Dus Mahavidya | 10 महाविधायें
Dus Mahavidya (10 महाविधायें): First of all Sati took the form of Kali. Her form was fearful, her hair untied and loose, her body the colour of a dark cloud. She had deep set eyes and eyebrows shaped like curved swords. She stood on a corpse, wore a garland of skulls. And earrings made from the bones of corpses. She had four hands – on one hand she had the head of a skull. And the other a curved sword with blood dripping on it. She had mudras on her other two hands – one giving freedom from fear and the other giving blessings. 10 महाविधायें
She roared and the ten directions were filled with that ferocious sound. The exploits of this Goddess Kali (10 महाविधायें) are outlined in the Chandi Path. She is the Goddess that killed Chanda and Munda and also drank the blood of Raktabija. She is known as Kaushiki (10 महाविधायें), She who came from within, and is the Slayer of Shumbha and Nishumbha. Kali is the first of the Dus Mahavidya. (10 महाविधायें)
10 महाविधायें She is beyond time. She takes away the darkness and fills us with the light of Wisdom, which is why she is the embodiment of Jnana Shakti 10 महाविधायें. She resides in the cremation grounds, where all creation dissolves. Goddess Ma Kali (10 महाविधायें) maintains the principal position among all the ten significant Dus Mahavidya’s (10 महाविधायें). Kali means “the black one”. Due to her complexion and appearance in black she is known as Ma Kali. The name Kali comes from kala, which means black, time, death or lord of death. In tantric Sadhna of Dus Mahavidya (10 महाविधायें) Sadhak consider Mahakali to be more influential and powerful giving immediate results. The aspirant Sadhak, having perfected this Sadhna get all Ashtsidhis. This Dus Mahavidya (10 महाविधायें) Sadhna evokes innumerable advantages which are realised instantly after the accomplishment of the Sadhna. (10 महाविधायें)
During the holocaust, Mahakali herself is capable of swallowing the god of death Mahakal. In appearance has a fierce look and made the garland of the chopped heads of Asura as beads. Her set of teeth is wacky, the tongue which was coming out from the mouth are pressed by the teeth and standing on the chest of her husband in a complete nude position. She is also holding the chopped heads of the Asuras by hand. She is having 4 arms and by two of them she is holding the Bilbo. And in other hand she is holding the chopped head by hair and blood is flowing profusely from the chopped heads. And by other hand she showing dauntlessness and showering the blessings.
Her scattered long hair is looking ferocious like a big black storm. She is equipped with three eyes and a small dead boy is hanging from her ears as ear rings. Her abode is in burning place of corpse and she adopted this appearance to kill Rakt Beej. Kali Sadhana is done to conquer over enemies. Kali Sadhana helps to defeat and make enemies powerless. Kali Sadhana is also performed to destroy diseases, to get rid of wicked spirits, wicked planets, fear of sudden death and to gain poetic skills.
महाकाली महाविधा 10 महाविधायें:
10 महाविधायें संसार की आदि शक्ति स्वरूप म 10 महाविधायें (Dus Mahavidya/10 महाविधायें), जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को अपने अंदर समाये हुए है, जो अपने साधक को अभय प्रदान करती है, जिसकी साधना से प्रचंड से प्रचंड शत्रु भी सामने टिक नही पाते, जीवन भय मुक्त रोग मुक्त बना रहता है। इस महाविद्या की साधना करने वाला साधक जन्म तथा मृत्यु रूपी चक्र से मुक्त रहकर मोक्ष प्राप्त करता है। 10 महाविधायें
10 महाविधायें महाकाली अपने भैरव महाकाल की छाती पर प्रत्यालीढ़ मुद्रा में खड़ी, घनघोर-रूपा महाशक्ति महाकाली के नाम से विख्यात हैं। वास्तव में देवी महाकाली (10 महाविधायें) साक्षात आदि शक्ति स्वरूप हैं, जो इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व सर्वत्र अंधकार ही अंधकार से उत्पन्न हुई है, इस कारण इनका नाम काली नाम से विख्यात हैं। (10 महाविधायें) अंधकार से जन्म होने के कारण यह देवी काले रंग वाली तथा तामसी गुण से सम्पन्न हैं। इन्हीं की इच्छा शक्ति ने ही इस संपूर्ण चराचर जगत को उत्पन्न किया हैं तथा समस्त शक्तियां प्रत्यक्ष तथा अदृश्य रूप से इन्हीं का स्वरूप मानी गयी हैं। 10 महाविधायें
प्रलय काल में महाकाली (10 महाविधायें) स्वयं मृत्यु के देवता महाकाल को भी भक्षण करने में समर्थ हैं। देखने में महा-शक्ति महाकाली अत्यंत भयानक एवं डरावनी हैं, असुर जो स्वभाव से ही दुष्ट थे उनके कटे हुए मस्तकों की माला देवी धारण करती हैं। इनके दंत-पंक्ति अत्यंत विकराल हैं, मुंह से निकली हुई जिह्वा को देवी अपने भयानक दन्त से दबाये हुए हैं और स्वामी की छाती पर नग्न अवस्था में खड़ी हैं। कुछ एक रूपों में तो यह देवी दैत्यों (10 महाविधायें) के कटे हुए हाथों की करधनी धारण करती हैं। देवी महा-काली (10 महाविधायें) चार भुजाओं से युक्त हैं जो अपने दोनों हाथों में खड़ग तथा दुष्ट दैत्य का कटा हुआ सर पकड़े हुए हैं, जिससे रक्त की धारा बह रही है तथा बाएँ भुजाओं से सज्जनों को अभय तथा आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इनके बिखरे हुए लम्बे काले केश हैं जो अत्यंत भयानक प्रतीत होते हैं जैसे कोई भयानक आँधी के काले विकराल बादल समूह हो।
काली देवी (10 महाविधायें) तीन नेत्रों से युक्त हैं तथा बालक शव को देवी ने कुंडल रूप में अपने कान में धारण कर रखा हैं। देवी रक्त प्रिया तथा महा-श्मशान में वास करने वाली हैं, देवी ने ऐसा भयंकर रूप रक्तबीज के वध के लिए धारण किया था। इस प्रकार 10 महाविधायें/Dus Mahavidya में सर्वश्रेष्ठ महाका ली साधना मानी गयी, जो कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायी एवं साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति में सहायक हैं। जब जीवन में प्रबल पुण्योदय होता है तभी साधक ऐसी प्रबल शत्रुहन्ता, महिषासुर मर्दिनी, वाक् सिद्धि प्रदायक महाकाली (10 महाविधायें) साधना सम्पन्न करता है। इस साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।
Tara Mahavidya | तारा महाविधा
Among Dus Mahavidya Tara is the best one, who keeps the knowledge of all the wisdoms. She removes the poverty of her devotees, enemy, illiteracy, obstacles due to tantric activities, deadliness etc. The person accomplishes Devi Tara gets the salvation from the birth and death circle.
Goddess Tara is very much similar to Kali in appearance. Both are shown as standing upon a supine Lord Shiva with protruding tongue. However while Kali is described as black, Tara is portrait as blue. Both wear a necklace of severed human head.
Tara wears a tiger-skin skirt while Kali wears only a girdle of severed human arms. Both have a lolling tongue and blood oozes from their mouths. Goddess Tara, unlike Goddess Kali, holds a lotus in one of the above arms and a pair of scissors in one of the lower arms. In remaining two arms Goddess Tara holds bloody Kripana and Kapala (skull-cup) filled with the blood.
When Mahakali, to kill the demon Haygreev, appeared with full blue skin colour, this form is called vehement form of Tara and became famous by this name. It is considered as a point in the sky which is the destroying power of Lord Rama which killed Ravana. It is most closely concerned with salvation. During the period of Churning the sea and thereafter consuming poison came out from this by lord Shiva and thereafter to make the poison inactive she fed her breast milk to lord Shiva making him an infant. This act relieved lord Shiva from the burning sensation of the poison. She as a mother of the world can give relief to any of the most harmful and fearful situation.
Devi Tara Sadhana is done to achieve sudden gain of wealth and prosperity. Tara Sadhana sprouts seed of wisdom and knowledge in the heart of the worshipper. In tantric Sadhna of Dus Mahavidya Sadhak consider Maa Tara to give immediate results to obtain knowledge, wisdom, and power of speech, pleasure and salvation. The aspirant Sadhak, having perfected this Dus Mahavidya Sadhna get all Ashtsidhis. This Dus Mahavidya Sadhna evokes innumerable advantages for all round prosperity, expansion of business, name and fame, destruction of enemies which are realized instantly after the accomplishment of the Sadhna.
Sadhna of Tara ma requires proper initiation by an able teacher (Guru) but yet one can attain her blessings by other means of worship. Goddess Tara is pleased by chanting mantras, doing worship either on the image, or by the help of Yantras (mystical diagrams) and by certain rituals and offerings etc. Ones goddess Tara is pleased then all the aspirations of man get fulfilled. Maa gives every materialistic prosperity to the Sadhak and eliminates his enemies.
तारा महाविधा:
10 महाविधायें (Dus Mahavidya) में महाविद्या तारा जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में उत्कृष्ट तथा सर्व ज्ञान से सम्बन्ध रखती हैं और अपने भक्त को दरिद्रता, शत्रु, अज्ञान, तन्त्र बाधा, भय जैसे घोर संकट से मुक्त करने वाली मानी गयी है। इस महाविद्या की साधना करने वाला साधक जन्म तथा मृत्यु रूपी चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
जब महाकाली देवी ने “हयग्रीव” नामक दैत्य का वध करने के लिए नील रंग का शरीर धारण किया तो वह देवी का उग्र स्वरूप “उग्रतारा” के नाम से विख्यात हुआ। तारा देवी आकाश में एक प्रकाश बिंदु तारे के समान मानी गयी हैं जो श्री भगवान राम की वह विध्वंसक शक्ति हैं, जिन्होंने रावण का वध किया था। महाविद्या (Dus Mahavidya) तारा मोक्ष प्रदान करने तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाली महाशक्ति हैं। इस देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध मुक्ति से हैं फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र से हो या अन्य किसी प्रकार का कोई संकट। भगवान शिव द्वारा समुद्र मंथन के समय हलाहल विष पान करने पर उनके शारीरिक पीड़ा के निवारण हेतु माँ भगवती तारा ने माता की भांति भगवान शिव को शिशु रूप में परिणति कर, अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। जिससे भगवान शिव को शारीरिक पीड़ा जलन से मुक्ति मिली थीं। भगवती तारा महाविद्या (Dus Mahavidya) जगत जननी माता के रूप में एवं घोर से घोर संकटो से मुक्ति दिलाने में समर्थ है। देवी के भैरव शिव माने गये है।
देवी की आराधना, साधना मोक्ष प्राप्त करने हेतु, तांत्रिक पद्धति से की जाती हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जितना भी ज्ञान इधर-उधर फैला हुआ हैं, वह सब इन्हीं देवी तारा या नील सरस्वती का स्वरूप ही हैं। देवी का निवास स्थान घोर महाश्मशान हैं। देवी ज्वलंत चिता में रखे हुए शव के ऊपर प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये नग्न अवस्था में खड़ी हैं और कहीं-कहीं देवी बाघाम्बर भी धारण करती हैं जो नर खप्परों तथा हड्डियों की मालाओं से अलंकृत हैं तथा इनके आभूषण सर्प हैं। तीन नेत्रों वाली देवी उग्र तारा स्वरूप से अत्यंत भयानक प्रतीत होती हैं।
तारा महाविद्या (Dus Mahavidya) साधना आर्थिक उन्नति एवं अन्य बाधाओं के निवारण के लिए की जाती है। इस साधना के सिद्ध होने पर साधक के जीवन में आय के नित्य नये स्रोत खुलने लगते हैं और ऐसा माना जाता है कि माँ भगवती तारा प्रसन्न होकर नित्य साधक को दो तोले सोना प्रदान करती है, जिससे साधक किसी भी प्रकार से दरिद्र न रहे ऐसा साधक पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर जीवन में पूर्णता प्राप्त करता है और जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है।
Chhinnamasta | छिन्नमस्ता
Chhinnamasta is the 5th Mahavidya who is symbolized for useless and amorousness sacrifices. Goddess Ma Chhinnamastika maintains the fifth significant position among all the ten Das Mahavidya’s. Chhinnamasta “She whose head is severed”, often spelled Chhinnamasta and also called Chhinnamastika or Prachanda Chandika is one of the ten Tantric goddesses and an aspect of tantric Devi marked by extreme and violent energy. The self-beheaded goddess holds her own severed head in one hand, a stout sword with a curved blade and thick back in another. Three jets of blood gush forth in a sudden stream out of her bleeding neck and are drunk by her severed head and two attendants known as Dakini and Varnani. Chhinnamasta is usually represented graphically by sketch standing on a copulating couple. She symbolizes both aspects of Devi: a life-giver and a life-taker.
The form of Devi Chhinnamasta is vehement fierce and terrible. She is different from other goddesses. She represents all the three qualities. She also represents the change of circle of Universe.
She is worshipped by Jain cults and Buddhist cults also. Buddhists call her as Chhinnamasta Vajravarahi. She shows the truth of a life death. She also controls the sexual anxiety. Chhinnamasta refers to ridding ourselves of false notions and the limitations in which we are bound. Her depiction also helps to overcome self-pity, fear, and pain of death. She stands for essential freedom. This idea of freedom is expressed by her nudity.
Chhinnamasta is depicted as a girl of sixteen years adorned with garland of skulls and necklaces of bones. She wears on her naked body a serpent as the sacred thread and she has full breasts covered by lotus flowers and strings of beads. But the most gruesome aspect of her is that she has cut off her own head with a sword; and holds in her hands the severed head as also the sword. The blood gushing out of her decapitated head sprouts in three jets. The central jet streams into the mouth of her own head , usually held in her left hand , while the other two jets fall into the mouths of her two companions – Dakini and Varnini – standing on her either side.
She stands against the backdrop of thunder and lightning with her head in hand. She is not dead; but is said to be in a state of amanaska, free from human follies, distractions and sensations of pain etc. The beheaded –head of Chhinnamasta is shown ecstatically drinking the central stream of blood flowing out of her headless trunk. It displays three eyes wide open in joy; and a lovely face lit up with a beatific smile. The hair on the head is dishevelled and adorned with fragrant flowers. The head is decorated with a well crafted diadem, as also ear and nose rings. The more amazing sight is that headless naked trunk of Chhinnamasta is standing upon a handsome couple engaged in sex in the viparita-maithuna posture (the female on top of her male partner) stretched over a lotus flower.
The scene of the activity is a cremation ground set against the background of hills, river, flowers amidst thunder and lightning. The loving couple in each other’s arms, engrossed in sex and blissfully unaware of anything outside their act, are identified Kama or Manamatha the god of desire (like Eros) and his companion Rati the very act of sex. A couple of jackals watch the scene with little interest. There are also depictions where Chhinnamasta is riding over a supine Shiva.
The accomplishment of Chhinnamasta provides beauty, sexual anxiety, fortune and monstrous power. It is a high level accomplishment which provides all the desired things people want. This accomplishment gives full spiritual satisfaction.
छिन्नमस्ता
तन्त्र की महाविद्याओं/Dus Mahavidya में पांचवें स्थान पर अवस्थित महाविद्या छिन्नमस्ता हैं जो अनावश्यक तथा अत्यधिक वासना, मनोरथों के बलिदान की प्रतीक मानी जाती है। इनकी साधना से सभी प्रकार के शत्रु नष्ट हो जाते है और जातक को असुरी शक्तियों की प्राप्ति होती है।
छिन्नमस्ता शब्द दो शब्द के योग से बना हैं, प्रथम छिन्न और दूसरा मस्ता, दोनों शब्दों का अर्थ हैं, छिन्न अर्थ अलग या पृथक तथा मस्ता अर्थ मस्तक, इस प्रकार जिनका मस्तक देह से अलग हैं वे छिन्नमस्ता कहलाती हैं। देवी अपने मस्तक को अपने ही हाथों से काट कर, अपने अन्य हाथ में धारण की हुई हैं। मस्तक कट जाने के पश्चात भी देवी जीवित हैं, यह देवी की श्रेष्ठ योग साधना की ओर प्रेरित करती हैं, जो योग साधना के उच्चतम स्तर पर अवस्थित हैं। यह देवी प्रचंड चंडिका के नाम से भी जानी जाती हैं, जो अत्यंत उग्र स्वभाव वाली हैं।
देवी का यह स्वरूप घोर डरावना, भयंकर तथा उग्र हैं। देवी छिन्नमस्ता का स्वरूप अन्य समस्त देवी-देवताओं से भिन्न हैं। देवी स्वयं ही तीनों गुण सात्विक, राजसिक तथा तामसिक का प्रतिनिधित्व करती हैं, त्रिगुणमयी सम्पन्न हैं। देवी ब्रह्माण्ड के परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं, संपूर्ण ब्रह्मांड इस चक्र पर टिका हुआ हैं।
देवी छिन्नमस्ता की आराधना जैन तथा बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में देवी “छिन्नमुण्डा वज्रवराही” के नाम से जानी जाती हैं। देवी जीवन के परम सत्य मृत्यु को दर्शाती हैं, वासना से नूतन जीवन की उत्पत्ति तथा अंततः मृत्यु की प्रतीक स्वरूप हैं। महाविद्या छिन्नमस्ता योग अभ्यास के पर्यन्त इच्छाओं के नियंत्रण और यौन वासना के दमन का प्रतिनिधित्व करती हैं।
छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत ही गोपनीय हैं, जिसे कोई सिद्ध पुरुष ही जान सकता हैं। देवी के कटे हुए गले से रक्त की तीन धार निर्गत हो रही हैं, जिनमें से देवी एक धार से स्वयं रक्त-पान कर रहीं हैं तथा अन्य दो धाराएँ इन्होंने अपनी सखी सहचरियों को पान कराने हेतु प्रदान कर रखी हैं। इनके साथ इनकी दो सखी सहचरी डाकिनी तथा वारिणी हैं, जिनके क्षुधा निवारण हेतु ही देवी ने अपने ही खड्ग से स्वयं अपने मस्तक को अलग कर दिया। देवी कामदेव तथा रति के ऊपर विराजमान हैं, यहाँ वे काम या अत्यधिक अनावश्यक वासनाओं से उत्पन्न विनाश को प्रदर्शित कर रहीं हैं। देवी के आभूषण सर्प हैं, देवी तीन नेत्रों से युक्त तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं तथा इन्होंने नर-मुंडो की माला धारण कर रखी हैं।
छिन्नमस्ता महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व आसुरी शक्तियों की प्राप्ति होती है। वास्तव में छिन्नमस्ता महाविद्या उच्चकोटि की महा तंत्र साधना है, जिसके करने से ऐसा कुछ रह ही नहीं जाता जो मनुष्य चाहता हो। यह साधना भौतिक और पूर्ण आध्यात्मिक उन्नति देने वाली साधना कही जाती है।
Tripur Sundari | त्रिपुर सुंदरी
Tripursundari is the primary goddess associated with the Shakta Tantric tradition known as Sri Vidya. As Sodhashi, Tripursundari is represented as a sixteen-year-old girl, and is believed to embody sixteen types of desire. This Mahavidya is third from the beginning. Its accomplishment can make a person handsome. She is believed to provide all the luxuries of life. She is the goddess of fulfilling all the desires and dormant of all the Vidyas.
In tantric Sadhna of Dus Mahavidya Sadhna Sadhak consider ma Tripur Sundari to give immediate results to obtain beauty, good fortune, wealth, pleasure and salvation. The aspirant Sadhak, having perfected this Sadhna get all Ashtsidhis. This Sadhna evokes innumerable advantages for all round financial prosperity and stability, expansion of business, name and fame, blesses with long and prosperous married life.
The results are realized instantly after the accomplishment of the Dus Mahavidya Sadhna. Tripur Sundari Mahavidya is Adishakti who is also called Sodhashi, Raj-Rajeshwari, Bala, Lalita, Meenakshi and Kameshwari. According to her name she is the most beautiful and a last long youth. Her beauty deludes all the three regions.
Goddess Ma Tripur Sundari also known as Sodhashi or Sri Vidya maintains the third significant position among all the ten Dus Mahavidya’s. She is the one having extreme beauty and possessing power of delighting the senses, exciting intellectual and emotional admiration in the three worlds of Akash, Patal and Dharti. She always remain sixteen years old making herself attractive or lovable and to be called by the name Sodhashi. Goddess Tripur Sundari is also called Sodhashi because she posses all the sixteen supernatural powers. She is the Supreme Deity of the Sri Kul lineage. She is the most adorable “Tantric Parvati” or the “Moksha Mukuta” by the tantric Sadhak. Kamakhya Pith is concerned with Tripur Sundari wherein Sati’s Yoni fell. Here Devi’s Vagina is being worshipped.
Tripura Sundari is described as being dusky, red or golden in complexion and in union with Lord Shiva. The couple is portrayed on a bed, a throne or a pedestal that is upheld by Brahma, Vishnu, Rudra, Ishana and SadaShiva forming the plank.
Goddess Sodhashi has a third eye on the forehead. She is clad in red costume and richly be jewelled. She sits on a lotus seat laid on a golden throne. She is shown with four arms in which she holds five arrows of flowers, a noose, a goad and sugarcane as a bow. The noose represents attachment, the goad represents repulsion, the sugarcane bow represents the mind and the arrows are the five sense objects.
Sodhashi Sadhana is done for pleasure as well as for liberation. Tripura Sundari Sadhana provides strength to control body, mind and emotions. Sodhashi Sadhana is also done for family pleasure, favourable life partner and potency.
रूद्रहीन विष्णु हीनं न वदन्नि जन: किल ।
शक्ति हीन यथा सर्व प्रवदन्ति नराधम ।।
Rudraheen Vishnu Heenam Na Vadanti janah kil ।
Shakti Heen Yatha Sarv Pravadanti Naradham ।।
It means nobody should disdain others by saying Rudra Heen or Vishnu Heen. But one can be disdained by saying useless, impotent, weak etc. Therefore one should be powerful. Power means happiness, fortune, might and grace and that can be achieved by adoration of Tripur Sundari.
षोडशी त्रिपुर सुंदरी
तीनों लोकों में सर्वाधिक सुन्दर एक सोलह वर्षीय चिर यौवन युवती जिसको षोडशी महात्रिपुरसुंदरी के नाम से जाना जाता है, जो 10 महाविधायें (Dus Mahavidya) में अपना तीसरा स्थान रखती है। जिसकी साधना से अत्यंत ही सौन्दर्यवान बना जा सकता है। जो जीवन के प्रत्येक सुख को प्रदान करने में समर्थ है चाहे वो सुख भौतिक हो या आध्यात्मिक सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाली महाविद्या जो श्रीविद्या की अधिष्ठात्री है।
त्रिपुरसुंदरी महाविद्या स्वयं आदिशक्ति हैं जो षोडशी, राज-राजेश्वरी, बाला, ललिता, मिनाक्षी, कामेश्वरी अन्य नाम से भी विख्यात हैं। अपने नाम के अनुसार देवी तीनों लोकों में सर्वाधिक सुंदर हैं तथा चिर यौवन युक्त 16 वर्षीय युवती हैं। इनका रूप तथा यौवन तीनों लोकों में सभी को मोहित करने वाला हैं।
यह महाविद्या/Dus Mahavidya मुख्यतः सुंदरता एवं यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है। सोलह अंक जो पूर्णतः का प्रतीक हैं (सोलह की मात्रा में प्रत्येक वस्तु पूर्ण मानी जाती हैं) देवी सोलह प्रकार की कलाओं से पूर्ण हैं और सोलह प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं तात्पर्य हैं सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं जिसके कारण यह महाविद्या षोडशी नाम से भी जानी जाती हैं। षोडशी देवी श्री रूप में धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से विख्यात हैं। इन्हीं की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन की अधिष्ठात्री ने श्री की उपाधि प्राप्त की है। श्री यंत्र जो यंत्रो में शिरोमणि हैं वह देवी का साक्षात् स्वरूप है। देवी की आराधना-पूजा श्री यंत्र में की जाती हैं। कामाख्या पीठ महाविद्या त्रिपुरसुन्दरी से ही सम्बंधित तंत्र पीठ माना जाता हैं जहाँ सती की योनि गिरी थीं। यहाँ स्त्री योनि के रूप में देवी की पूजा आराधना होती हैं।
यह महाविद्या/Dus Mahavidya शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव की नाभि से निकल कर कमल-आसन पर बैठी हुई हैं, इनके चार भुजाएं हैं तथा अपने चार भुजाओं में देवी पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करती हैं। देवी के आसन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा यमराज अपने मस्तक पर धारण किये हुए हैं, देवी तीन नेत्रों से युक्त एवं मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए अत्यंत मनोहर प्रतीत होती हैं। सहस्रों उगते हुए सूर्य के समान कांति के समान वर्ण वाली हैं। महाविद्या त्रिपुरसुंदरी का घनिष्ठ सम्बन्ध पारलौकिक शक्तियों से हैं। समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी गयी हैं। तंत्र में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन आदि कर्म इनकी कृपा के बिना पूर्ण नहीं होते हैं। अपने भक्तों को हर प्रकार की शक्ति देने में यह महाविद्या समर्थ हैं।
त्रिपुरसुंदरी महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व शरीर सुख के साथ-साथ वशीकरण, सरस्वती सिद्धि, लक्ष्मी सिद्धि, आरोग्य आसानी से प्राप्त की जा सकती है। वास्तव में त्रिपुर सुन्दरी साधना को राजराजेश्वरी कहा गया है क्योंकि यह अपनी कृपा से साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।
रूद्रहीन विष्णु हीनं न वदन्नि जन: किल ।
शक्ति हीन यथा सर्व प्रवदन्ति नराधम ।।
अर्थात् रूद्रहीन, विष्णुहीन कहकर किसी का तिरस्कार नहीं किया जाता, अपितु शक्तिहीन, अशक्त, नपुंसक, निकम्मा, किसी काम का नहीं, ऐसा कहकर अनादर, अपमान अवश्य ही किया जाता है इसलिए जीवन में शक्तिमान होना आवश्यक है।
शक्ति का तात्पर्य है सुख, सुविधा, सौभाग्य, आनन्द, पराक्रम, बल, बुद्धि, युक्ति एवं ऐश्वर्य, उसी शक्ति तत्व के विभिन्न पक्षों को पूर्ण रूप से जाग्रत करने की साधना यह त्रिपुरसुंदरी साधना है।
Bhuvaneshwari | भुवनेश्वरी
She is sitting as empress in all the regions like Paradise, earth and inferno. She is known for fourth Mahavidya and famous to Bhubaneswari by name. Retainer of the whole world, guardians all the three regions is goddess Bhubaneswari.
When you sit back and think about Deity looking after each and every part of the manifested universe, it is not easy to gain perspective. The town, village or city in which we live has enough almost infinite series of variations and energy exchanges-and just contemplate what goes on in our body alone. Now expand that, expand beyond the earth’s boundaries and imagine floating through the vastness of space.
This vastness is what Mata Bhubaneswari embodies. Her direction in the Dus Mahavidya Sadhna is west. All this majesty and mystery is part of Bhubaneswari. This is the Mother not as the intimate mother to the soul, looking after your needs and welfare. No, this is the Mother in all her splendour, the Mother of inconceivable vastness and majesty.
Some of us will be more drawn to her in this aspect. She is what we imagine God to be, this being of such size that we cannot comprehend Her as a whole in our normal awareness, not at all. In the west, especially, we are most comfortable with this gigantic, epic conception. The interstellar reaches, the birth and death of stars, black holes, parallel universes, galaxies – all this is part of Bhuvaneshwari’s form.
The Mother as Bhubaneswari encompasses vastness and Space, which in Sanskrit is the fifth element Akash. “Thousands of suns and moons from Thy body do shine.” It is also connected with the heart-space, the sacred heart which is the resting place of the Divine in all of us. Her name in the Vedas is also Aditi, the great mother of all the Devas. Yet another name familiar to all: Maya, or Mahamaya, the great veiling power of the unmanifested becoming the manifest.
Bhuvana means world, Ishwari ruler, but nevertheless she is not an earth goddess at all, but a ruler of all space who fills it and protects it. This ruler ship gives her a calmness and serenity, a dispassion and mildness that makes her easy to approach. All troubles and woes disappear in the vastness and calmness of space. She is also known as Aditi, the primordial Mother.
Bhubaneswari therefore is connected with Kali, because she provides the cosmic ground on which Kali dances – thus Space provides the ground for Time. She is sacred ground, the ground on which all creation unfolds, and therefore the innermost sheath covering the unmanifested, Lord Shiva. Her name Bhuvana, means cosmos, and appears in a truncated form in the famous Gayatri mantra.
She is connected with Tripura Sundari because she represents Jnana Shakti, the energy from knowledge. The difference between the two is this calmness, the universal equipoise beyond all movement of passion or desire. She is the Mother who supports and interpenetrates all of creation, but the mother, too, without a court unlike Tripura Sundari.
And yet she is virtually unknown to the wider world! Clearly the world is not yet wide enough for this Goddess of the Universe. Perhaps in the West, her calmness and universality makes her the most easily understood of all the Mahavidyas. Again, there are echoes in other religions of her, especially the Egyptian Goddess Nut, whose depiction is of a giant form bestriding the night sky with a body made of stars.
We look out therefore at the goddess who inhabits all, as far as we can see. Her iconography is similar to Tripura Sundari except her colour, which despite her position in the west has the colour of the rising sun.
How to worship such a Goddess? How to worship such scale? For surely we then condemn ourselves to being the utterly insignificant speck on an utterly insignificant corner of an utterly insignificant galaxy. But the point about this massive conception of the Mother is that interpenetrates us to the depth of every cell, that she has infinite eyes, infinite limbs, and infinite senses. That she sports in us, and therefore connects us with every other part of her.
Akash, her medium, is all pervading in the manifested world. It is the ground of manifestation; it is what everything floats in, from the nucleus, the atom, to the biggest neutron star. Space is pervasive; this is another part of her message for us.
After being tortured by the monster Durgam, all the gods went to Himalaya to dithyramb Bhubaneswari Devi. She had filled all the water bodies with her tears and as Shakambhari Devi she appeared and fed everyone and thereafter killed Durgam and gave relief to everyone.
भुवनेश्वरी
तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) के महारानी पद पर स्थित है। यह चौथी महाविद्या भुवनेश्वरी नाम से विख्यात हैं। सम्पूर्ण जगत को धारण करने वाली जगत-धात्री देवी जो तीनों लोकों का पालन पोषण करने वाली ईश्वरी महाविद्या भुवनेश्वरी है।
तीनों लोक स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल की ईश्वरी महाविद्या भुवनेश्वरी नाम की शक्ति हैं, महाविद्याओं /Dus Mahavidya में देवी चौथे स्थान पर अवस्थित हैं। अपने नाम के अनुसार देवी त्रिभुवन या तीनों लोकों की स्वामिनी हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करती हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण का दायित्व इन्हीं भुवनेश्वरी देवी का हैं। कारणवश देवी जगत-माता तथा जगत-धात्री नाम से भी विख्यात हैं। पंच तत्व आकाश, वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल जिनसे चराचर जगत के प्रत्येक जीवित तथा अजीवित तत्व का निर्माण होता हैं, वह सब इन्हीं देवी की शक्तियों द्वारा संचालित होता हैं। पञ्च तत्वों को इन्हीं देवी भुवनेश्वरी ने निर्मित किया हैं। देवी की इच्छानुसार ही चराचर ब्रह्माण्ड (तीनों लोक) के समस्त तत्वों का निर्माण होता हैं। महाविद्या भुवनेश्वरी साक्षात् प्रकृति स्वरूपा हैं। देवी की तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं।
देवी भुवनेश्वरी, भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं। देवी नियंत्रक भी हैं तथा भूल करने वालों के लिए दंड का विधान भी करती हैं। इनकी भुजा में सुशोभित अंकुश नियंत्रक का प्रतीक हैं। जो विश्व को वामन करने हेतु वामा, शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्मा नियंत्रक, जीवों को दण्डित करने के परिणामस्वरूप रौद्री, प्रकृति निरूपण करने के कारण मूल-प्रकृति कही जाती हैं। भगवान शिव का वाम भाग देवी भुवनेश्वरी के रूप में जाना जाता हैं तथा सदा शिव को सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं।
देवी भुवनेश्वरी सौम्य तथा अरुण के समान अंग-कांति युक्त युवती हैं। देवी के मस्तक पर अर्ध चन्द्र सुशोभित हैं एवं तीन नेत्र हैं तथा मुखमंडल मंद-मंद मुस्कान की छटा युक्त हैं। देवी चार भुजाओं से युक्त हैं। दाहिने भुजाओं से देवी अभय तथा वर मुद्रा प्रदर्शित करती हैं तथा बाएं भुजाओं में पाश तथा अंकुश धारण करती हैं। देवी नाना प्रकार के अमूल्य रत्नों से युक्त विभिन्न अलंकार धारण करती हैं।
“दुर्गम” नामक दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त हो समस्त देवता तथा ब्राह्मणों ने हिमालय पर जाकर इन्हीं भुवनेश्वरी देवी की स्तुति की थीं। सताक्षी रूप में इन्होंने ही पृथ्वी के समस्त नदियों-जलाशयों को अपने अश्रु जल से भर दिया था। शाकम्भरी रूप में देवी ही अपने हाथों में नाना शाक-मूल इत्यादि खाद्य द्रव्य धारण कर प्रकट हुई तथा सभी जीवों को भोजन प्रदान किया। अंत में देवी ने दुर्गमासुर दैत्य का वध कर, तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्त किया तथा दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हुई।
Tripura Bhairavi | त्रिपुर भैरवी
The Great Cosmic Wisdom of the Hindu pantheon is Tripura Bhairavi, correlated both to the terrible force of destruction of the evil and impure, and to the energy of the subtle universal fire. The implications of these aspects are numerous. For instance, the purification action performed by the Great Cosmic Wisdom Tripura Bhairavi implies the manifestation of Her saviour aspect, because She saves Her devotees from all suffering and negative karma-ic pressures.
From an etymologic point of view, the name Bhairavi comes from three groups of letters, with a precise semantics: bha symbolizes the act of preservation, in the sense of continuity; ra signifies ramana, the creative divine activity and va coming from vamana, referring to the relaxation, or ceasing a certain activity.
Consequently, Tripura Bhairavi represents Gods extraordinary power to create, sustain, and in the same time destroy the manifested world. Unlike the governing gods of the Hindu pantheon (Brahma, Vishnu, and Shiva) who rule only upon one of these functions, Tripura Bhairavi represents in full harmony two fundamental and apparently contradicting aspects of the manifestation.
These aspects refer to the bright beauty and the terrible action in the creation. This perfect correlation of the divine attributes was stated also in the description of the Great Cosmic Wisdom Kali; however the Great Cosmic Wisdom Tripura Bhairavi represents specifically the terrible aspect of the divinity.
In other words, she signifies Gods amazing, colossal, unmatchable, and terrible force of action, which destroys all that, is bad and impure and in the same time transforms in the sense of evolution the various types of manifestation.
From this perspective, these transformations are “rebirths” from the ashes and sublimations of the various aspects of the Creation. Consequently, the Great Cosmic Wisdom Tripura Bhairavi represents the transformational power of the subtle fire (tejas tattva). Mata Bhairavi protects a person from the following: Worries, Accidents, Disrepute, Negative energies, Uncertainties, Nervousness, Malefic spirits, Tensions.
त्रिपुर भैरवी
महाविद्याओं में छठी महाविद्या त्रिपुर-भैरवी नाम से विख्यात हैं। देवी का स्वरूप अत्यंत उग्र, भयंकर तथा डरावना हैं जो विध्वंस की पूर्ण शक्ति मानी जाती हैं। यह महाविद्या त्रिपुर भैरवी भगवान शिव के विध्वंसक स्वरुप का प्रतीक है ।
त्रिपुर शब्द का अर्थ हैं, तीनों लोक स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तथा भैरवी शब्द विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हैं। तात्पर्य हैं तीन लोकों में नष्ट या विध्वंस की जो शक्ति हैं, वही त्रिपुर भैरवी हैं। यह देवी पूर्ण विनाश से सम्बंधित मानी गयी हैं तथा भगवान शिव जिनका सम्बन्ध विध्वंस या विनाश से हैं, देवी त्रिपुर भैरवी उन्हीं का स्वरूप हैं। देवी भैरवी विनाशकारी प्रकृति के साथ, विनाश से सम्बंधित पूर्ण ज्ञानमयी हैं, विध्वंस काल में अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप सहित, शिव की उपस्थिति के साथ संबंधित हैं। देवी तामसी गुण सम्पन्न हैं, देवी कालरात्रि या काली के रूप समान हैं।
देवी का सम्बन्ध विनाश से होते हुए भी वे सज्जन मानवों हेतु नम्र हैं। दुष्ट प्रवृति युक्त, पापी मानवों हेतु उग्र तथा विनाशकारी शक्ति मानी जाती हैं, त्रिपुर-सुंदरी देवी पापियों को विनाश कि ओर अग्रसित करती हैं। इस ब्रह्मांड में प्रत्येक तत्व नश्वर हैं तथा विनाश के बिना उत्पत्ति, नव कृति संभव नहीं हैं।
देवी की शक्ति ही जीवित प्राणी को मृत्यु की ओर अग्रसित करती हैं तथा मृत को पञ्च तत्वों में विलीन करती है। भैरवी शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना हैं, प्रथम ‘भै या भरणा‘ जिसका तात्पर्य ‘रक्षण’ से हैं, द्वितीय ‘र या रमणा‘ रचना तथा ‘वी या वमना‘ मुक्ति से सम्बंधित हैं। प्राकृतिक रूप से देवी घोर विध्वंसक प्रवृति से सम्बंध रखती हैं।
तन्त्र अनुसार योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर-भैरवी ही मानी जाती है। भैरवी देवी की साधना मुख्यतः घोर कर्मों में होती हैं, देवी ने ही उत्तम मधु पान कर महिषासुर का वध किया था। समस्त संसार देवी से ही प्रकाशित हैं, और एक दिन इन्हीं में लय हो जाएगा। जो भगवान् नरसिंह की अभिन्न शक्ति हैं, वही देवी त्रिपुर भैरवी कही जाती है। देवी गहरे शारीरिक वर्ण से युक्त एवं त्रिनेत्रा हैं तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। चार भुजाओं से युक्त देवी भैरवी अपने बाएं हाथों से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं और दाहिने हाथों में मानव खप्पर तथा खड्ग धारण करती हैं। देवी रुद्राक्ष तथा सर्पों के आभूषण धारण करती हैं, मानव खप्परों की माला देवी अपने गले में धारण करती हैं।
दस महाविद्याओं/Dus Mahavidya में त्रिपुर भैरवी महाविद्या, महाकाली स्वरूप ही मानी जाती है जिनकी साधना कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायी मानी गयी हैं। इस साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।
Dhumawati | धूमावती
Dhumawati is a Mahavidya/Dus Mahavidya, a smoky form of energy or Shakti. Dhumawati is a eternal widow, the energy without Shiva. Dhoomavati is one of Ten Mahavidyas. Dhoomavati is the divine mother at the time of the deluge, when the world was under water. She is often called tender-hearted and a bestower of boons. Dhumawati is described as a great teacher, one who reveals ultimate knowledge of the universe. Her ugly form teaches the devotee to look beyond the superficial, to look inwards and seek the inner truths of life.
Dhoomavati is the seventh Mahavidya. The Dus Mahavidya represent some or other incarnation or manifestation of the Divine Mother. They are regarded as Vidyas or different approaches to Tantric knowledge. The range of these ten goddesses covers the whole of feminine divinity, from horrific goddesses at one end, and a ravishingly beautiful and loving on the other. Dhumawati contains within herself all potentials and shows the latent energies that dwell within us. Among the Vidyas, She represents uncontrolled negative energy of the cosmos, hence shown as a widow.
‘Dhuma’ means ‘smoke’, so Dhumawati means one who is composed of smoke. Thus she is the smoky form of Shakti. She obscures what is evident and known to reveal the hidden and the profound. As the eternal widow, she is Shakti without her Siva. She therefore reveals all that is imperfect, the disappointments, sorrows, humiliation, defeat, loss and loneliness, and all the negative states in our ordinary existence in order that we may transcend it. Life is a struggle and one learns from the negative experiences and treating them as lessons in wisdom. This is what Dhumawati set out to teach by implication.
Dhumawati is the Divine Mother at the time of the deluge when the Earth was under water. Upon exit, she is called Alkshmi, the one who is without Lakshmi or radiance. The Dhumawati Tantra says that she is ugly, old, thin, unsteady, and angry. Her ears are hideous and rough, she has elongated teeth, and her breasts are drooping and hang down; something contrasting with the usual pomp and ceremony celestial depictions. Notwithstanding her ugly and fearsome appearance, she makes a boon conferring gesture, Varada mudras or knowledge giving gesture, Cinmudra. In one hand she holds a winnowing basket. She is tall and wears filthy garments. She is said to be fierce, frightening and fond of blood. She is sometimes shown holding a Agni-pot with fierce fires.
‘She has a nose shaped like a crow’s beak. She is sometimes said to resemble a crow, which appears as her emblem atop her chariot. It is carrion eater. Indeed, she herself is sometimes said to resemble a crow. It is also her vahana. She has black complexion and wearing ornaments made of snakes. Her dress is made of rags taken from cremation grounds. She holds a spear and a skull-cup, kapala in her two hands. The spear is sometimes replaced by a sword.
Another description in the same text says Dhumawati is aged with a wrinkled, angry face and cloud-like complexion. Her nose, eyes, and throat resemble that of a crow’s. She holds a broom, a winnowing fan, a torch, and a club. She is cruel and frowning. Her hair appears dishevelled and she wears the simple clothes of a beggar taken from a cemetery. Her breasts are dry. Her hair is grey, her teeth crooked and missing, and her clothes old and worn. The dress she wears has been taken from a corpse from cremation grounds. She is said to be the embodiment of the Tamas guna, the aspect of creation associated with lust and ignorance. She constantly yearns for food and drink and is never satisfied. Always hungry and thirsty, she likes to create conflict or quarrels and invokes fear. She is always terrifying in appearance. Her thousand-name hymn says that she likes liquor and meat, both of which are tamsic. She has the disposition of a widow. The goddess tends to be in a sad state of mind and is quarrelsome. Her eyes are fearsome, and her hands tremble. Her eyes are glaring red, stern, and without tenderness. Her lips too are red, covered with blood’.
The other name of Dhumawati is Nirhiti which is concerned with negative things like death, anger, misfortune, unfulfilled desire and jealousy. When this Mahavidya (Das Mahavidya Sadhna) is wrathful, it destroys everything. She is very much quarrelsome and lives in an inauspicious place. It exists in diseases, misfortune quarrel and poverty. In this era one should accomplish Dhumawati.
धूमावती
दस महाविद्याओं/Dus Mahavidya में सातवें स्थान में अवस्थित महाविद्या धूमावती, जो भगवान शिव की विधवा, कुरूप तथा अपवित्र देवी है जिनका स्वरूप अत्यंत ही क्रोधित है। जिनकी साधना तंत्र बाधा, शत्रु को जड़ से नष्ट करने, बर्बाद करने के लिए की जाती है। वह देवी धूमावती महाविद्या कही गयी है।
महाविद्या धूमावती अकेली स्वयं नियंत्रक हैं। इनकी अपने स्वामी में कोई रूचि नहीं हैं, यह देवी भगवान शिव की विधवा मानी जाती हैं। 10 महाविधायें/Dus Mahavidya की श्रेणी में देवी धूमावती सातवें स्थान पर अवस्थित हैं, जो उग्र स्वभाव वाली मानी गयी है। देवी का सम्बन्ध ब्रह्माण्ड के महाप्रलय के पश्चात उस स्थिति से हैं, जहां वे अकेली होती हैं अर्थात समस्त स्थूल जगत के विनाश के कारण शून्य स्थिति रूप में अकेली विराजमान रहती हैं। महाप्रलय के पश्चात केवल मात्र देवी की शक्ति ही चारों ओर विद्यमान रहती हैं। देवी का स्वरूप धुएं के समान हैं। तीव्र क्षुधा हेतु इन्होंने अपने पति भगवान शिव का ही भक्षण किया था, जिसके पश्चात शिव जी धुएं के रूप में देवी के शरीर से बाहर निकले थे इसलिए देवी धुएं के रूप में अवस्थित रहती हैं।
देवी दरिद्रों के घर में दरिद्रता के रूप में विद्यमान रहती हैं, जो अलक्ष्मी नाम से विख्यात हैं। अलक्ष्मी, देवी लक्ष्मी की बहन हैं परन्तु गुण तथा स्वभाव से पूर्णतः विपरीत हैं। देवी धूमावती की उपस्थिति, सूर्य अस्त पश्चात प्रदोष काल पश्चात रहती हैं तथा देवी अंधकारमय स्थानों पर आश्रय लेती हैं। देवी का सम्बन्ध स्थाई अस्वस्थता से भी हैं फिर वह शारीरिक हो या मानसिक।
धूमावती देवी का अन्य नाम ‘निऋति” भी हैं, जिनका सम्बन्ध मृत्यु, क्रोध, दुर्भाग्य, सड़न, अपूर्ण अभिलाषाओं जैसे नकारात्मक विचारों तथा तथ्यों से हैं जो जीवन में नकारात्मक भावनाओं को जन्म देता हैं। यह देवी कुपित होने पर समस्त अभिलाषित मनोकामनाओं सुख, धन तथा समृद्धि का नाश कर देती हैं जोकि कलह प्रिया हैं। यह अपवित्र स्थानों में वास करती हैं। रोग, दुर्भाग्य, कलह, निर्धनता, दुःख के रूप में देवी विद्यमान रहती हैं।
धूमावती का स्वरूप अत्यंत ही कुरूप हैं, भद्दे एवं विकट दन्त पंक्ति हैं, एक वृद्ध महिला के समान देवी दिखाई देती हैं। विधवा होने के कारण देवी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। श्वेत वर्ण ही इन्हें प्रिय हैं, तीन नेत्रों से युक्त भद्दी छवि युक्त हैं। धूमावती देवी रुद्राक्ष की माला आभूषण रूप में धारण करती हैं, इनके हाथों में एक सूप हैं, माना जाता हैं देवी जिस पर कुपित होती हैं, उसके समस्त सुख इत्यादि अपने सूप पर ही ले जाती हैं। इन्होंने ही अपने शरीर से उग्र-चंडिका को प्रकट किया हैं, देवी सर्वदा ही अतृप्त हैं, इनकी भूख जो कभी पूरी नहीं होती, असुरों के कच्चे मांस से इनकी अंगभूत शिखाएं तृप्त होती है।
महाविद्या धूमावती अपने शत्रु के लिए सदा भूखी रहती है, जिनकी साधना करने से सभी प्रकार के शत्रु जड़ से समाप्त हो जाते है और इस लायक नहीं होते की कभी सामने उपस्थित हो, आजकल के घोर कलयुग में इस साधना को अवश्य ही करना चाहिये।
Bagalamukhi | बगलामुखी
Ma Bagalamukhi is the creator, controller and destroyer of whole universe. She is Aadi Shakti means she is the energy which is the reason for the existence of this whole universe. Without energy no one can survive. She is the supreme power. She is also known as Pitambara Devi.
It has been said about Ma Bagalamukhi that if an aspirant meditates on her lotus feet only one time, his all the sins are removed at once, if one meditates two times his all the disasters are ruined without any delay and the person who meditates three times at her lotus feet his all the impossible tasks turn into possibility.
I have never seen a moment in my life when I had to asked her for any particular desire till then I have come to her shelter. Ma Bagalamukhi is the source of all Knowledge. She is both the source of delusion, and also the release from that delusion. She is the foundation and supporter of our known universe, and of all invisible universes. She is called “Stambhan-Shakti” due to her restrictive power. She has the power to restrain every person or thing which stands against her child.
Mother Bagalamukhi is known as the Ultimate Power, having “atomic” capabilities to destroy opposition. This cosmic power, along with its compliment Lord Eka Vaktra Maha Rudra (Mrityunjaya) rules over the planet Mars, which is responsible for courage, valour and adventure. “Adventure” in this context stands for protection against evil, and especially those forces ruled by Mars – i.e. soldiers, police, and so forth. The tantric utilizes Bagalamukhi Mahashakti to prevail over litigation, overcome enemies, and achieve stability in Life. Dangerous animals, anti-social elements and even gangsters can be controlled by the proper utilization of this Mahavidya.
However, it is not fair to represent Bagalamukhi (as many have done) as the goddess of black power or black magic. In fact this is only one small aspect of the complete picture. Although it is true that Bagalamukhi Mahavidya (Dus Mahavidya) is generally known for Her protective power, another important aspect of this Mahavidya is that She is a granter of prosperity. She is fully capable of granting all desirable things to her devotees. Health, wealth, attraction, and the Ultimate Liberation (Salvation) are the fruit of her devotion. A devotee who performs her sadhana will never be destroyed by his enemies. Unnatural death, uncontrolled diseases, unnatural tragedies can never affect her Sadhak. In practice, there exist mutually exclusive mantras for the attainment of prosperity and victory over enemies by the grace of this Mahavidya, which is called “Mandar Vidya”.
Further, this Mahashakti is an aspect of “Shri Kul” which is known as the left hand of Lord Vishnu. So in that sense she is like the Goddess Laxmi (the goddess of wealth and spouse of Lord Vishnu). This Shakti (power) is the helper of ‘Parbrahma’ (supreme power of the universe) & controller of the speech, movement and knowledge. So please don’t regard her as merely a deity of destruction, but rather understand Her as a power of ‘Parbrahma’, or ‘Brahmashakti’, who takes everything according to the Divine Law. She can accomplish anything, but is never unfair or unjust. If you are on the wrong path, if you are unjust or harmful to the society to which you belong, you will never achieve success in your sadhana. So first, strive to be compassionate and direct your efforts towards the good for humanity. The Power is not to be used for selfish purposes.
बगलामुखी
तंत्र की उत्कृष्ट महाविद्या “बगलामुखी” जिसके नाम से अच्छे से अच्छे तांत्रिक कांपने लगते है जो ब्रह्मास्त्र का रूप मानी जाती है। वह उच्चकोटि की महाविद्या/Dus Mahavidya बगलामुखी, 10 महाविधायें में आठवें स्थान पर विराजमान है। जिन्हें स्तंभन देवी पीताम्बरा के नाम से जाना जाता है।
बगलामुखी दो शब्दों के मेल से बना हैं, पहला “बगला” दूसरा “मुखी”, बगला से अर्थ है ‘विरूपण का कारण’ और मुखी का तात्पर्य मुख से है। बगलामुखी का सम्बन्ध मुख्यतः स्तम्भन कार्य से हैं फिर वह मनुष्य मुख, शत्रु, विपत्ति हो या कोई घोर प्राकृतिक आपदा ही क्यों न हो। महाविद्या बगलामुखी महाप्रलय जैसे महाविनाश को स्तंभित करने की पूर्ण शक्ति रखती हैं, देवी स्तंभन कार्य की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। स्तंभन कार्य के अनुरूप देवी ने ब्रह्म अस्त्र का स्वरूप धारण कर रखा है, जो तीनों लोकों में किसी को भी स्तंभित कर सकती हैं। शत्रुओं का नाश तथा कोर्ट-कचहरी में विजय हेतु देवी की कृपा अत्यंत आवश्यक हैं।
देवी पीताम्बरा “त्रि-भुवन” नाम से भी प्रसिद्ध हैं, पीताम्बरा शब्द भी दो शब्दों के मेल से बना हैं, पहला पीत दूसरा “अम्बरा” का अर्थ हैं, पीले रंग का अम्बर धारण करने वाली। देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिय हैं, पीले रंग से सम्बंधित द्रव्य ही इनकी साधना-आराधना में प्रयोग होते हैं, वे पीले फूलों की माला धारण करती हैं, देवी पीले रंग के वस्त्र इत्यादि धारण करती हैं। पीले रंग से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। पञ्च तत्वों द्वारा संपूर्ण ब्रह्माण्ड निर्मित हुआ हैं, जिनमें पृथ्वी तत्व का सम्बन्ध पीले रंग से होने के कारण देवी को पीला रंग प्रिय हैं। बगलामुखी देवी की साधना वाम मार्ग और दक्षिण मार्ग दोनों से की जाती है, जिसे तंत्र की सिद्ध शक्ति कहा जाता है।
महाविद्या/Dus Mahavidya बगलामुखी समुद्र मध्य स्थित मणिमय मंडप में स्थित रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त तथा मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए हैं, इनकी दो भुजाएँ हैं बाईं भुजा से इन्होंने शत्रु की जिह्वा पकड़ रखी हैं तथा दाहिने भुजा से इन्होंने मुगदर धारण कर रखी हैं। देवी का शारीरिक वर्ण सहस्रों उदित सूर्यों के समान हैं तथा नाना प्रकार के अमूल्य रत्न जड़ित आभूषण से देवी सुशोभित हैं। देवी का मुख मंडल अत्यंत ही सुन्दर तथा मनोरम हैं। सत्य-युग में सम्पूर्ण पृथ्वी को नष्ट करने वाला वामक्षेप (तूफान) आया था, जिसके कारण प्राणियों के जीवन पर संकट छा गया, तब भगवान विष्णु ने देवी बगलामुखी की सहायता से ही उस घोर तूफ़ान का स्तंभन किया तथा चराचर जगत के समस्त जीवों के प्राणों की रक्षा की थी। देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु के तेज से हुआ, जिसके कारण देवी सत्व गुण संपन्न हैं।
बगलामुखी 10 महाविधायें (Dus Mahavidya) में आठवें स्थान पर विराजमान है, इनकी साधना से शत्रु की बुद्धि, मति, दंत तालु, गति स्तंभित हो जाती है। शत्रु पशु की तरह आपके सामने रहता है और कभी भविष्य में आपको हानि पहुंचाने की कोशिश नहीं करता। यह साधना शीघ्र प्रभाव दिखाती है जो शत्रु को नष्ट करके धन, कार्य सिद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नित्य नवीन रास्ते खोल देती है।
Matangi | मातंगी
Matangi Mahavidya (Dus Mahavidya) is also known as Tantric Saraswati. Matangi is the Hindu Goddess of Inner Thought and Wisdom. This means she oversees the spoken word as she mystically presides over the more mystic inner kind of knowledge. Matangi is the ninth among the Dus Mahavidyas and is their doorkeeper but she is a primary form as the all powerful Goddess.
As the highest truth, she is not bound by caste regulations or rules. She is described as the Dark One, a form of Saraswati, incarnated as the daughter of Matang Rishi. A chandal who resisted the caste system and achieved brahimhood through karma. She worshiped Indra and later Goddess Saraswati and became his daughter. In the mythic cycle of Daksha Yajna, she appears as a manifestation of Sati, wife of Lord Siva and the Daksha’s daughter.
Lord Siva is also known as Malang. His Shakti or power is called Maatangi. The goddess has dark emerald complexion and possesses a disc of a moon on her forehead. The three-eyed goddess is seated on the crown decorated with jewels. Her eyes are intoxicated. She is sixteen with a full breast and slim waist. Below her navel are three horizontal folds of skin.
Her lustre is like a blue lotus and is destroyer like forest fire. In each of her four hands, she has a noose, a mace, an axe and a hook. She is a destroyer of the demons by enchanting them first with her beauty and fulfiller of every desire of her devotees. At times she is seen seated on a corpse, holding a skull and a bowl of blood and untidy long hair. She is sometimes depicted with dark green skin and three eyes and holds a parrot and a jewel encrusted Veena. This is the same musical instrument as Saraswati. Matangi is surrendered by nature especially birds, green and red parrots which represent a guru.
In mythology, Matangi is associated with Ucchista Matangi, the Goddess who loves pollution explained by her origins. Once, Lord Vishnu and his consort Lakshmi visited Lord Siva and Parvathi. The guests made food offerings, which while being tasted dropped to the floor. Ucchista means spittle defiled or polluted. From this Prasad evolved a maiden known as Ucchista Matangini. Matangi is also associated with Tantra. Pranatosini Tantra traces the origin of Matangini. Once Parvathi left Siva and did not return for some time. Siva disguised himself as an ornament maker and tested her faithfulness. Parvathi did not give in but became furious. Later Parvathi disguised herself as a huntress. Siva was so impressed and turned himself as a chandal. They made love and the goddess requested that they make love in the form of chandal for this form to last forever as Ucchista-Chandalini.
In Svatantra Tantra legend, sage Maatanga assumed austerities to suppress all creatures. After a considerable period, Goddess Tripursundari appeared and emitted rays from her eyes from which Kali emerged with a greenish complexion and took the form of Raja-Matangini. Thus creatures were all brought under control. Matangi is the advisor to Goddess Tripura Sundari who summons her to attain command over speech and knowledge. It is said that Matangi manifests herself as Goddess Meenakshi Amman at Madurai.
She is also worshipped as Ellama and this is connected to the myth of Parshuram placing the head of Renuka on a recluse woman. Renuka was the daughter of Renu. She was married to sage Jamadagni and their son was Parshuram. (Renuka-Ellamma would be posted under separate cover) Thus Matangi appears in varying conceptions. Her dhyanas too are diverse: Her complexion can range from white to depict Tantric Saraswati; brown or black to depict tribal chandal or green as Madurai Meenakshi. She also personifies as Shyamala or Kali.
Goddess Matangi is the embodiment of thought. As Divine Speech, She is the Goddess of the spoken word as well as outward articulation of inner knowledge, including all forms of art, music and dance. Matangi relates to Saraswati, the Goddess of wisdom and knowledge. She is the form of Saraswati directed towards inner knowledge. She represents the teachings of the guru, and the continuity of spiritual instruction in the world. By honouring her, we also honour the guru. Those seeking to teach others should seek the grace of Matangi. She is the cosmic power that makes a householder’s life comfortable by granting the principle objects of a householder – dharma, Artha, karma and Moksha. She is the goddess of beauty, marriage, happy life and material gains. The devotees of Matangi are known to be blessed with her grace of proficiency in poetry, music, dancing and the fine-arts in their chosen field.
Goddess Matangi is associated with the full moon, the ‘night of intoxication.’ The Das Mahavidya Sadhana represent some or other manifestation of the Divine Mother. They are in this sense also to be regarded as Vidyas or different approaches to tantric knowledge.
Matangi resides in the Throat Chakra and radiant like the moon. This is the centre of speech. She is the manifest form of song, and the vibratory sound, Nada, that flows in the subtle channels, ‘Nadis’, down through our entire body and mind. There is a special ‘Nadi’ or channel that runs from the Third Eye to the tip of the tongue, which relates to her. This is the stream of inspiration from the mind to its expression via speech. Matangi represents the flow of Bliss through this channel, which is experienced by the creators of great literary, poetic and other artistic work, resulting in brilliant expressions of creativity.
मातंगी
मातंगी महाविद्या जो तंत्र विद्या “तांत्रिक सरस्वती” के नाम से भी जानी जाती है। मातंगी महाविद्या (Das Mahavidya Sadhana) को संगीत तथा ललित कलाओं में महारत प्राप्त है। यह 10 महाविधायें में नवमी महाविद्या कही जाती है। जिनकी साधना से तन्त्र, असुरी ज्ञान, महान इंद्र-जाल, डामर तन्त्र जैसी विद्या में सफ़लता प्राप्त होती है, जो संगीत कलाओं में व्यक्ति को निपुण बना देती है, वह मातंगी महाविद्या है।
मातंगी महाविद्या, महाविद्याओं/Dus Mahavidya में नवें स्थान पर विराजमान हैं। मातंगी देवी निम्न जाति और जनजातिओ से सम्बंध रखती हैं। देवी का एक नाम “उच्छिष्ट चांडालिनी” भी हैं, जो देवी तंत्र उत्कृष्ट क्रियाओं में पारंगत हैं, पूर्ण तंत्र ज्ञान की ज्ञाता मानी जाती हैं। सम्पूर्ण इंद्रजाल की शक्ति से देवी परिपूर्ण है। वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण, सिद्ध विद्याओं से सम्बंध रखती हैं। महाविद्या मातंगी, केवल मात्र वचन द्वारा त्रि-भुवन में समस्त प्राणियों तथा अपने घनघोर शत्रु को भी वश में करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया या वशीकरण कहा जाता हैं, देवी सम्मोहन विद्या की अधिष्ठात्री मानी गयी हैं।
देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षी, जंगल, वन, शिकार इत्यादि से भी हैं। जंगल में वास करने वाले आदिवासियों, जनजातियों द्वारा देवी की विशेषकर पूजा की जाती हैं। ऐसा माना जाता हैं कि देवी की ही कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं। मातंगी देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के परस्पर प्रेम से हुई थीं, जिसकी साधना पारिवारिक प्रेम हेतु लाभकारी मानी गयी हैं।
महाविद्या मातंगी, “मतंग मुनि” की पुत्री रूप में भी जानी जाती हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन पदार्थों से हैं। देवी तभी उच्छिष्ट चांडालिनी नाम से विख्यात हैं तथा देवी की आराधना हेतु उपवास की भी आवश्यकता नहीं होती। देवी की आराधना हेतु उच्छिष्ट सामग्रियों की आवश्यकता होती हैं। देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु द्वारा की गई, माना जाता हैं, तभी से भगवान विष्णु सुखी, सम्पन्न, श्री युक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं। देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, देवी बौद्ध धर्मं में “मातागिरी” नाम से विख्यात हैं।
महाविद्या मातंगी श्याम वर्णा या नील कमल के समान कांति युक्त हैं। तीन नेत्रों से युक्त हैं तथा अर्ध चन्द्र को अपने मस्तक पर धारण करती हैं। देवी चार भुजाओं से युक्त हैं, इन्होंने अपने दाहिने भुजाओं में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर रखी हैं तथा बायें भुजाओं में खड़ग धारण करती हैं, जो अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी, लाल रंग की रेशमी साड़ी तथा अमूल्य रत्नों से युक्त नाना अलंकार धारण करती हैं, देवी के संग सर्वदा तोता पक्षी रहता हैं, जो “ह्रीं” बीजाक्षर का जप करता रहता हैं।
मातंगी महाविद्या साधना से तन्त्र, असुरी, संगीत तथा ललित कलाओं में महारत प्राप्त होती है। जो संगीत कलाओं में निपुण बनना चाहते हो उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिए। इस साधना के द्वारा पूर्ण ग्रहस्त सुख की प्राप्ति होती है। जिनके घर में कलह बना रहता है उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिये।
Kamala | कमला
Goddess Ma Kamala maintains the tenth significant position among all the Dus Mahavidya. She is seated on a lotus which symbolizes purity. Mata Kamala is a pleasing young woman with a lustrous complexion, delighting the senses, exciting intellectual and emotional admiration. Goddess Kamala has four hands with lotus flowers in her two hands, and her two remaining hands are in the posture of giving boons and blessings. She has a crown on her head and wears silken apparel. Four elephants as white as the snow of Himalayas encircle her, carrying vessels containing gold in their trunks.
Kamala Maa is the goddess of prosperity, purity, chastity and generosity. Goddess Kamala is Lord Vishnu’s energy existing in bodily form and accompanies him in all his divine activities. Her sadhana in reality is the worship of Shakti (Power) the root cause of the existence of this world. Her worship gives triumph, magnificent quality, wealth etc. Ma Kamala like Mata Lakshmi is a goddess of fame, fortune, riches, material well being, fertility and conception of children.
The name Kamala means “she of the lotus,” and is a common epithet of the goddess Lakshmi or Sri, who is said to adore lotuses and to be lotus-eyed and surrounded by lotuses. Indeed, Kamala is none other than the goddess Lakshmi. [However,] Lakshmi is often portrayed as Vishnu’s loyal, modest and loving wife. She is described as being occupied with domestic chores, such as cooking, and is typically depicted as subservient to her husband. Iconographical, [for example], she is often shown massaging Vishnu’s feet and is much smaller than he. …
It is striking, that as a Dus Mahavidya- Mahavidya Kamala is never shown iconographical or described in her dhyana mantras as accompanying Vishnu. He may be mentioned, [for instance, to] say that she has “glances that please Vishnu” or [that she is] “the beloved of Vishnu,” but for the most part he is absent. In this respect, [and unlike Lakshmi,] Kamala is almost entirely removed from marital and domestic contexts. Her central role [in Vaishnavism] as mediator between devotees and Vishnu is completely missing in her Mahavidya incarnation. She does not play the role of model wife in any important way, and her association with proper religious or social behaviour is not important in the Mahavidya context.
This is to be expected in the context of the Mahavidyas, where a premium seems to be put on the independence of the goddesses. For the most part, the Mahavidyas are seen as powerful goddesses in their own right. Their power and authority do not derive from association with male deities. Rather, it is their power that pervades the gods and enables them to perform their cosmic function. By accomplishing kamala Mahavidya one can get happiness, weal, wealth, Land, Vehicle and reputation. She is also called Kamaleshwari as she is capable of making a pauper a king.
कमला महाविद्या
महाविद्या कमला, 10 महाविधायें में दसवीं महाविद्या (Dus Mahavidya) कही जाती है, जो दिव्य एवं मनोहर स्वरूप से संपन्न, पवित्रता तथा स्वच्छता से सम्बंधित है। कमल के समान दिव्य महाविद्या कमला जो श्री लक्ष्मी, धन-संपत्ति, सुख, सौभाग्य प्रदाता मानी जाती है।
महाविद्या कमला 10 महाविधायें/Dus Mahavidya में दसवें स्थान पर विराजमान हैं। देवी का सम्बन्ध सम्पन्नता, खुशहाल-जीवन, समृद्धि, सौभाग्य और वंश विस्तार जैसे समस्त सकारात्मक तथ्यों से हैं। कमला देवी पूर्ण सत्व गुण सम्पन्न हैं, जिनको स्वच्छता तथा पवित्रता अत्यंत प्रिय हैं, यह देवी ऐसे ही स्थानों में वास करती हैं। प्रकाश का देवी से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास स्थान बनाती हैं जहां अँधेरा न हो, इसके विपरीत देवी की बहन अलक्ष्मी, ज्येष्ठा, निऋति जो निर्धनता, दुर्भाग्य से सम्बंधित हैं जो अंधेरे एवं अपवित्र स्थानों को ही अपना निवास स्थान बनाती हैं।
कमल के पुष्प के नाम वाली देवी “कमला” का नाम पद्म पुष्प से सम्बंधित हैं। कमल देवी को यह पुष्प अत्यंत ही प्रिय हैं, कमल कीचड़ तथा मैले स्थानों पर उगता हैं, परन्तु कमल की दिव्यता मैल से कभी लिप्त नहीं होती हैं। कमल अपने आप में सर्वदा दिव्य, पवित्र तथा उत्तम रहती हैं, देवी कमला के स्थिर निवास हेतु अन्तः करण की स्वच्छता तथा पवित्रता अत्यंत आवश्यक हैं। देवी की आराधना तीनों लोकों में दानव, दैत्य, देवता तथा मनुष्य सभी द्वारा की जाती हैं क्योंकि सभी सुख तथा समृद्धि प्राप्त करना चाहते हैं।
कमला देवी आदि काल से ही त्रि-भुवन के समस्त प्राणियों द्वारा पूजित हैं। देवी की कृपा के बिना, निर्धनता, दुर्भाग्य, रोग इत्यादि जातक का पीछा नहीं छोड़ता, जो जातक रोग ग्रस्त, अभाव युक्त, धन-हीन रहते है और वह कमला देवी की साधना करते है, उन्हें देवी समस्त प्रकार के सुख, समृद्धि, वैभव इत्यादि सभी प्रदान करती हैं।
स्वरूप से देवी कमला अत्यंत ही दिव्य तथा मनोहर एवं सुन्दर हैं, इनकी प्राप्ति समुद्र मंथन के समय हुई थीं तथा इन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया था। देवी कमला “तांत्रिक लक्ष्मी” के नाम से भी जानी जाती हैं। श्री विद्या महा त्रिपुरसुन्दरी की आराधना कर देवी श्री पद से युक्त हुई तथा महा-लक्ष्मी नाम से विख्यात भी। देवी की अंग-कांति स्वर्णिम आभा लिए हुए हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त हैं एवं सुन्दर रेशमी साड़ी तथा नाना अमूल्य रत्नों से युक्त अलंकारों से सुशोभित हैं। देवी कमला चार भुजाओं से युक्त हैं, इन्होंने अपने ऊपर के दोनों भुजाओं में पद्म पुष्प धारण कर रखा हैं तथा नीचे के दोनों भुजाओं से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित कर रहीं हैं।
देवी को कमल का सिंहासन अति प्रिय हैं तथा वे सर्वदा कमल पुष्प से ही घिरी रहती हैं, हाथियों के झुण्ड देवी का अमृत से भरे स्वर्ण कलश से अभिषेक करते रहते हैं। कमला महाविद्या की साधना से जीवन में सुख, सौभाग्य, धन, लक्ष्मी, भूमि, वाहन, संतान, प्रतिष्ठा आरोग्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में कमला साधना को “कमलेश्वरी” कहा गया है, क्योंकि यह साधना साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।