Kenopnishat Narayanopnishat Book/केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक
Kenopnishat Narayanopnishat (केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक) is an important book, Kenopnishat Narayanopnishat Book is not readily available, this book is written by Acharya Shivasprasda Divedi Ji, published this Kenopnishat Narayanopnishat Book, by Chaukhamba Prakashan, publisher in Varanasi, Uttar Pradesh, in 2009, this book. This book has 55 pages.
Kenopnishat Narayanopnishat Book Content list:
According to the content list of the Kenopnishat Narayanopnishat Book, it contains, Ist phase, Shantipaath, first Mangalacharan, second Mangalacharan, question of the disciple, Answer by the Guru to the disciple, Archiradimarg, The inner most center of Brahma and the element of the outer matter, second phase, debate betwen the Guru and Disciple regarding the knowledge of Brahma, exposure of the disciple, the compliance of Brahma Gyan, result of Brahma Gyan, implementation of Brahma Gyan in the body, third section, disclosure about the Yaksh, destroy of pride by fire, the derecognising the God in the shape of Yaksha by the Fire, by the Air, in fourth phase the preaching to Indra by Parvati regarding Brahma, rendering the knowledge by Indra to other Gods, Narayanopnishad, and the evolution of every thing by the grace of Narayana, these matters are detailed in this book which is the significant part of this book.
Kenopnishat Narayanopnishat Book Benefits:
- By reading the Kenopnishat Narayanopnishat Book, the information related to important topics is available.
- By reading the Kenopnishat Narayanopnishat Book, you can understand the importance of preaching.
Kenopnishat Narayanopnishat Book Description:
In the Upanishad’s theoristical society, there is the second place of Kenopanishad in the top ten Upanishads. It is equally important in terms of elemental explanation, as it is small in terms of the Upanishad shape, read under the collective sulav Kenopanishad. After rendering the prevalence of Paramatatwa in the first ‘Eshavasayopanishad’ in the Upanishad system, and after rendering the world’s mortality and perpetual misery, this question is natural, who is the regulator of this conscious world? This question only indicates the name of ‘Ken’ of this Upanishad. Who is the regulator of this world? This question only indicates the name of ‘Ken’ of this Upanishad. Who is the regulator of this world? Who is the broadest element in this world? What is the goal of human life? Who is the instrument of self welfare? Who is the supporting element in Autism? Who is the disadvantage in Autism?.- Kenopnishat Narayanopnishat Pushtak
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक/Kenopnishat Narayanopnishat Book
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक/Kenopnishat Narayanopnishat Book आसानी से उपलब्ध नही होती, यह पुस्तक आचार्य श्रीशिवप्रसादद्विवेदी जी के द्वारा लिखी हुई है, इस केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक को चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, ने सन् 2009 में प्रकाशित किया है, इस पुस्तक में 55 पृष्ठ(पेज) है।
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक की विषय सूचि:
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक/Kenopnishat Narayanopnishat Book में विषय सूचि अनुसार- प्रथम खण्ड, शान्तिपाठ, प्रथम मंगलाचरण, द्वितीय मंगलाचरण, शिष्य का प्रश्न, आचार्य का शिष्य को उत्तर, अर्चिरादिमार्ग, ब्रह्म के आभ्यन्तरेन्द्रिय तथा बहिरिन्द्रियों के अविषयत्व का प्रतिपादन, द्वितीय खण्ड, ब्रह्मज्ञान के विषय में शिष्याचार्य-संवाद, शिष्य का स्वाभिप्राय प्रकाशन, ब्रह्म के आनन्त्य का प्रतिपादन, ब्रह्मज्ञान का फल, ब्रह्मज्ञान से जीवन की कृतकृत्यता, तृतीय खण्ड, यक्षोपाख्यान, ब्रह्म द्वारा अग्नि के अभिमान का नाश, अग्निदेव यक्षरूपधारी भगवान का पता नहीं लगा सके, वायुदेवता भी यक्षरूपधारी भगवान का पता नहीं लगा सके, चतुर्थ खण्ड, पार्वती द्वारा इंद्र को ब्रहमोपदेश, अग्नि, वायु तथा इंद्र इन तीनों देवताओं का अन्य देवताओं से श्रौष्ठयप्रतिपादन, इंद्र का स्वेतर समस्त देवताओं से प्रतिपादन, ब्रह्मविद्या के ज्ञान का फल, अथ नारायणोपनिषत्, शान्ति पाठ, नारायण से ही सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति होती है के बारे में विस्तार रूप से बताया गया है, जोकि केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक/Kenopnishat Narayanopnishat Book के महत्वपूर्ण अंग है।
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक के लाभ:
- केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक को पढ़ने से उपदेशात्मक पाठ से महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है।
- केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक को पढ़कर आप उपदेश के महत्व को समझ सकते है।
केनोपनिषत् नारायणोपनिषत् पुस्तक का विवरण:
उपनिषत् सिद्धान्तानुयायी समाज में प्रख्यात दश उपनिषदों में केनोपनिषत् का दूसरा स्थान है। सामवेदीय तलवकारोपनिषत् के अंतर्गत पठित यह उपनिषत् आकार की दृष्टि से जितना ही छोटा है, तत्व विवेचन की दृष्टि से यह उतना ही महत्वपूर्ण है। उपनिषत् निकाय में सर्वप्रथम पठित ‘ईशावास्योपनिषत्’ में परमात्म तत्व की व्यापकता का प्रतिपादन करने तथा संसार की नश्वरता तथा सप्तविध दुःखसं’भिन्नता का प्रतिपादन करने के पश्चात स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न होता है, कि इस चेतनात्मक जगत का नियामक कौन है? इस प्रश्न को ही इस उपनिषत् का ‘केन’ यह नाम सूचित करता है। इस जगत का नियामक कौन है? इस जगत में व्यापक तत्व कौन है? मानव जीवन का लक्ष्य क्या है? आत्म कल्याण के साधन कौन है? आत्मकल्याण में सहायक तत्व कौन है? आत्मकल्याण में बाधक तत्व कौन है?- Kenopnishat Narayanopnishat Pushtak.
Kenopnishat Narayanopnishat Book Details:
Book Publisher: Chaukhamba Prakashan
Book Author: Acharya Shiv Prasad Divedi
Language: Hindi
Weight: 0.056 gm Approx.
Pages: 55 Pages
Size: “22” x “14” x “1” cm
Edition: 2009
Shipping: Within 4-5 Days in India
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