Narsingh Vijaya Kavach | नृसिंह विजय कवच
Narsingh Vijaya Kavach (नृसिंह विजय कवच) is helpful in overcome evil. By reciting this kavach. a person gets protection from Evil obstruct, Evil powers, Negative energy etc. If you are under the influence of any evil power, due to which you are facing a lot of problems in your life. Due to which there are fights in your family every day on some issue. Mutual conflict remains among all the family members. In such a situation, reciting Narsingh Vijaya Kavach is considered a Rambaan.
All the evil powers automatically start going away from you and happiness and peace reside in your house. You start getting freedom from all types of defects by wearing Narsingh Yantra Kavach with reciting Narsingh Vijaya Kavach. Negative energy starts going away and positive energy start coming in the body. The bad effects of the planets start going away by reciting this Narsingh Vijaya Kavach regularly. If you also want to make the environment of your family positive and happy. So, you must recite Narsingh Vijaya Kavach.
नृसिंह विजय कवच | Narsingh Vijaya Kavach
श्री नारद उवाच
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ॥1
॥ श्री प्रजापतिरुवाच ॥
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ॥
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ॥
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ॥
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ॥
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ॥
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
विनियोगः-
ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः-
श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री-छन्दसे नमः मुखे,
श्रीनृसिंह-देवतायै नमः
हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये,
हुं शक्तये नमः नाभौ,
फट् कीलकाय नमः पादयोः
ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
॥ मूल-पाठ ॥
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ॥1॥
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ॥2॥
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ॥3॥
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ॥4॥
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ॥5॥
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ॥6॥
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ॥7॥
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ॥8॥
॥ फल-श्रुति ॥
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ॥
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ॥
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ॥
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ॥
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ॥
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ॥
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ॥
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ॥
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ॥
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ॥
॥ इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ॥
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है। दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध होता है। तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है।
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाँसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
नृसिंह विजय कवच के लाभ:
नृसिंह विजय कवच बुराई पर विजय प्राप्त करने में सहायक हैं। इस कवच का पाठ करने से भूत-प्रेत, बुरी शक्तियाँ, नकारात्मक ऊर्जा आदि से रक्षा होने लगती हैं। यदि आप पर किसी बुरी शक्ति का प्रभाव बना हुआ हैं, जिस कारण आपको अपने जीवन में बहुत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं, जिससे आपके परिवार में आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़े होते रहते हैं, परिवार के सभी सदस्यों में आपसी मन मुटाव बना रहता हैं, ऐसे में नृसिंह विजय कवच का पाठ करना एक रामबाण उपाय माना जाता हैं।
जिसका पाठ करने से समस्त बुरी शक्तियाँ खुद-ब-खुद आपसे दूर होने लगती हैं तथा आपके घर में सुख-शांति का वास होता हैं। नृसिंह विजय कवच का पाठ करने के साथ नृसिंह यंत्र कवच धारण करने से आपको सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति प्राप्त होने लगती हैं, नकारात्मक ऊर्जा दूर होने लगती हैं और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं। इस कवच का नित्य पाठ करने से, ग्रहो के अशुभ प्रभाव दूर होने लगते हैं। यदि आप भी अपने परिवार का वातावारण सकारात्मक और सुखी बनाना चाहते हैं तो आपको नृसिंह विजय कवच का पाठ अवश्य करना चहिये।