श्री नाग स्तोत्र | Naag Stotra
श्री नाग स्तोत्र (Naag Stotra)
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च । सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥
मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् । विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥
अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: । कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: । भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥
॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
Naag Stotra | श्री नाग स्तोत्र
Agastyascha Pulastyascha Vaishampayan and Ch.
Sumantujaiminischiva Panchaite Vajravarka: 1॥
Mune: kalyanamitrasya jamineschapi kirtanat.
Vidyudagnibhayam Nasti Liktaam Home Mandal 2॥
Anantho Vasuki: Padmo Mahapadmamascha Takshak:.
Kulir: Karkat: Shankhashashtau Naga: Prakritita: 3॥
Yatrahishayi Bhagwan Yatraaste Harishwar:.
Story of Bhango Bhavati Vajrasya Tatra Sholasya 4॥
, Iti Srinagastotram Sampoornam
श्री नाग स्तोत्र विशेषताए:
श्री नाग स्तोत्र के साथ-साथ यदि सर्प सुक्तम का पाठ किया जाए तो, इस स्तोत्र का बहुत लाभ मिलता है, यह स्तोत्र शीघ्र ही फल देने लग जाते है| यदि साधक इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करने से बुराइया खुद- ब- खुद दूर होने लग जाती है साथ ही सकरात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है| अपने परिवार जनों का स्वस्थ्य ठीक रहता है और लम्बे समय से बीमार व्यक्ति को इस स्तोत्र का पाठ सच्चे मन से करने पर रोग मुक्त हो जाता है| यदि मनुष्य जीवन की सभी प्रकार के भय, डर से मुक्ति चाहता है तो वह इस स्तोत्र का पाठ करे|
इस स्तोत्र के पाठ करने से मनोवांछित कामना पूर्ण होती है| और नियमित रुप से करने से रुके हुए कार्य भी पूर्ण होने लगते है | और साधक के जीवन में रोग, भय, दोष, शोक, बुराइया, डर दूर हो जाते है साथ ही नाग की पूजा करने से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि प्राप्त होती है। याद रखे इस श्री नाग स्तोत्र पाठ को करने से पूर्व अपना पवित्रता बनाये रखे| इससे मनुष्य को जीवन में बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है|