Krishna Brahmand Kavach | कृष्ण ब्रह्मांड कवच
Krishna Brahmand Kavach (कृष्ण ब्रह्मांड कवच): Lord Shri Krishna is honored as the eighth incarnation of Lord Vishnu. Shri Krishna is the god of Kindness and love. The seeker’s anger calms down and his mind becomes pure by recites Krishna Brahmand Kavach with true heart. Due to which the devotee starts behave humbly with all people. All the enemies of the seeker start becoming friends and a positive atmosphere begins to form among the family members. If Radha-Krishna Kavach is worn along with recites Krishna Brahmand Kavach, then love, attraction and beauty starts increasing between husband and wife, due to which problems like divorce and home troubles start getting resolved. Also start getting benefits in having children.
If Krishna Brahmand Kavach is recited after wearing Krishna Rosary, then the seeker starts gaining courage and self-confidence. The seeker starts feeling himself filled with positive energy. A person who gets angry all the time should recite Krishna Brahmand Kavach regularly in his worship. So, that he can live a happy life. If a seeker wants to get complete love in his life, wants to have a love marriage, then starting from any Friday, he should apply rose perfume on his body and recite Krishna Brahmand Kavach for 27 days.
कृष्ण ब्रह्मांड कवच | Krishna Brahmand Kavach
।। ब्रह्मोवाच ।।
राधाकान्त महाभाग ! कवचं यत् प्रकाशितं ।
ब्रह्माण्ड-पावनं नाम, कृपया कथय प्रभो ।। 1
मां महेशं च धर्मं च, भक्तं च भक्त-वत्सल ।
त्वत्-प्रसादेन पुत्रेभ्यो, दास्यामि भक्ति-संयुतः ।। 2
ब्रह्माजी बोले – हे महाभाग ! राधा-वल्लभ ! प्रभो ! ‘ब्रह्माण्ड-पावन’ नामक जो कवच आपने प्रकाशित किया है, उसका उपदेश कृपा-पूर्वक मुझको, महादेव जी को तथा धर्म को दीजिए । हे भक्त-वत्सल ! हम तीनों आपके भक्त हैं । आपकी कृपा से मैं अपने पुत्रों को भक्ति-पूर्वक इसका उपदेश दूँगा ।। 1-2
।। श्रीकृष्ण उवाच ।।
श्रृणु वक्ष्यामि ब्रह्मेश ! धर्मेदं कवचं परं ।
अहं दास्यामि युष्मभ्यं, गोपनीयं सुदुर्लभम् ।। 1
यस्मै कस्मै न दातव्यं, प्राण-तुल्यं ममैव हि ।
यत्-तेजो मम देहेऽस्ति, तत्-तेजः कवचेऽपि च ।। 2
श्रीकृष्ण ने कहा – हे ब्रह्मन् ! महेश्वर ! धर्म ! तुम लोग सुनो ! मैं इस उत्तम ‘कवच’ का वर्णन कर रहा हूँ । यह परम दुर्लभ और गोपनीय है । इसे जिस किसी को भी न देना, यह मेरे लिए प्राणों के समान है । जो तेज मेरे शरीर में है, वही इस कवच में भी है ।
कुरु सृष्टिमिमं धृत्वा, धाता त्रि-जगतां भव ।
संहर्त्ता भव हे शम्भो ! मम तुल्यो भवे भव ।। 3
हे धर्म ! त्वमिमं धृत्वा, भव साक्षी च कर्मणां ।
तपसां फल-दाता च, यूयं भक्त मद्-वरात् ।। 4
हे ब्रह्मन् ! तुम इस कवच को धारण करके सृष्टि करो और तीनों लिकों के विधाता के पद पर प्रतिष्ठित रहो । हे शम्भो ! तुम भी इस कवच को ग्रहण कर, संहार का कार्य सम्पन्न करो और संसार में मेरे समान शक्ति-शाली हो जाओ । हे धर्म ! तुम इस कवच को धारण कर कर्मों के साक्षी बने रहो । तुम सब लिग मेरे वर से तपस्या के फल-दाता हो जाओ ।
ब्रह्माण्ड-पावनस्यास्य, कवचस्य हरिः स्वयं ।
ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, देवोऽहं जगदीश्वर ।। 5
धर्मार्थ-काम-मोक्षेषु, विनियोगः प्रकीर्तितः ।
त्रि-लक्ष-वार-पठनात्, सिद्धिदं कवचं विधे ।। 6
इस ‘ब्रह्माण्ड-पावन’ कवच के ऋषि स्वयं हरि हैं, छन्द गायत्री है, देवता मैं जगदीश्वर श्रीकृष्ण हूँ तथा इसका विनियोग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हेतु है । हे विधे ! ३ लाख बार ‘पाठ‘ करने पर यह ‘कवच’ सिद्ध हो जाता है ।
यो भवेत् सिद्ध-कवचो, मम तुल्यो भवेत्तु सः ।
तेजसा सिद्धि-योगेन, ज्ञानेन विक्रमेण च ।। 7
जो इस कवच को सिद्ध कर लेता है, वह तेज, सिद्धियों, योग, ज्ञान और बल-पराक्रम में मेरे समान हो जाता है।
।। मूल-कवच-पाठ ।।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीब्रह्माण्ड-पावन-कवचस्य श्रीहरिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीहरिः ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्रीकृष्णो देवतायै नमः हृदि,
धर्म-अर्थ-काम-मोक्षेषु विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
मूल कवच:
प्रणवो मे शिरः पातु, नमो रासेश्वराय च ।
भालं पायान् नेत्र-युग्मं, नमो राधेश्वराय च ।। 1
कृष्णः पायात् श्रोत्र-युग्मं, हे हरे घ्राणमेव च ।
जिह्विकां वह्निजाया तु, कृष्णायेति च सर्वतः ।। 2
श्रीकृष्णाय स्वाहेति च, कण्ठं पातु षडक्षरः ।
ह्रीं कृष्णाय नमो वक्त्रं, क्लीं पूर्वश्च भुज-द्वयम् ।। 3
नमो गोपांगनेशाय, स्कन्धावष्टाक्षरोऽवतु ।
दन्त-पंक्तिमोष्ठ-युग्मं, नमो गोपीश्वराय च ।। 4
ॐ नमो भगवते रास-मण्डलेशाय स्वाहा ।
स्वयं वक्षः-स्थलं पातु, मन्त्रोऽयं षोडशाक्षरः ।। 5
ऐं कृष्णाय स्वाहेति च, कर्ण-युग्मं सदाऽवतु ।
ॐ विष्णवे स्वाहेति च, कंकालं सर्वतोऽवतु ।। 6
ॐ हरये नमः इति, पृष्ठं पादं सदऽवतु ।
ॐ गोवर्द्धन-धारिणे, स्वाहा सर्व-शरीरकम् ।। 7
प्राच्यां मां पातु श्रीकृष्णः, आग्नेय्यां पातु माधवः ।
दक्षिणे पातु गोपीशो, नैऋत्यां नन्द-नन्दनः ।। 8
वारुण्यां पातु गोविन्दो, वायव्यां राधिकेश्वरः ।
उत्तरे पातु रासेशः, ऐशान्यामच्युतः स्वयम् ।
सन्ततं सर्वतः पातु, परो नारायणः स्वयं ।। 9
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं ब्रह्मन् ! कवचं परमाद्भुतं ।
मम जीवन-तुल्यं च, युष्मभ्यं दत्तमेव च ।।
कृष्ण ब्रह्मांड कवच के लाभ:
भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में सम्मानित किया जाता हैं। श्री कृष्ण कोमलता और प्रेम के देवता हैं। कृष्ण ब्रह्मांड कवच का सच्चे मन से पाठ करने से साधक का क्रोध शांत और मन निर्मल होने लगता हैं, जिससे साधक सभी लोगो से निम्रतापूर्वक व्यवहार करने लगता हैं। साधक के सभी शत्रु मित्र बनने लगते हैं तथा परिवार के सदस्यों के मध्य सकारात्मक वातावरण बनने लग जाता हैं। कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ करने के साथ यदि राधा-कृष्ण कवच धारण किया जाए, तो पति-पत्नी में प्रेम, आकर्षण और सौंदर्य बढ़ने लगता हैं, जिससे तलाक, गृह क्लेश जैसी समस्याएँ दूर होने लगती हैं। संतान प्राप्ति में भी लाभ प्राप्त होने लगता हैं।
यदि कृष्ण माला को धारण करके श्री कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ किया जाए, तो साधक को साहस तथा आत्मविश्वास की प्राप्ति होने लगती हैं। साधक स्वयं को सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करने लग जाता हैं। हर समय क्रोद्ध करने वाले साधक को चाहिये, कि वे नियमित रूप से अपनी पूजा में कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ अवश्य करे, जिससे वह सुखी जीवन जी सके। यदि कोई साधक अपने जीवन में पूर्ण प्रेम पाना चाहता है, प्रेम विवाह करना चाहता है, तो किसी भी शुक्रवार से 27 दिन तक उसे अपने शरीर में गुलाब का इत्र लगाकर कृष्ण ब्रह्मांड कवच का पाठ करना चाहियें।