Chinnamasta Mahavidya, छिन्नमस्ता महाविद्या

Chinnamasta Mahavidya | छिन्नमस्ता महाविद्या

Chinnamasta Mahavidya (छिन्नमस्ता महाविद्या): Among Ten Mahavidyas the accomplishment of Chinnamasta Mahavidya is a high ranking Sadhana performing which a simple man also becomes an ascetic. He remains happy throughout his life. This is the only Sadhana which is combined of all the Sadhanas.

त्रिकोणं विन्यसेदादौ तन्मध्ये मण्डलत्रयम् ।
तन्मध्ये विन्यसेद योनि द्वारत्रयसमन्विताम् ।।
बहिरष्टदलं पदं भूबिम्बत्रितयं पुन: ।

This exercitation is said to be a secret accomplishment. It is also said that the preceptor should teach his disciple everything but when this Chinnamasta Mahavidya Sadhana is to be taught, the disciple becomes a preceptor and achieve everything as he wish.

Followings are the benefits of this exercitation.

  • This contains the root of Troilokya Vijayani Devi, consequently the Sadhak (Accomplisher) gets success in all the sectors of life. He can be a complete successful in political life.
  • Performing this Chinnamasta Mahavidya  accomplishment will make the person financially capable and hard bitten. Goddess Chhinnamasta herself fulfil the wishes of the devotee. She makes the person so rich that he earns more than what he spends lavishly.
  • In this Chinnamasta Mahavidya Mantra the word Kleeng is used which destroys all the sins and hence the accomplisher becomes free from all the sins.
  • After performing this Sadhana, all other Sadhanas become easy and smooth, consequently success come more easily.
  • For the presence of Maya root in this spell, the accomplisher remains healthy, handsome and young for a long period.
  • The Sadhana of Chinnamasta Mahavidya is capable of giving all the eight accomplishments and Ridhdhis. Who performs it systematically; he can enjoy all the laurels of life. He is never in scarcity.
  • This Chinnamasta Mahavidya Sadhana make the body iron like. He can sit bare on the ice and can meditate. He can enter into the blaze and come out unhurt. He can face any type of danger.
  • This accomplishment contains the Sadhana of Tripur Sundari as well. Hence he can see the gods in presence.
  • Through this Chinnamasta Mahavidya Sadhana one can have the power of prediction. It means whatever he will say that must happen.

Method of Chinnamasta Mahavidya Sadhana:

Follow the under mentioned instructions before you go for the accomplishment.

  • This Chinnamasta Mahavidya Sadhana is performed during the night only. Therefore chanting should be done during the night only. It has to be started by night 10 and can be finished by 3 or 4 in the morning.
  • To complete this accomplishment 1 lakh 25000 spells are to be chanted either in 11 days or in 21 days.
  • During this period the accomplisher must not do any business, service or work.Observe celibacy during this period. Feed on fruits and not take cereals.
  • The accomplisher should be with determination and keep patience (Chinnamasta Mahavidya). He should not be afraid in any circumstances. It is always better to accomplish the same before a preceptor.
  • At about 10 pm after taking bath wear a black Dhoti and on the accomplishment room sit on a black woollen mat facing south. In front of him keep a photo of goddess Chhinnamasta duly energized and worship it. Offer vermillion, flowers and rice and burn joss sticks, benzyl and earthen lamp and start chanting the spell.
  • After the chanting, sleep there only. Daily one has to chant minimum 5000 spells.
  • When total number of spell i.e. 1, 25,000 are chanted then with the flower of bastard teak performs Yajna by chanting 10% spells. This will energize the accomplishment.

Appropriation: Take water on your right palm and chant the following spell.

ॐ अस्य शिरशछन्ना मंत्रस्य, भैरव ऋषि:, सम्राट छन्द:, छिन्नमस्ता देवता, ह्रीं ह्रीं बीजम्, स्वाहा शक्ति:, अभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।

Om Assay Shirashchanna Mantrasya, Bhairava Rishi, Samrat Chhand; Chhinnamasta Devta, Hreeng Hreeng Beejam, Swaha Shakti, Abhisht Siddhaye Jape Viniyog.

Sages Pledge:

Take water on the left hand palm, join all the fingers of right hand at a point and along with chanting the following spell touch the body parts as directed and keep such a feeling in your mind that all the body parts you have touched are sanctified (Chinnamasta Mahavidya). This makes the body parts sensitive and strong.

ॐ भैरव ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
सम्राट छन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
छिन्नमस्ता देवतायै नम: हृदय (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं ह्रीं बीजाय नम: गुह्ये (गुप्तांग को स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पुरे शरीर को स्पर्श करें)

Hand pledge:  With both the thumbs touch the different fingers of the hand and chant the following spell. This will make the fingers sensitive.

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अंगुष्ठयो:।
ॐ ईं सुखड्गाय स्वाहा तर्जन्यै।
ॐ ऊं वज्राय स्वाहा मध्यमाभ्यो:।
ॐ ऐं पाशाय स्वाहा अनामिकाभ्यो:।
ॐ औं अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठिकभ्यो:।
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतल कर पृष्ठभ्यो:।

Chinnamasta Mahavidya, छिन्नमस्ता महाविद्या

छिन्नमस्ता महाविद्या | Chinnamasta Mahavidya

छिन्नमस्ता महाविद्या: तंत्र की दस महाविद्या में छिन्नमस्ता साधना एक अत्यंत ही उच्चकोटि की साधना है, जिसको सम्पन्न कर सामान्य गृहस्थ भी योगी का पद प्राप्त कर सकता है। ‘छिन्नमस्ता भवेत्सुखी’ अर्थात् जो छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न कर लेता है, वह साधक जीवन में सभी दृष्टियों से सुखी रहता है। एकमात्र यही ऐसी साधना है, जिसमें सभी साधनाओं का समावेश है। इस एक साधना को सम्पन्न करने पर उपरोक्त सभी साधनाएं स्वत: ही सम्पन्न हो जाती है और जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता

त्रिकोणं विन्यसेदादौ तन्मध्ये मण्डलत्रयम् ।
तन्मध्ये विन्यसेद योनि द्वारत्रयसमन्विताम् ।।
बहिरष्टदलं पदं भूबिम्बत्रितयं पुन:।

छिन्नमस्ता महाविद्या को शास्त्रों में गोपनीय साधना कहा गया है। कहा जाता है कि गुरु चाहे तो अपने समस्त ज्ञान और असीम सिद्धियां शिष्य को दे दें परन्तु बिना भली प्रकार से परखे उसे छिन्नमस्ता महाविद्या नहीं सिखाएं क्योंकि इस साधना को सीखने के बाद शिष्य स्वयं गुरुवत् बन जाता है और जीवन में वह संसार के समस्त कार्यों को एक क्षण में सम्पन्न कर सकता है, प्रकृति उसके इशारे पर चलती है तथा समय को वह जिस ढंग से चाहे, उस ढंग से परिवर्तित कर सकता है।

इस साधना को करने से निम्न लाभ होते है।

  • इसमें त्रैलोक्य विजयिनी देवी का बीज है, साधक जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता जाता है। वह राजनीति आदि के क्षेत्र में विशेष पूर्णता प्राप्त कर सकता है।
  • इस साधना को सम्पन्न करने से साधक आर्थिक दृष्टि से पूर्ण समर्थ और सुदृढ़ बन जाता है। मां छिन्नमस्ता स्वयं उसका मनोरथ पूरा करती जाती हैं, वह जिस सन्दूक या तिजोरी में धन रखता है, उसमें से वह दोनों हाथों से चाहे जितना भी खर्च करें उसमें न्यूनता नहीं आती।
  • इस साधना मंत्र में ‘क्लीं’ बीज लगता है जो कि समस्त पापों का नाश करने वाला है, इसलिए यह साधना जीवन के समस्त पापों का नाश कर मुक्ति देने में समर्थ है।
  • इस साधना के बाद अन्य साधनाएं सुगम और सरल हो जाती हैं, उन साधनाओं में जल्दी ही सफलताएं मिलती रहती हैं।
  • इस मंत्र में माया बीज होने की वजह से साधक का शरीर स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक बन जाता है, वह जीवन में पूर्णत: यौवनवान बना रहता है।
  • छिन्नमस्ता साधना आठों सिद्धियों और ऋद्धियों को देने में समर्थ है, जो इस साधना को सिद्ध कर लेता है उसके जीवन में धन, धान्य, पृथ्वी, विलासमय भवन, कीर्ति, दीर्घायु ख्याति, यश, वाहन, पुत्र, पौत्र और अन्य सभी भौतिक सुख स्वत: ही प्राप्त होते रहते हैं तथा जीवन में किसी प्रकार का अभाव देखने को नहीं मिलता।
  • छिन्नमस्ता साधना से सिद्ध व्यक्ति का शरीर लोहे के समान दृढ़ हो जाता है। बर्फ में वह नंगा बैठ कर साधना कर सकता है, अग्नि में प्रवेश कर सकुशल बाहर निकल सकता है और किसी भी प्रकार की विपत्ति को सहन कर सकता है।
  • छिन्नमस्ता साधना में त्रिपुर सुन्दरी साधना समाहित है, वह इच्छानुसार देवी-देवताओं के साक्षात् दर्शन कर सकता है।
  • इस साधना के माध्यम से व्यक्ति को भविष्यवाणी की शक्ति प्राप्त हो सकती है। इसका मतलब है कि वह जो कहेगा वही होगा।

साधना विधान:

छिन्नमस्ता साधना को सम्पन्न करने से पूर्व निम्न तथ्यों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए —

  • यह साधना रात्रि को सम्पन्न की जाती है। अत: मंत्र जप रात्रि को ही किया जाय, विशेषकर मंत्र में अर्द्धरात्रि ऊपर से व्यतीत हो, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यह साधना रात्रि को दस बजे प्रारम्भ करके प्रात: लगभग तीन या चार बजे तक समाप्त करनी चाहिए।
  • इस साधना को पूर्ण सिद्ध करने के लिए सवा लाख मंत्र जप ग्यारह या इक्कीस दिनों में सम्पन्न करना चाहिये।
  • साधना काल में साधक अन्य कोई कार्य, नौकरी, व्यापार आदि न करें।
  • ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, एक समय फलाहार लें, अन्न न ग्रहण करें।
  • साधना काल में साधक दृढ़ चित्त और सुस्थिर बना रहे, यदि उसे विशेष प्रकार का दृश्य दिखाई भी दे, तब भी घबराने की जरूरत नहीं है, यों यह साधना यदि गुरु के निर्देशन में की जाय तो ज्यादा उचित है।
  • रात्रि को लगभग दस बजे स्नान कर काली धोती पहन लें फिर साधना कक्ष में जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर काले ऊनी आसन पर बैठ जायें और सामने प्राण प्रतिष्ठित सिद्ध छिन्नमस्ता यंत्र और चित्र रखकर उसकी सामान्य पूजा करें। उस पर कुंकुंम, पुष्प और अक्षत चढ़ायें उसके सामने दीपक और लोबान धुप लगा लें इसके बाद मंत्र जप प्रारम्भ करें।
  • मंत्र जप की समाप्ति के बाद उसी स्थान पर सो जायें, नित्य कम से कम पांच हजार मंत्र जप आवश्यक है।
  • जब पुरे सवा लाख मंत्र जप हो जायें, तब पलाश पुष्प या बिल्व पुष्पों से दशांश हवन करें, ऐसा करने पर यह साधना सिद्ध हो जाती है।

विनियोग: अपने सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करें-

ॐ अस्य शिरशछन्ना मंत्रस्य, भैरव ऋषि:, सम्राट छन्द:, छिन्नमस्ता देवता, ह्रीं ह्रीं बीजम्, स्वाहा शक्ति:, अभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।

ऋष्यादि न्यास:

बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

ॐ भैरव ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
सम्राट छन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
छिन्नमस्ता देवतायै नम: हृदय (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं ह्रीं बीजाय नम: गुह्ये (गुप्तांग को स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास: अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अंगुष्ठयो:।
ॐ ईं सुखड्गाय स्वाहा तर्जन्यै।
ॐ ऊं वज्राय स्वाहा मध्यमाभ्यो:।
ॐ ऐं पाशाय स्वाहा अनामिकाभ्यो:।
ॐ औं अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठिकभ्यो:।
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतल कर पृष्ठभ्यो:।