Deodar Cedar Benefits | देवदारु के लाभ
Different Names of Deodar Cedar Benefits (देवदारु):
- Sanskrit — Devdaru, Daru, kilim
- Gujarati — Deodar
- Hindi — Devdaru
- Parsee — Deodar
- Bengali — Devdaru
- Arabian — Shazar Tulzin
- Marathi — Telya deodar
- Latin — Cedrus deodara
Brief description of Deodar Cedar:
Deodar Cedar (Deodar Cedar Benefits) is a species of cedar native to the western Himalayas in eastern Afghanistan, northern Pakistan and India (Jammu and Kashmir, Himachal Pradesh, Sikkim, Darjeeling and Uttarakhand states), south western most Tibet and western Nepal, occurring at 1,500–3,200 m (4,921–10,499 ft) altitude. It is a large evergreen coniferous tree reaching 40–50 m (131–164 ft) tall, exceptionally 60 m (197 ft) with a trunk up to 3 m (10 ft) in diameter. It has a conic crown with level branches and drooping branchlets.
The leaves are needle-like, mostly 2.5–5 cm (0.98–1.97 in) long, occasionally up to 7 cm (2.8 in) long, slender (1 mm (0.039 in) thick), borne singly on long shoots, and in dense clusters of 20–30 on short shoots; they vary from bright green to glucose blue-green in colour. The female cones are barrel-shaped, 7–13 cm (2.8–5.1 in) long and 5–9 cm (2.0–3.5 in) broad, and disintegrate when mature (in 12 months) to release the winged seeds. The male cones are 4–6 cm (1.6–2.4 in) long, and shed their pollen in autumn.
Religious significance of Deodar Cedar:
The door frames made of Deodar Cedar wood brings prosperity in the family. There is no lack of anything.
If the wood of Deodar Cedar (Deodar Cedar Benefits) is used as the wood for Yajna along with rice, ghee and camphor, it will bring fortune. The members of the family remains healthy and the house is turned an abode of goddess Laxmi.
If dessert and sugar is buried under the tree of Deodar it will remove Pitri Dosha.
Astrological significance of Deodar Cedar:
The person having Sun on the mean house or Sun and Saturn are in the same house means in horoscope Sun has any malefic effect, at this condition the person should collect Deodar Cedar (Deodar Cedar Benefits), Mansil, saffron and cardamom, make powder of these, put the powder in the bathing water and take bath with that water, the problems due to Sun will be eradicated.
It can also be done that above powder is kept in a Muslin cloth and make a packet of that and daily before bath put into the bathing water and remove after a while and it is used from 4 to 5 days. Thereafter again make a new packet and the old one to be kept under a Peepal tree.
Vaastu significance of Deodar Cedar:
It is not inauspicious to have a Deodar tree (Deodar Cedar Benefits) inside the house boundary. But if it is in the south or north direction, it is better. North East direction is not favorable.
Medicinal significance of Deodar Cedar:
The heartwood is carminative, diaphoretic, diuretic and expectorant. A decoction of the wood is used in the treatment of fevers, flatulence, pulmonary and urinary disorders, rheumatism, piles, kidney stones, insomnia, diabetes etc. It has been used as an antidote to snake bites. The plant yields a medicinal essential oil by distillation of the wood; it is used in the treatment of phthisis, bronchitis, blennorrhagia and skin eruptions.
A resin obtained from the wood is used externally to treat bruises, skin diseases and injuries to joints. The bark is astringent. It has proved useful in the treatment of fevers, diarrhoea and dysentery. In Ayurvedic medicine the leaves are used in the treatment of tuberculosis. Oil obtained from the seed is diaphoretic. It is applied externally to treat skin diseases.
The outer bark and stem are astringent. Because of its antifungal and insect repellent properties, rooms made of Deodar (Deodar Cedar Benefits) wood are used to store meat and food grains like oats and wheat. Ayurvedic practitioners use preparations from the deodar tree (Deodar Cedar Benefits) to treat urinary tract problems, diabetes, obesity, to relieve pain, for skin problems, to aid digestion and to strengthen the heart muscles and to improve blood circulation. The oil is used for headaches, coughs, colds, hiccups, arthritis and a number of other ailments including gout.
देवदारु के लाभ | Deodar Cedar Benefits
देवदारु के विभिन्न नाम:
- संस्कृत में— देवदारु, दारु, भद्रदारु, मस्तदारु, द्रुकिलिम, किलिम, सुरभूरुह,
- हिन्दी में— देवदारु,
- बंगाली में— देवदारु,
- मराठी में— तेल्या देवदार,
- गुजराती में— देवदार,
- फारसी में— देवदार,
- तेलुगु में—देवदार चेक्का,
- अरबी में— शजर तुलजीन,
- अंग्रेजी में—Deodara Plant
- लेटिन में— सेडरस देवदार (Cedrus deodara)
देवदारु का संक्षिप्त परिचय:
इस देवदारु के पेड़ बहुत बड़े तथा ऊँचे होते हैं। देखने में यह नीचे से मोटे तथा ऊपर को गाय की पूंछ की तरह पतले होते जाते हैं। इसकी शाखायें पृथ्वी की तरफ झुकी रहती हैं। पत्ते लम्बे और कुछ गोलाई लिये होते हैं। फूल एरण्ड की तरह गुच्छों में लगते हैं। इस वृक्ष की ककड़ी के तख्ते, दरवाजे, खिड़कियां सभी घरों में लगाई जाती हैं। जिस घर में यह लगता है, वह सुगन्धित रहता है। यह अपनी सुगंध के लिये चिरपरिचित है। बाजार में जो चिकनी तेल युक्त लकड़ी मिलती है, वही देवदार होती है। देवदारु पर्वतीय प्रान्तों में बहुत बड़े-बड़े सर्वत्र देखे जा सकते है।
देवदारु का धार्मिक महत्व:
देवदारु की लकड़ी से बनी चौखटों के घर में सुख-शांति एवं समृद्धि बनी रहती है। वहां किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहती है।
इस देवदारु की लकड़ियाँ जलाकर उस पर चावल, घी और कपूर मिलाकर घर में कुछ दिनों तक हवन करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है, उस घर के सदस्य स्वस्थ रहते हैं तथा घर में लक्ष्मी का वास रहता है।
देवदारु के वृक्ष के नीचे शक्कर और मावा मिलाकर गाड़ने से पितृदोष का प्रभाव समाप्त होता है।
देवदारु का ज्योतिषीय में महत्व:
जिन व्यक्तियों की पत्रिका में सूर्य नीच राशी में हो या सूर्य शनि के साथ होता है अथवा सूर्य और शनि एक-दूसरे को देखते हैं अर्थात् पत्रिका में सूर्य किसी भी प्रकार से पीड़ित होता है तो ऐसी स्थिति में जातक को देवदारु, नागरमोथा, मेनसिल, केसर, इलायची और सुगंधबाला, इन समस्त सामग्रियों को मिलाकर पीसकर अपने स्नान के जल में डालकर उससे स्नान करना चाहिये। ऐसा करने से सूर्य की शांति होती है तथा सूर्य पीड़ा दूर होती है।
उपरोक्त सामग्री से स्नान की एक विधि यह भी है कि उपरोक्त सामग्री को किसी मलमल के कपड़े में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर उन्हें भली प्रकार से पोटली में बंद कर दें। स्नान के जल में इस पोटली को नित्य 2-5 मिनट तक रखकर फिर उस जल से स्नान कर लें। पोटली को दूसरे दिन पुन: प्रयोग करने हेतु किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें। एक ही पोटली का प्रयोग 4-5 दिन तक किया जा सकता है। इसके पश्चात् नई पोटली ले लें और पहले वाली को पीपल वृक्ष के नीचे छोड़ दें।
उपरोक्त वर्णित विधि अनुसार जो व्यक्ति कूट, कांगनी (माल कांगनी), सरसों, देवदारु और हल्दी से स्नान करता है, उसकी सर्वग्रह पीड़ा शांत होती है।
देवदारु के वृक्ष पर लगने वाले गोल गेंद के समान कोण परम दिव्य होते है। इन्हें शुभ मुहूर्त में घर में लाकर रखने से उस घर में सुख शान्ति बनी रहती है। घर में लक्ष्मी स्थिर होती है। सुख समृद्धि हर समय बनी रहती है। इस कोण को घर लाकर पहले शुद्ध जल से भली प्रकार धो लें। इसके पश्चात उसे गाय के दूध से स्नान कराएँ। स्नान के पश्चात उसे स्वच्छ करके उस पर गुलाब का इत्र लगाकर अगरबत्ती का धुआं दें। तत्पश्चात उसे पीले वस्त्र के ऊपर रखें। अब इसे पूजा के स्थान पर रखें अथवा पीले वस्त्र में लपेटकर तिजोरी में भी रख सकते है।
देवदारु का वास्तु में महत्व:
इस देवदारु के वृक्ष का घर की सीमा में होना अशुभ नहीं है। यदि यह घर में हो तो इसे नैऋत्य, दक्षिण अथवा पश्चिम दिशाओं में होना चाहिये। ईशान कोण में इसके होने से धन हानि एवं घर के मुखिया को स्वास्थ्य की परेशानी होती है।
देवदारु का औषधीय महत्व:
- शिरोशूल में इसकी छाल को घिसकर मस्तिष्क पर लेप करने से लाभ होता है।
- खाज एवं खुजली हो जाने पर इसकी छाल को जल में पीसकर मलहम की भांति लगाने से लाभ होता है।
- संधिशोथ में इसकी छाल को जल में पीसकर लगाने से लाभ होता है।
- देवदारु के क्वाथ से गनोरिया तथा सिफलिस में लाभ होता है।
- देवदारु की नर्म छाल एवं सौंठ का क्वाथ ह्रदय की धडकनों को नियंत्रित करता है।
- केवल देवदारु की छाल का क्वाथ श्वास रोग में लाभकारी है।
- कठिन शोथ में देवदारु के पत्र छाल, हल्दी एवं गूगल को जल में पीसकर लगाने से लाभ होता है।
- देवदारु का तेल कुष्ठ रोग पर लाभकारी है।
- एक्जिमा अथवा दाद पर इसका तेल परम लाभकारी है।
- कर्णशूल में इसके तेल की 2-3 बूंदें कान में डालने से आराम मिलता है।
- मुक्तावरोध में दो चम्मच छाल का काढ़ा पिलाने से लाभ होता है।
- रक्तशोधन हेतु भी इसका क्वाथ लाभदायक है।