Matangi Kavach, मातंगी कवच

Matangi Kavach | मातंगी कवच

Matangi Kavach (मातंगी कवच): Matangi is known as the Ninth Mahavidya among the ten Mahavidyas. She is also called the mistress of nature. Matangi Devi is related to Animals, Birds, Forest, Hunting etc. Goddess Matangi is highly worshiped among the tribals living in the forest. A person becomes proficient in Music, Speech, Knowledge, Learning and Art by reciting Matangi Kavach. If a person is interested in music, but even after practicing music continuously he feels unable to become a musician, so in such a situation, he must recite Matangi Kavach. By reciting this kavach, he starts gaining proficiency in music, due to which he becomes a good speaker and musician in the future.

If a child is not interested in studies, having difficulty in focusing, forgetting everything which he studied, not able to score good marks in exams. Due to which he is getting away from his goal and failing again and again, so in such a situation, that child must definitely recite Matangi Kavach. By reciting this kavach, Knowledge and Concentration power start increasing, child gets interested in studies and helps in moving forward towards the goal, new paths of success start opening. Matangi Kavach recitation is very beneficial for working hard and achieving your goals.

मातंगी कवच | Matangi Kavach

श्री देव्युवाच:

साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर।
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥

श्री-देवी ने कहा – हे महादेव। हे सुरेश्वर। मनुष्यों को सर्व-सिद्धि-प्रददिव्य मातंगी-कवच अति उत्तम है, उस कवच को मुझसे कहिए।

श्री ईश्वर उवाच:

श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं।
गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥

ईश्वर ने कहा – हे देवि। उत्तम मातंगी-कवच कहता हूँ, सुनो। हे महा-देवि। इस कवच को गुप्त रखना, मौनी होकर जप करना।

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यास:

श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मूल कवच-स्तोत्र:

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि । हृदयं पातु सर्वदा ॥
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ॥
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि । देवानां हित-कारिणी ॥
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ॥
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥

फल-श्रुति:

इति ते कथितं देवि । गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।
त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ॥
यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।
परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ॥
गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।
ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥
नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ॥
ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि । लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ॥
कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।
राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ॥
सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।
इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ॥
झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।
गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ॥

मातंगी कवच के लाभ:

दस महाविधाओं में मातंगी नौवीं महाविधा के रूप में जानी जाती हैं, इन्हें प्रकृति की स्वामिनी भी कहा जाता हैं। मातंगी देवी का सम्बन्ध पशु, पक्षी, जंगल, वन, शिकार इत्यादि से हैं। जंगल में वास करने वाले आदिवासी-जनजातियों में देवी मातंगी अत्यधिक पूजी जाती हैं। मातंगी कवच का पाठ करने से व्यक्ति संगीत, वाणी, ज्ञान, विद्या और कला में निपुण होने लगता हैं। यदि कोई व्यक्ति संगीत, में दिलचस्पी रखता हैं, परन्तु लगातार संगीत का अभ्यास करने के बाद भी वह स्वयं को संगीतकार बनने में असमर्थ महसूस करता हैं, तो ऐसी स्थिति में उसे मातंगी कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। इस कवच का पाठ करने से उसे संगीत में कुशलता प्राप्त होने लगती हैं, जिससे वह भविष्य में अच्छा वक्ता, संगीतकार बनता हैं

यदि किसी बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा हैं, फोकस करने में कठिनाई हो रही हैं, पढ़ा हुआ सब भूल रहा हैं, परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त नही हो पा रहे हैं, जिसके कारण वह अपने लक्ष्य से दूर होता जा रहा हैं और बार-बार असफल हो जाता हैं, तो ऐसी स्थिति में उस बच्चे को मातंगी कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। इस कवच का पाठ करने से ज्ञान तथा एकाग्र क्षमता में वृद्धि होने लगती हैं, पढ़ाई में मन लगता हैं और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने में सहायता मिलती हैं, सफलता के नए-नए रास्ते खुलने लगते हैं। मातंगी कवच का पाठ कड़ी मेहनत करने और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुत ही लाभकारी हैं।