पवमान सूक्तं | Pavamana Suktam
पवमान सूक्तं (Pavamana Suktam)
सहस्राक्षं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १ ॥
अर्थ- जो सहस्रों नेत्रवाला, सैकड़ों धाराओं में बहनेवाला तथा ऋषियोंसे पवित्र किया गया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १ ॥
येन पूतमन्तरिक्षं यस्मिन्वायुरधिश्रितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २ ॥ – पवमान सूक्तं
अर्थ- जिससे अन्तरिक्ष पवित्र हुआ है, वायु जिसमें अधिष्ठित है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २ ॥
येन पूते द्यावापृथिवी आपः पूता अथो स्वः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ३ ॥- Pavamana Suktam
अर्थ- जिससे द्युलोक और पृथिवी, जल और स्वर्ग पवित्र किये गये हैं, उन सहस्त्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ३॥
येन पूते अहोरात्रे दिशः पूता उत येन प्रदिशः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ४ ॥
अर्थ- जिससे रात और दिन, दिशा-प्रदिशाएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ४ ॥
येन पूतौ सूर्याचन्द्रमसौ नक्षत्राणि भूतकृतः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ५ ॥
अर्थ- जिससे सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र और भौतिक सृष्टि रचनेवाले पदार्थ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ५ ॥
येन पूता वेदिरग्नयः परिधयः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ६ ॥
अर्थ- जिससे वेदी, अग्नियाँ और परिधि पवित्र की गयी हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ६ ॥
येन पूतं बर्हिराज्यमथो हविर्येन पूतो यज्ञो वषट्कारो हुताहुतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ७ ॥- Pavamana Suktam
अर्थ- जिससे कुशा, आज्य, हवि, यज्ञ और वषट्कार तथा हवन की हुई आहुति पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ७ ॥
येन पूतौ व्रीहियवौ याभ्यां यज्ञो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ८ ॥
अर्थ- जिसके द्वारा व्रीहि और जौ (अर्थात् प्राणापान) पवित्र हुए हैं, जिससे यज्ञका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ८ ॥
येन पूता अश्वा गावो अथो पूता अजावयः ।
तेना सहस्त्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ९ ॥
अर्थ- जिससे अश्व, गौ, अजा, अवि [और पुरुषसंज्ञक] प्राण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ९ ॥
येन पूता ऋचः सामानि यजुर्जाह्मणं सह येन पूतम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम्॥ १० ॥- पवमान सूक्तं
अर्थ- जिसके द्वारा ऋचाएँ, साम, यजु और ब्राह्मण पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधारके द्वारा पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १० ॥
येन पूता अथर्वाङ्गिरसो देवताः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ ११ ॥
अर्थ- जिससे अथर्वाङ्गिरस और देवता पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ ११ ॥
येन पूता ऋतवो येनार्तवा येभ्यः संवत्सरो अधिनिर्मितः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १२ ॥
अर्थ- जिससे ऋतु तथा ऋतुओं में उत्पन्न होनेवाले रस पवित्र हुए हैं, एवं जिससे संवत्सरका निर्माण हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १२ ॥
येन पूता वनस्पतयो वानस्पत्या ओषधयो वीरुधः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १३ ॥
अर्थ- जिससे वनस्पतियाँ, पुष्पसे फल देनेवाले वृक्ष, ओषधियाँ और लताएँ पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १३ ॥
येन पूता गन्धर्वाप्सरसः सर्पपुण्यजनाः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १४ ॥
अर्थ- जिससे गन्धर्व और अप्सराएँ, सर्प और यक्ष पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १४ ॥
येन पूताः पर्वता हिमवन्तो वैश्वानराः परिभुवः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १५ ॥
अर्थ- जिससे हिममण्डित पर्वत, वैश्वानर अग्नियाँ और परिधि पवित्र हुई हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १५ ॥
येन पूता नद्यः सिन्धवः समुद्राः सह येन पूताः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १६ ॥
अर्थ- जिससे नदियाँ, सिंधु आदि महानद और सागर पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १६ ॥
येन पूता विश्वेदेवाः परमेष्ठी प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १७ ॥
अर्थ- जिससे विश्वेदेव और परमेष्ठी प्रजापति पवित्र हुए हैं, उसे सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १७ ॥
येन पूतः प्रजापतिर्लोकं विश्वं भूतं स्वराजभार ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १८ ॥
अर्थ- जिससे पवित्र होकर प्रजापतिने समस्त लोकको, भूतोंको और स्वर्गको धारण किया है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १८ ॥
येन पूतः स्तनयित्नुरपामुत्सः प्रजापतिः ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ १९ ॥
अर्थ- जिससे विद्युत् और जलोंके आश्रय प्रजापालक मेघ पवित्र हुए हैं, उस सहस्रधार सौमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ १९ ॥
येन पूतमृतं सत्यं तपो दीक्षां पूतयते ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २० ॥
अर्थ- जिससे ऋत और सत्य पवित्र हुए हैं, जो तप और दीक्षाको पवित्र करता है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २० ॥
येन पूतमिदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
तेना सहस्रधारेण पवमानः पुनातु माम् ॥ २१ ॥
अर्थ- जिससे जो कुछ भूत और भविष्य है, सभी पवित्र हुआ है, उस सहस्रधार सोमसे पवमान मुझे पवित्र करे ॥ २१ ॥