Indra Suktam, इन्द्र सूक्तं

इन्द्र सूक्तं | Indra Suktam

इन्द्र सूक्तं/Indra suktam

प्रधान्वस्य महतो महानि सत्य सत्यस्य करणानि वोचम् ।

त्रिकट केस्वपिवत् सतस्यास्य मदे अहिमिन्द्रो जघान ॥1॥

अर्थ- ऋषि गृत्समद इन्द्र की विशेषता प्रकट करते हुए कहते हैं- सत्यस्वरूप इस महान शक्तिशाली इन्द्र के सर्वथा स्थिर कर्मों को प्रकृष्ट रूप से कहता हूँ। इन्द्र ने तीन पात्रों में सोम-रस का पान किया। इस सोम-रस के मद में वृत्रासुर का वध किया।

अवंशे धामस्तभायद्ब्रहन्तमा रोदसी अपृणदन्तरिक्षम् स ।

धारयत्पृथिवीं पप्रथच्च सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार।।2।।

अर्थ- इन्द्र ने द्युलोक को बिना कारण अन्तरिक्ष में स्थित किया। बढ़े हुए आकाश और द्यावापृथिवी को धारण किया और उसे विस्तृत किया। इन्द्र ने वे सब कर्म सोम के मद में किये।

सद्येव प्राचो वि मियाय मानैर्वज्रेण खान्यतृणन्नदीनाम् ।

वथासृजत्पथिभिदीर्धमाथैः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार।।3।।

अर्थ- इन्द्र ने माप-तौल के अनुसार नदियों को यज्ञ-गृह की भाँति पूर्व की ओर गतिशील बनाया। बज्र से नदियों को मार्ग को खोदा। नदियों को दूर तक जाने योग्य मार्गो से सहज ही बहाया। इन्द्र ने यह सब कर्म मद में किया।

स प्रवोळहुन् परिगत्या दभीतेर्विश्वमधागायघमिद्धे अग्नौ।

सं गोभिरश्वैरसृजद्रथेभिः सोमसय ता मद इन्द्रश्चकार।।4।।

अर्थ- इस इन्द्र ने दभीति के अपहर्ता असुरों को चारो ओर से घेर लिया। उनके समस्त अस्त्रशस्त्रों को प्रदीप्त (प्रज्वलित) अग्नि में जला दिया। उन दभीति नामक राजर्षि को गायों, घोड़ों और रथों आदि से संयुक्त किया। यह सब कर्म अर्थात् यह सारा कार्य इन्द्र ने सोम-रस के मद (अहं) में किया।

स ई महीं धुनिमेतोररम्णात्सौ अस्नात नृपारयत्स्वस्ति।

त उत्सनाय रयिमभि प्रतस्थुः सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार ।।5।।

अर्थ- इन्द्र ने इन ऋषि को पार जाने हेतु महती नही को स्थिर किया पार जाने में असमर्थ लोगों को सकुशल नदी के पार कर दिया। उन लोगों ने नदी को तैरकर धन की ओर प्रस्थान किया। यह सब कार्य इन्द्र ने सोम के मद में किया।

सोदञ्चं सिन्धुमरिणान्महित्वा वज्रेणान उषसः सं पिपेष।

अजवसो जविनीभिर्विवृश्चन्त्सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार।।6।

अर्थ- उस इन्द्र ने अपने महान् बल से नदी को उत्तर की ओर बढ़ाया। उषा देवी के शकट अर्थात् गाड़ी को अपने वज्र से नष्ट किया । बलयुक्त वेगवती सेनाओं के द्वारा निर्बल सेनाओं को विशेष प्रकार से नष्ट किया। इन्द्र ने यह सब कर्म सोम-रस के मद में किया।

स विद्धां अपगोहं कनीनामा विर्भवन्नुदतिष्ठत्परावृक।

प्रति श्रोणः सथाद् व्यनगचष्ट सोमस्य ता मद इन्द्रष्चकार।।7।।

अर्थ- वह विद्वान् परावृक् ऋषि सुन्दर कन्याओं के तिरोहित होने के कारणों को जानकर पुनः इन्द्र को कृपा से प्रत्यक्ष होता हुआ उनके सम्मुख उपस्थित हुआ। पड़गु पुरावृक् ऋषि पाँच प्राप्त करके उनके पास गये, नेत्रहीन ऋषि पूर्ण तथा स्पष्ट देखने लगा। यह सब कर्म इन्द्र ने सोमरस के मद में किया।

भिनद्वमगिरोभिर्गुणानो विपर्वतस्य द्वंहितान्यैरत्।

रिणग्रोधासि कृत्रिमाण्येषां सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार ॥8॥

अर्थ- अंगिरा आदि ऋषियों से प्रशंसित होकर इन्द्र ने बल नामक दैत्य को तोड़ दिया तथा गायों के अवरोधक पर्वत के सुदृढ़ द्वारों को खोल दिया। इन पर्वतों के द्वारा कृत्रिम रूप से निर्मित अवरोधक द्वारों को दूर किया। इन्द्र ने यह सब कार्य सोम के मद में किया।

स्वन्पेनाभ्युप्या चुमुरि धुनिञ्च जघन्थ दस्युं प्रदभीतिभावः।

रम्भी चिदत्र विविदे हिरण्यं सोमस्य ता मद इन्द्रश्चकार॥9॥

अर्थ- इन्द्र ने दुष्ट, आततायी चुमुरि और धुनि नामक असुरों को दीर्ध निद्रा से युक्त करके मार डाला और दभीति की रक्षा की। दण्डधारी ने युद्ध में धन प्राप्त किया। इन्द्र ने यह सब कर्म सोम रस के मद में किया।

नूनं सा ते प्रति वरं जरिगे दहीयदिन्द्र दक्षिणा मधोनी।

शिक्षा स्तोतृभ्यो माति घग्भगो नो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥10॥

अर्थ- हे इन्द्र! तुम्हारी वह अत्यधिक ऐश्वर्यशालिनी दक्षिणा निश्चय ही स्तुति करने वाले को श्रेष्ठ धन प्रदान करती है। स्तुति करने वालों को श्रेष्ठ ज्ञान प्रदान कीजिए। धन, ऐश्वर्य आदि के प्रदान करने के समय हमें न छोड़े और हम हम लोगों को ऐश्वर्य प्रदान करें। यज्ञ के समय स्तोता लोग महान् स्तोत्र को बोलें।-Indra Suktam/इन्द्र सूक्तं