिनी, ग्रह, अग्नि, वायु, समुद्र,विष आदि से भय नहीं होता । । १८। । क्रिया से शत्रु द्वारा किये हुए वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भ हो, विद्वेषण हो, इन सबका लेशमात्र भी प्रभाव नहीं होता । । १९। ।
जहाँ माँ अपराजिता का पाठ हो, यहाँ तक की यदि यह मुख में कंठस्थ हो, लिखित रूप में साथ हो,चित्र अर्थात यन्त्र रूप में लिखा हो तो भी भय-बाधाएं कुछ नहीं कर पाते । । २०। । यदि माँ अपराजिता के इस स्तोत्र को तथा चतुर्भुजा स्वरुप को साधक ह्रदय रूप में धारण करेगा तो वह बाहर भीतर सब प्रकार से भयरहित होकर शांत हो जाता है। । २१। । (Aparajita Stotra)
लाल पुष्प की माला धारण की हुई, कोमल कमलकान्ति के समान आभा वाली, पाश अंकुश तथा अभय मुद्राओं से समलड़्कृत सुन्दर स्वरुप वाली । । २२। । साधको को मन्त्र वर्ण रूप अमृत को देती हुई, माँ का ध्यान करें । इस विद्दा से बढ़कर कोई वशीकरण सिद्धि देने वाली विद्दा नहीं है । । २३। । न रक्षा करने वाली, न पवित्र, इसके समान कोई नहीं है, इस विषय म कोई चिन्तन करने की आव्य्शकता नहीं है । प्रात:काल में साधको माँ के कुमारी रूप की पूजन विधि खाद्द सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिए । कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी ( अपराजिता की ) प्रीति बढ़ जाती है । । २४। ।
ॐ अब मैं उस महान बलशालिनी विद्दा को कहूँगा, जो सभी दुष्ट दमन करने वाली, सभी शत्रु नाश करने वाली, दारिद्र्य दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस का नाश करने वाली है । । २५-२६। । डाकिनी, शाकिनी, स्कन्द, कुष्मांड आदि का नाश करने वाली, महारौद्र रूपा, महाशक्ति शालिनी, तत्काल विशवास देने वाली है । । २७। । ये विद्दा अत्यन्त गोपनीय तथा पार्वती पति भगवान् भोलेनाथ की सर्वस्व है, इसलिए इसे गुप्त रखना चाहिए । ऐसी विद्दा तुम्हे कहता हु सावधान होकर सुनो । । २८। ।
एक, दो, चार, दिन या आधे महीने, एक महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने, पाँच महीने, छह महीने तक चलने वाला वाट ज्वर, पित्त सम्बन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, सन्निपत हो या मुहूर्त मात्र तक रहने वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर, विषम ज्वर, दो दिन वाला, तीन दिन वाला, एक दिन वाला अथवा अन्य कोई ज्वर हो वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शीघ्र नष्ट हो जाते है । । २९-३०-३१। ।
ॐ हृीं हन हन काली शर शर, गौरी धम-धम, हे विद्दा स्वरुपा, हे आले ताले माले गंधे बंधे विद्दा को पचा दो पचा दो, नाश करो नाश करो, पाप हरण करो पाप हरण करो, संहार करो संहार करो, दु:स्वप्न विनाश करने वाली, कमल पुष्प में स्थित, विनायक मात रजनी संध्या स्वरुपा, दुन्दुभी नाद करने वाली, मानस वेग वाली, शंखिनी, चक्रिणी, वज्रिणी, शूलिनी अपस्मृत्यु नाश करने वाली, विश्वेश्वरी द्रविडी द्राविडी द्रविणी द्राविणी केशव दयिते पशुपति सहिते, दुन्दुभी दमन करने वाली, दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातड़्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।
जो प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझसे जलते है, उन सबका दमन करो- दमन करो, मर्दन करो – मर्दन करो, तापित करो तापित करो, छिपा दो छिपा दो, गिरा दो गिरा दो, शोषण करो शोषण करो, उत्सादित करो, उत्सादित करो, हे ब्रह्माणी, हे वैष्णवी, हे माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह सम्बन्धिनी, ऐन्द्री, चामुंडा, महालक्ष्मी, हे विनायक सम्बन्धिनी, हे उपेन्द्र सम्बन्धिनी, हे अग्नि सम्बन्धिनी, हे चंडी, हे नैॠत्य सम्बन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान सम्बन्धिनी, हे प्रचण्डविद्दा वाली, हे इन्द्र तथा उपेन्द्र की भागिनी आप ऊपर तथा नीचे से सब प्रकार से रक्षा करें ।
ॐ जया विजया शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी बढाने वाली देवी आपको नमस्कार है । दुष्टकामनाओं को अंकुश में करने वाली, शुभकामना देने वाली, सभी कामनाओं को वरदान देने वाली, सब प्राणियों में मुझे प्रिय करो प्रिय करो स्वाहा ।
आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली, ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरुपा, धारण करने वाली, तप करने वाली, तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नील्ध्वज वाली, महानील स्वरुपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महामायुरी, आदित्य रश्मि, जाहृवी। यमघंटा किणी किणी ध्वनीवाली, चिन्तामणि, सुगंध वाली, सुरभा, सुर, असुर उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार की कामनाये पूर्ति करने वाली, जैसा मेरा मन वांछित कार्य है (यहाँ स्तोत्र का पाठ करने वाले अपनी कामना का चिन्तन कर सकते है।) वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा ।
ॐ स्वाहा । ॐ भू: स्वाहा । ॐ भुव: स्वाहा । ॐ स्व: स्वाहा । ॐ मह: स्वाहा । ॐ जन: स्वाहा । ॐ तप: स्वाहा । ॐ सत्यम स्वाहा । ॐ भूभुर्व: स्व: स्वाहा ।
जो पाप जहा से आया है , वाही लौट जाये स्वाहा । ॐ यह महा वैष्णवी अपराजिता महाविद्दा अमोघ फलदायी है । । ३२। । ये महाविद्दा महाशक्तिशाली है अत: इसे अपराजिता अर्थात् किसी प्रकार की अन्य विद्द्य से पराजित ना होने वाली कहा गया है । इसको स्वयं विष्णु ने निर्मित किया है इसका सदा पाठ करने से सिद्दी प्राप्त होती है । । ३३। ।
इस विद्दा के समान तीनो लोको में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरी विद्दा नहीं है । ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात रौद्र्शक्ति मानी गई है । । ३४। । इस विद्दा के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते है । इस विद्दा की मूलाधार स्थापित करना चाहिए तथा राटा को स्मरण करना चाहिए। । ३५। । नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली, चमकते सूर्य के समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान है । । ३६। । (Aparajita Stotra)
शक्ति, त्रिशूल, शंख, पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चरम धारण की हुई , किंकिणियों से सुशोभित, मण्डप में विराजमान, गगनमंडल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, पादुकाहित चरण वाली, भयंकर दांत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिहृा को बाहर निकाली हुई, टेड़ी भौंहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पीने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने पर सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारम्बार त्रिशूल से शत्रु के जिहृा को कीलित कर देने वाली, पाश से बाँधकर उसे निकट लाने वाली, ऐसी महाशक्ति शाली माँ को आधी रात के समय में ध्यान करे। । ३७-४१। । फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जिस हेतु जप किया जाये उस- उस को वैसा स्वरुप बना देती है ये योगिनी माता । । ४२।। (Aparajita Stotra)
ॐ बला महाबला असिद्द्साधनी स्वाहा इति । इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवी विद्दा, श्रीमद अपराजिता को दु:स्वप्न, दुरारिष्ट, आपदा की अवस्था में अथवा किसी कार्य के आरम्भ में ध्यान करें तो इससे विघ्न बाधाये शांत हो जायेंगी । सिद्धि प्राप्त होगी । । ४३-४४। । हे जगज्जननी माँ इस स्तोत्र पाठ में मेरे द्वारा यदि विसर्ग, अनुस्वार, अक्षर, पाठ छोड़ गया हो तो भी माँ आपसे क्षमा प्रार्थना करता हुँ की मेरे पाठ का पूर्ण फल मिले, मेरे संकल्प की अवश्य सिद्धि हो अर्थात किसी भी प्रकार की उच्चारण की भूल को क्षमा करें । । ४५। ।
हे माँ मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नही जानता आप कैसी है ये भी नहीं जानता, बस मुझे इतना पता है की आपका रूप जैसा भी हो मैं उसी रूप को पुजरा हुँ । आपके सभी रूपों को नमस्कार हैं अर्थात हे अपराजिता माँ आपका स्वरुप अपरम्पार है, उसे जाना नहीं जा सकता, आपके विलक्षण स्वरुप को हमारा शत शत नमन है । । ४६।
।। श्री दुर्गापूर्णं अस्तु ।।