Bhuvaneshvari Mahavidya | भुवनेश्वरी महाविद्या
Bhuvaneshvari Mahavidya (भुवनेश्वरी महाविद्या): Goddess Bhuvaneshvari maintains the fifth position among all the ten significant Dus Mahavidya’s. She is an incarnation of Goddess Shakti known as Adi Shakti i.e. one of the earliest forms of Shakti. Bhuvaneshvari means the queen (Ishwari) of the universe (Bhuvan). She rules or commands the whole universe, possessing controlling influence of turning situations according to her desire (Bhuvaneshvari Mahavidya).
“Bhuvaneshvari” The Creator of the World is considered as the supreme goddesses who creates power of love, space, gives freedom. And breaks us free from attachment and sufferings making us believe that true love has no form. She plays the role of creator and protector and fulfils all the wishes of her Sadhak. Bhubaneswari tantra Sadhna evokes 64 Yogini. The aspirant Sadhak, having perfected this Sadhna is bestowed with 64 divine virtues or the 64 yogini from Mata Bhubaneswari which helps to succeed in every venture the Sadhak undertakes . This Sadhana can be started on first Monday of any Hindu month.
पद्ममष्टदल बाहे वृत्तं षोडशभिर्दलं: ।
विलिखेत् कर्णिकामध्ये षटकोणमतिसुन्दरम् ।।
चतुरस्त्रं चतुर्द्वारमेवं मण्डलमालिखेत् ।।
The five elements, Air, Water, Sky, Earth and Fire make everything in the universe which are directed by Mother Bhubaneswari. All the five elements are made by her. According to her wish all the elements of the world are made. Since it is concerned with nature, she is compared with nature. She is associated with Lord Shiva in his every Leela. She is not only controller but also punishes the person making mistakes. The anchor in her hand is the symbol of control. She is also called Vama, Roudri and Jyeshtha for her different forms. The left side of Lord Shiva is considered as Devi Bhubaneswari. The worthy of Sada Shiva was generated only due to her association.
Guru Gorakhnath, after being determinant of Devi Bhubaneswari with the power of Sadhana. He experiences that whoever complete the accomplishment of Devi Bhubaneswari. He or she should not need to worship other god and goddess because she never keeps anything undone.
Tantra Saar is a significant text which is very much proven. In that 10 benefits of Bhuvaneshvari Mahavidya Sadhana is mentioned.
The name of the Mahavidya itself means the ruler of the world and the Sadhak of Bhuvaneshvari Mahavidya is always victorious on all fronts in life and becomes all-powerful. Even Ram had to propitiate the Goddess before defeating Ravana who had conquered even heaven.
A Sadhak (devotee) of Bhuvaneshvari Mahavidya:
- Gains a mesmerizing personality that draws all people to him and makes them.
- readily obey his command.
- Diseases, enemies and problems are forever banished from his life
- He has unexpected and huge monetary gains.
- He conquers all problems in life – even the danger of untimely death.
- He leads a joyous family life and gains fame and respect nation and worldwide.
- Whatever he wishes for is fulfilled, for he is bestowed with 64 divine virtues which
- help him succeed in every venture that he undertakes.
- She can bestow totality in married life and make it happy, prosperous and
- Grant a good life partner.
All the above facts not only accepted by sages and Sadhak but also the austere who practiced the Sadhana experienced that without this accomplishment their life would be waste of life. There will be no creamy things in life.
भुवनेश्वरी महाविद्या | Bhuvaneshvari Mahavidya
भुवनेश्वरी महाविद्या (Bhuvaneshvari Mahavidya): दस महाविद्याओं में पांचवें स्थान पर “भुवनेश्वरी महाविद्या” विद्यमान है जो त्रिभुवन (ब्रह्माण्ड) पालन एवं उत्पत्ति कर्ता मानी गयी है। जो सम्पूर्ण जगत की ईश्वरी देवी भुवनेश्वरी महाशक्ति हैं, अपने नाम के अनुसार देवी तीनों लोकों की स्वामिनी हैं, भुवनेश्वरी देवी साक्षात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करती हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण का उत्तरदायित्व ‘भुवनेश्वरी देवी‘ पर हैं, परिणामस्वरूप ये जगत माता तथा जगत-धात्री के नाम से भी विख्यात हैं।
पद्ममष्टदल बाहे वृत्तं षोडशभिर्दलं: ।
विलिखेत् कर्णिकामध्ये षटकोणमतिसुन्दरम् ।।
चतुरस्त्रं चतुर्द्वारमेवं मण्डलमालिखेत् ।।
जिन पंच तत्व आकाश, वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल से सम्पूर्ण चराचर जगत के प्रत्येक जीवित तथा अजीवित तत्व का निर्माण होता हैं, वह सब भुवनेश्वरी देवी की शक्तियों द्वारा संचालित होते हैं। पञ्च तत्वों को इन्हीं देवी भुवनेश्वरी ने निर्मित किया हैं। देवी की इच्छानुसार ही चराचर ब्रह्माण्ड (तीनों लोकों) के समस्त तत्वों का निर्माण होता हैं। प्रकृति से सम्बंधित होने के कारण देवी की तुलना मूल प्रकृति से की जाती हैं।
आद्या शक्ति भुवनेश्वरी स्वरूप में भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं। देवी नियंत्रक भी हैं तथा भूल करने वालों के लिए दंड का विधान भी तय करती हैं, भुवनेश्वरी देवी की भुजा में व्याप्त अंकुश, नियंत्रक का प्रतीक हैं। जो विश्व को वमन करने हेतु वामा, शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्म नियंत्रक, जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री, प्रकृति का निरूपण करने से मूल-प्रकृति कही जाती हैं। भगवान शिव के वाम भाग को देवी भुवनेश्वरी के रूप से जाना जाता हैं तथा सदा शिव के सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं।
गुरु गोरखनाथ ने भुवनेश्वरी महाविद्या सिद्ध करने के बाद साधना के बल से यह अनुभव किया था कि जो साधक पूर्ण रूप से भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न कर लेता है, उसे अपने जीवन में अन्य देवी-देवताओं की आवश्यकता नहीं होती उसके जीवन में किसी भी दृष्टि से कोई अभाव व्याप्त नहीं रहता।
तंत्र सार एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसको अत्यंत ही प्रमाणिक माना जाता है। उसमें भगवती भुवनेश्वरी साधना के दस लाभ स्पष्ट रूप से वर्णित किये गए है।
- भुवनेश्वरी ‘रोगान् शेषा’ है अर्थात भुवनेश्वरी साधना करने पर असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते है और जीवन में अथवा परिवार में किसी प्रकार का कोई रोग व्याप्त नहीं होता।
- भुवनेश्वरी साधना से निरंतर आर्थिक, व्यापारिक और भौतिक उन्नति होती ही रहती है। जो अपने भाग्य में दरिद्र योग लिखा कर लाया है, जो व्यक्ति जन्म से ही दरिद्र है, वह भी भुवनेश्वरी साधना कर अपनी दरिद्रता को समृद्धि में बदल सकता है।
- भुवनेश्वरी साधना ही एक मात्र कुंडलिनी जागरण साधना है। इस साधना से स्वत: शरीर स्थित चक्र जाग्रत होने लगते है और अनायास उसकी कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है। ऐसा होने पर उसका सारा जीवन जगमगाने लग जाता है।
- एक मात्र भुवनेश्वरी साधना ही ऐसी है, जो जीवन में भौतिक उन्नति और आध्यात्मिक प्रगति एक साथ प्रदान करती है।
- भुवनेश्वरी को आधा मां कहा गया है, फलस्वरूप भुवनेश्वरी साधना से योग्य सन्तान प्राप्त होती है और पूर्ण सन्तान सुख प्राप्त होता है।
- भुवनेश्वरी साधना इच्छापूर्ति की साधना है। यदि पूर्ण रूप से भुवनेश्वरी को सिद्ध कर लिया जाए तो व्यक्ति जो भी इच्छा या आकांक्षा रखता है, वह इच्छा अवश्य ही पूर्ण होती है।
- भुवनेश्वरी सम्मोहन स्वरूपा है। तंत्र सार के अनुसार भुवनेश्वरी साधना करने से पुरुष या स्त्री का सारा शरीर एक अपूर्व सम्मोहन अवस्था में आ जाता है, जिसके व्यक्तित्व से लोग प्रभावित होने लगते है और वह जीवन में निरंतर उन्नति करता रहता है।
- भुवनेश्वरी भोग और मोक्ष दोनों को एक साथ प्रदान करने वाली है, यही एक मात्र ऐसी साधना है जिसको सम्पन्न करने पर जीवन में सम्पूर्ण भोगों की प्राप्ति होती है और अंत में पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
- तंत्र सार ‘तोडल तन्त्र’ में बताया है कि भुवनेश्वरी शत्रु संहारिणी है। इसकी साधना करने वाले साधक के शत्रु स्वत: ही समाप्त हो जाते है, यहाँ तक कि जो भी व्यक्ति इस प्रकार के साधक के प्रति दुराग्रह या शत्रुभाव रखते है, वे अपने आप समाप्त होते रहते है और उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।
- भुवनेश्वरी को योगमाया कहा गया है इसकी साधना कर जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है।
इन सारे तथ्यों को केवल एक ऋषि या एक साधक ने ही स्वीकार नहीं किया है, अपितु जिन जिन योगियों या महर्षियों ने इस साधना को सम्पन्न किया है उन्होंने यह अनुभव किया है कि यदि साधक अपने जीवन में इस साधना को सम्पन्न नहीं करता तो वह जीवन ही बेकार चला जाता है। उसके जीवन में कोई रस नहीं रहता और यदि सिद्धाश्रम के द्वारा वर्णित इस साधना का उपयोग नहीं किया जाता, तो ऐसी महत्वपूर्ण साधना कहीं नहीं प्राप्त हो पाती।