Bhavprakash Book/भावप्रकाश पुस्तक
Bhavprakash (भावप्रकाश पुस्तक) An important book, Bhavprakash Book is not easily available, this book is written by Dr. Satyendra Mishra This Bhavprakash Book is published by Chaukhamba Prakashan, Varanasi, Uttar Pradesh in 2017, This book contains 192 pages.
Bhavprakash Book Content list:
According to the content list of the Bhavprakash Book, the contents are duly expressed in a simple language for the convenience of the readers. The matters are mentioned here under. Sangadhyay, Bhavafalakathnadhyay, Tanvadibhavavicharadhyaya, Ravyadibhavapadarthakathanadhyay, Tanvadidvadasabhavavicharadhyaya, Yogadhyaya, Streejatakadhyay, Dashavicharadhyay, Dashafaladhyaya, Antardashafaladhyay, Pratyantardashafaladhyaya is discussed in detail; which is an important part of the Bhavprakash Book.
Bhavprakash Book Benefits:
- Reading the Bhavprakash Book provides information about important subjects of astrology.
- By reading the Bhavprakash Book, you can understand the importance of astrology.
- With the Bhavprakash Book, you can know the events happening in your life.
Bhavprakash Book Description:
The importance of astrology is shown in almost all the accepted texts of Sanskrit Wangmoy. The ‘Horaaskandh’ of Triskandha astrology is revered and publicized in the world due to its identification with human life. This wing of astrology has been enriched by acquiring royalty since ancient times. As a result, from time to time, there have been the creation of resultant texts consisting of small large pieces. The Jaimini Parashara is a complete shelter of the opinions of the sages in the ancient texts. But in the books of the Westernists, along with the sage votes, the divineists have also adjusted their experiences. In Falit skandha, there is a thought of a strong sentiment. In the book ‘Bhavaprakash’, the Jatak is also considered by the Dwadbashavava. Here it is necessary to have some thought on the word ‘Bhava’.- Bhavprakash Pushtak.
The property of the horizon and the non-asteroid is called the Lagna. The horizon circle consists of two – the gular and the dorsal. There are also two types of Lagna – ‘Bharvatriya’ and ‘future’. The surface of the dorsal horizon and the non-aorta is the external ascendant. In this, according to the revolution of the Sun, the value of the Ascendant sign (by 30 degrees) in the vision keeps increasing. Therefore, it is called the Lagna of the non-polarity.- Bhavprakash Pushtak.
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book
भावप्रकाश एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book आसानी से उपलब्ध नहीं होती, यह पुस्तक डॉ. सत्येन्द्रमिश्र जी के द्वारा लिखी हुई है, इस भावप्रकाश: पुस्तक को चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, ने सन् 2017 में प्रकाशित किया है, इस पुस्तक में 192 पृष्ठ(पेज) है।
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book की विषय सूचि:
भावप्रकाश: पुस्तक में विषय सूचि अनुसार – संज्ञाध्याय, भावफलकथनाध्याय, तन्वादिभावविचाराध्याय, रव्यादिभावपदार्थकथनाध्याय, तन्वादिद्वादशभावविचाराध्याय, योगाध्याय, स्त्रीजातकाध्याय, दशाविचाराध्याय, दशाफलाध्याय, अन्तर्दशाफलाध्याय, प्रत्यंतर्दशाफलाध्याय, ग्रन्थकारपरिचयाध्याय के बारे में विस्तार रूप से बताया गया है, जोकि भावप्रकाश: पुस्तक के महत्वपूर्ण अंग है।
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book के लाभ:
- भावप्रकाश पुस्तक को पढ़ने से ज्योतिष के महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है।
- भावप्रकाश पुस्तक को पढ़कर आप ज्योतिष के महत्व को समझ सकते है।
- भावप्रकाश पुस्तक से आप अपने जीवन में होने वाली घटनाओं को जान सकते है।
भावप्रकाश पुस्तक/Bhavprakash Book का विवरण:
ज्योतिषशास्त्र के महत्व को संस्कृत वांगमय के प्राय: समस्त मान्य ग्रन्थों में दर्शाया गया है। त्रिस्कन्ध ज्योतिष का ‘होरास्कन्ध’ मानव जीवन से अधिक तादात्मयता के कारण लोक में सम्मानित और प्रचारित है। ज्योतिषशास्त्र का यही स्कन्ध प्राचीन काल से ही राज्याश्रय प्राप्त करके सम्वर्धित होता रहा है। फलस्वरूप समय समय पर लघु वृहत कलेवरों से युक्त फलित ग्रन्थों की रचना होती रही है। प्राचीन फलित ग्रन्थों में जैमिनी पराशरादि ऋषियों के मतों का सर्वाशत: आश्रय है। परन्तु पाश्चात्यों के ग्रन्थों में ऋषि मतों के साथ साथ अपने अनुभवों मतों को भी दैवज्ञों ने समायोजित किया है। फलितस्कन्ध में फलादेशार्थ द्वादश भावों का विचार किया जाता है। प्रस्तुत पुस्तक ‘भावप्रकाश’ में भी द्वादशभावों द्वारा ही जातक सम्बन्धि विचार किया गया है। यहाँ ‘भाव’ शब्द पर कुछ विचार कर लेना आवश्यक है।
कुण्डली में गणित प्रक्रिया से द्वादश लग्न निकाला जाता है जिसे द्वादश भावसाधन भी कहा जाता है। द्वादशभाव के साथ साथ द्वादश सन्धि का भी साधन किया जाता है। यहाँ इस पर भी थोडा विचार आवश्यक है। क्षितिजवृत्त और अहोरात्रवृत्त के सम्पात को लग्न कहा जाता है क्षितिज वृत्त दो होते है – गर्भीय और पृष्ठीय । लग्न भी दो प्रकार के होते है – ‘भवृत्तीय’ और ‘भविम्बीय’ । पृष्ठीय क्षितिजवृत्त और अहोरात्रवृत्त का सम्पात भवृत्तीय लग्न होता है। इसमें सूर्य के क्रन्त्यंशानुसार के न्यूनाधिकार से दृगवृत्त में लग्न राशि का मान (30 अंश से) न्यूनाधिक होता रहता है। अत: यह अनार्ष मत का लग्न कहा जाता है।
Bhavprakash Book Details:
Book Publisher: Chaukhamba Prakashan
Book Author: Dr. Satyendra Mishr
Language: Sanskrit
Pages: 192 Pages
Size: “18” x “12” cm
Weight: 132 gm Approx
Edition: 2017
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