Lakshmi Narayan Kavach | लक्ष्मी नारायण कवच
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लक्ष्मी नारायण कवच | Lakshmi Narayan Kavach
।।पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच।।
अधुना देवि ! वक्ष्यामि, लक्ष्मी-नारायणस्य ते । कवचं मन्त्र-गर्भं च, वज्र-पञ्जरकाख्यया ।।1
श्रीवज्र-पञ्जरं नाम, कवचं परमाद्भुतम । रहस्यं सर्व-देवानां, साधकानां विशेषतः ।।2
यं धृत्वा भगवान् देवः, प्रसीदति परः पुमान् । यस्य धारण-मात्रेण, ब्रह्मा लोक-पितामहः ।।3
ईश्वरोऽहं शिवो भीमो, वासवोऽपि दिवस्पतिः । सूर्यस्तेजो-निधिर्देवि ! चन्द्रमास्तारकेश्वरः ।।4
वायुश्च बलवांल्लोके, वरुणो यादसांपतिः । कुबेरोऽपि धनाध्यक्षो, धर्मराजो यमः स्मृतः ।।5
यं धृत्वा सहसा विष्णुः, संहरिष्यति दानवान् । जघान रावणादींश्च, किं वक्ष्येऽहमतः परम् ।।6
कवचस्यास्य सुभगे ! कथितोऽयं मुनिः शिवः । त्रिष्टुप् छन्दो देवता च, लक्ष्मी-नारायणो मतः ।।7
रमा बीजं परा शक्तिस्तारं कीलकमीश्वरि ! । भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं, विनियोग इति स्मृतः ।।8
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मी-नारायण-कवचस्य शिव ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीलक्ष्मी-नारायण देवता, श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं, भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीशिव ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे,
श्रीलक्ष्मी-नारायण देवतायै नमः
हृदि, श्रीं बीजाय नमः गुह्ये,
ह्रीं शक्तये नमः नाभौ,
ॐ कीलकाय नमः पादयो,
भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
ध्यानः
पूर्णेन्दु-वदनं पीत-वसनं कमलासनम् ।
लक्ष्म्याश्रितं चतुर्बाहुं, लक्ष्मी-नारायणं भजे ।।
‘मानस-पूजन’ कर ‘कवच-पाठ‘ करे ।
।।मूल कवच-पाठ।।
ॐ वासुदेवोऽवतु मे, मस्तकं सशिरोरुहम् । ह्रीं ललाटं सदा पातु, लक्ष्मी-विष्णुः समन्ततः ।।1
हसौः नेत्रेऽवताल्लक्ष्मी-गोविन्दो जगतां पतिः । ह्रीं नासां सर्वदा पातु, लक्ष्मी-दामोदरः प्रभुः ।।2
श्रीं मुखं सततं पातु, देवो लक्ष्मी-त्रिविक्रमः । लक्ष्मी कण्ठं सदा पातु, देवो लक्ष्मी-जनार्दनः ।।3
नारायणाय बाहू मे, पातु लक्ष्मी गदाग्रजः । नमः पार्श्वौ सदा पातु, लक्ष्मी-नन्दैक-नन्दनः ।।4
अंआंइंईं पातु वक्षो, ॐ लक्ष्मी-त्रिपुरेश्वरः । उंऊंऋंॠं पातु कुक्षिं, ह्रीं लक्ष्मी-गरुड़-ध्वजः ।।5
लृंॡंएंऐं पातु पृष्ठं, हसौः लक्ष्मी-नृसिंहकः । ॐॐअंअः पातु नाभिं, ह्रीं लक्ष्मी-विष्टरश्रवः ।।6
कंखंगंघं गुदं पातु, श्रीं लक्ष्मी-कैटभान्तकः । चंछंजंझं पातु शिश्नं, लक्ष्मी लक्ष्मीश्वरः प्रभुः ।।7
टंठंडंढं कटिं पातु, नारायणाय नायकः । तंथंदंधं पातु चोरु, नमो लक्ष्मी-जगत्पतिः ।।8
पंफंबंभं पातु जानू, ॐ ह्रीं लक्ष्मी-चतुर्भुजः । यंरंलंवं पातु जंघे, हसौः लक्ष्मी-गदाधरः ।।9
शंषंसंहं पातु गुल्फौ, ह्रीं श्रीं लक्ष्मी-रथांगभृत् । ळंक्षं पादौ सदा पातु, मूलं लक्ष्मी-सहस्त्रपात् ।।10
ङंञंणंनंमं मे पातु, लक्ष्मीशः सकलं वपुः । इन्द्रो मां पूर्वतः पातु, वह्निर्वह्नौ सदाऽवतु ।।11
यमो मां दक्षिणे पातु, नैर्ऋत्यां निर्ऋतिश्च माम् । वरुणः पश्चिमेऽव्यान्मां, वायव्येऽवतु मां मरुत् ।।12
उत्तरे धनदः पायादैशान्यामीश्वरोऽवतु । वज्र-शक्ति-दण्ड-खड्ग-पाश-यष्टि-ध्वजांकिताः ।।13
सशूलाः सर्वदा पान्तु, दिगीशाः परमार्थदाः । अनन्तः पात्वधो नित्यमूर्ध्वे ब्रह्मावताच्च माम् ।।14
दश-दिक्षु सदा पातु, लक्ष्मी-नारायणः प्रभुः । प्रभाते पातु मां विष्णुर्मध्याह्ने वासुदेवकः ।।15
दामोदरोऽवतात् सायं, निशादौ नरसिंहकः । संकर्षणोऽर्धरात्रेऽव्यात्, प्रभातेऽव्यात् त्रिविक्रमः ।।16
अनिरुद्धः सर्व-कालं, विश्वक्-सेनश्च सर्वतः । रणे राज-कुले द्युते, विवादे शत्रु-संकटे ।ॐ ह्रींहसौः ह्रींश्रींमूलं, लक्ष्मी-नारायणोऽवतु ।।17
ॐॐॐ रण-राज-चौर-रिपुतः पायाच्च मां केशवः, ह्रींह्रींह्रींहहहाहसौः हसहसौ वह्नेर्वतान्माधवः ।
ह्रींह्रींह्रींजल-पर्वताग्र-भयतः पायादनन्तो विभुः, श्रींश्रींश्रींशशशाललं प्रति-दिनं लक्ष्मीधवः पातु माम् ।।18
।।फल-श्रुति।।
इतीदं कवचं दिव्यं, वज्र-पञ्जरकाभिधम् । लक्ष्मी-नारायणस्थेष्टं, चतुर्वर्ग-फल-प्रदम् ।।1
सर्व-सौभाग्य-निलयं, सर्व-सारस्वत-प्रदम् । लक्ष्मी-संवननं तत्त्वं, परमार्थ-रसायनम् ।।2
मन्त्र-गर्भं जगत्-सारं, रहस्यं त्रिदिवौकसाम् । दश-वारं पठिद्रात्रौ, रतान्ते वैष्णवोत्तमः ।।3
स्वप्ने वर-प्रदं पश्येल्लक्ष्मी-नारायणं सुधीः । त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं, कवचं मन्मुखोदितम् ।।4
स याति परमं धाम, वैष्णवं वैष्णवोत्तमः । महा-चीन-पदस्थोऽपि यः, पठेदात्म-चिन्तकः ।।5
आनन्द-पूरितस्तूर्णं, लभेद् मोक्षं स साधकः । गन्धाष्टकेन विलिखेद्रवौ भुर्जे जपन्मनुम् ।।6
पीत-सूत्रेण संवेष्ट्य, सौवर्णेनाथ वेष्टयेत् । धारयेद्-गुटिकां मूर्घ्नि, लक्ष्मी-नारायणं स्मरन् ।।7
रणे रिपून् विजित्याशु, कल्याणी गृहमाविशेत् । वन्ध्या वा काक-वन्ध्या वा, मृत-वत्सा च यांगना ।।8
सा बध्नीयात् कण्ठ-देशे, लभेत् पुत्रांश्चिरायुषः । गुरुपदेशतो धृत्वा, गुरुं ध्यात्वा मनुं जपन् ।।9
वर्ण-लक्ष-पुरश्चर्या-फलमाप्नोति साधकः । बहुनोक्तेन किं देवि ! कवचस्यास्य पार्वति ! ।।10
विनानेन न सिद्धिः स्यान्मन्त्रस्यास्य महेश्वरि ! । सर्वागम-रहस्याढ्यं, तत्त्वात् तत्त्वं परात् परम् ।।11
अभक्ताय न दातव्यं, कुचैलाय दुरात्मने । दीक्षिताय कुलीनाय, स्व-शिष्याय महात्मने ।।12
महा-चीन-पदस्थाय, दातव्यं कवचोत्तमम् । गुह्यं गोप्यं महा-देवि ! लक्ष्मी-नारायण-प्रियम् ।
वज्र-पञ्जरकं वर्म, गोपनीयं स्व-योनि-वत् ।।13
।।श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीलक्ष्मी-नारायण-कवचं।।
लक्ष्मी नारायण कवच के लाभ:
लक्ष्मी नारायण कवच अत्यंत प्रभावशाली कवच हैं। इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति को देवी लक्ष्मी और भगवान नारायण के आशीर्वाद से धन, समृद्धि सम्पन्नता और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होने लगती हैं। यदि किसी व्यक्ति के व्यापार में लगातार हानि हो रही हैं, लगातार मेहनत करने के बाद भी व्यापार ठीक से नही चल पा रहा हैं, बार-बार घाटा हो रहा हैं, जिसके कारण उसे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं, तो ऐसे में, उस व्यक्ति को लक्ष्मी नारायण कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। इस कवच का पाठ करने से कार्यक्षेत्र में सफलता मिलने लगती हैं, धन का लाभ होता हैं और आर्थिक क्षेत्र में उन्नति प्राप्त होती हैं। अगर किसी व्यक्ति का जीवन तनाव एवं परेशानियों से भरा हुआ हैं, मन में बार-बार नकारात्मक विचार आते रहते हैं।
तो ऐसे में, यदि वह लक्ष्मी नारायण कवच का पाठ करने के साथ लक्ष्मी नारायण गुटिका धारण करता हैं, तो इस गुटिका को धारण करने से शरीर में नवीन ऊर्जा का संचार होता है, जिससे मन में आ रहे समस्त नाकारात्मक विचार दूर होने लगते हैं और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता हैं। घर-परिवार से कष्ट, दुःख, पीड़ा आदि को दूर करने का एक रामबाण उपाय लक्ष्मी नारायण यंत्र स्थपित करना माना जाता हैं, घर में इस यंत्र को स्थापित करने से परिवार के प्रत्येक सदस्य को अच्छी सेहत और अच्छे स्वास्थ्य का लाभ मिलता हैं, घर में चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं और धन से जुड़ी हुई सभी समस्या दूर होती है।