Medha Suktam, मेधा सूक्तं

मेधा सूक्तं | Medha Suktam

मेधा सूक्तं/Medha Suktam

सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् ।

सनिं मेधामयासिषं स्वाहा ॥ १ ॥

अर्थ- यज्ञगृह के पालक, अचिन्त्य शक्ति से सम्पन्न, परमेश्वर की प्रिय कमनीय शक्ति अग्निदेव से मैं धन-ऐश्वर्य की तथा धारणावती मेधा की याचना करता हूँ । उसके निमित्त यह श्रेष्ठ आहुति गृहीत हो ॥ १ ॥

यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते ।

तया मामद्य मेधयाऽग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ॥ २ ॥

अर्थ- हे अग्निदेव ! आप मुझे आज उस मेधा के द्वारा मेधावी बनाइये, जिस मेधा का देव-समूह और पितृ-गण सेवन करते हैं । आपके लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है ॥ २ ॥

मेधां मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः ।

मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधां धाता ददातु मे स्वाहा ॥ ३ ॥

अर्थ- वरुणदेव मुझे तत्त्वज्ञान को समझने में समर्थ मेधा पर्दान करें, अग्नि और प्रजापति मुझे मेधा प्रदान करें, इन्द्र और वायु मुझे मेधा प्रदान करें । हे धाता ! आप मुझे मेधा प्रदान करें । आप सब देवताओं के लिये मेरी यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है ॥ ३ ॥

इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम् ।

मयि देवा दधतु श्रियमुत्तमां तस्यै ते स्वाहा ॥ ४ ॥

अर्थ- ब्राह्मण एवं क्षत्रिय – दोनों मेरी सम्पत्ति का उपभोग करें । देवगण मुझे उत्तम लक्ष्मी प्रदान करें । लक्ष्मी के निमित्त मेरे द्वारा दी गयी यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित हो ॥ ४ ॥

मेधादेवी जुषमाणा न आगाद्विश्वाची भद्रा सुमनस्य माना ।

त्वया जुष्टा नुदमाना दुरुक्तान् बृहद्वदेम विदथे सुवीराः ।

त्वया जुष्ट ऋषिर्भवति देवि त्वया ब्रह्माऽऽगतश्रीरुत त्वया ।

त्वया जुष्टश्चित्रं विन्दते वसु सा नो जुषस्व द्रविणो न मेधे ॥ ५ ॥

अर्थ- प्रसन्न होती हुई देवी मेधा और सुन्दर मनवाली कल्याणकारिणी देवी विश्वाची हमारे पास आयें । आपसे अनुगृहित तथा प्रेरित होते हुए हम असद्भाषीजनों से श्रेष्ठ वचन बोलें और महापराक्रमी बनें । हे देवि ! आपका कृपा-पात्र व्यक्ति ऋषि (मन्त्र-द्रष्टा) हो जाता है, वह ब्रह्न-ज्ञानी और श्री-सम्पन्न हो जाता है । आप जिस पर कृपा करती हैं, उसे अद्भुत सम्पत्ति प्राप्त हो जाती है । ऐसी हे मेधे ! आप हम पर प्रसन्न होवो और हमें द्रव्य से सम्पन्न करें ॥ ५ ॥

मेधां म इन्द्रो दधातु मेधां देवी सरस्वती ।

मेधां मे अश्विनावुभावाधत्तां पुष्करस्रजा ।

अप्सरासु च या मेधा गन्धर्वेषु च यन्मनः ।

दैवीं मेधा सरस्वती सा मां मेधा सुरभिर्जुषतां स्वाहा ॥ ६ ॥

अर्थ- इन्द्र हमें मेधा प्रदान करें, देवी सरस्वती हमें मेधा-सम्पन्न करें, कमल की माला धारण करने वाले दोनों अश्विनीकुमार हमें मेधा-युक्त करें । अप्सराओं में जो मेधा प्राप्त होती है, गन्धर्वों के चित्त में जो मेधा प्रकाशित होती है, सुगन्ध की तरह व्यापिनी भगवती सरस्वती की वह दैवी मेधा-शक्ति मुझपर प्रसन्न हों ॥ ६ ॥

आ मां मेधा सुरभिर्विश्वरुपा हिरण्यवर्णा जगती जगम्या ।

ऊर्जस्वती पयसा पिन्वमाना सा मां मेधा सुप्रतीका जुषन्ताम् ॥ ७ ॥

अर्थ- अनेक रुपों में प्रकट सुरभि-रुपिणी, स्वर्ण के समान तेजोमयी, जगत् में सर्व-व्यापिनी, ऊर्जा-मयी और सुन्दर चिह्नों से सुसज्जित देवी मेधा ज्ञानरुपी दुग्ध का पान कराती हुई मुझपर प्रसन्न हों ॥ ७ ॥