Saral Laghu Parashari Book | सरल लघु पाराशरी पुस्तक
Saral Laghu Parashari Book/सरल लघु पाराशरी पुस्तक: The usefulness of Maharishi Parashar composition is well known in the world of astrology. Scholars say that whoever has not studied it properly is not worthy of being called a divine expert. Because Maharishi has filled the essence of Adhikari Marak in these 40 verses in such a way as if he has included the ocean in the pitcher.
Therefore, since ancient times, scholars have made many commentaries on this Laghu Parashar book. Which has also been published in the famous presses of Bombay, Mathura and Kashi etc. But all the commentators have given a long and detailed explanation in Sanskrit but have not been able to explain its main principles like triangle etc. that according to the verse ‘Sarve Trikonnetar’.
The author has considered the places 1, 5, 9 as triangles. According to other Jataka texts, they have been considering only 9, 5 as a triangle. Parasharikar was of the opinion to consider only 1, 5, 9 in the triangle. Otherwise, he would have changed the verse itself and made a verse like ‘Trikonnetarau’. And in a Madhya Parashari printed in a center of learning like Kashi.
The meaning of wealth in the 15th and 16th verses of Daridrarog has been given as the second house whereas the author has already promised ninth place Dhanam and ‘Katpayavarga Bhavai.’ Etc. According to the rules, the ninth house is proved by the word ‘dhan’. And in place of ‘Twatra’, ‘Tatra’ has been made, there also the meaning of ‘Twatra’ is proved to be Dwadashbhav from the remaining 24 Dwadashashtit.
Author Recognition:
Anant Shri Vibhushit Jagadguru Shri Nimbakacharya Shri ‘Shriji’ Shri Radhasarveshwar Sharandevacharyaji Maharaj President A.B. Congratulatory consent of Shri Nimbacharya Peeth, Salemabad, Kishangarh, Rajasthan. Scholar Pandit Shri Dharanidhar Ji Shastri has received Kavya Tirth. It was a great pleasure to see both the books ‘Saral Sarvadev Pratishtha’ and ‘Saral Navyajyo Tishasar’ produced by High School, Ajmer.
By looking at these texts, Panditji’s deep erudition in rituals and astrology is also reflected. The simple marriage system, simple funeral system, simple exorcism, daily rituals etc. created by him with new innovations in rituals have been greatly benefiting not only the villages but also the pundits of the cities.
You are also a good poet of Sanskrit and Hindi language. Your Hindi verse translation on Laghu-Parashari and Madhya Parashari has also been unprecedented. He is also a devotee poet and a promoter of Ramayanavat by writing the story of Satyanarayanji in Hindi couplets.
In fact, Pandit ji is not just a Shastri in name only, but by churning many scriptures and creating fifteen to sixteen texts in a simple manner, he has succeeded in doing good to innumerable students. We wish for the progressive progress of this public welfare work of Pandit ji and wish him well from Lord Shri Sarveshwar.
सरल लघु पाराशरी पुस्तक | Saral Laghu Parashari Book
ज्योतिष शास्त्र जगत में महर्षि पाराशर प्रणीत की उपादेयता सर्वविदित है। विद्वानों का कहना है कि जिसने भी इसका सम्यक् अध्ययन नहीं किया, वह देवज्ञ कहलाने योग्य नहीं। क्योंकि महर्षि ने इन ४० श्लोकों में अधिकारी मारक का सार इस प्रकार भर दिया है मानो गागर में सागर का समावेश कर दिया हो।
इसलिये प्राचीन काल से ही इस लघुपाराशर ग्रन्थ पर विद्वानों ने अनेकों टीकायें की है ৷ जो बम्बई के सुप्रसिद्ध प्रेसों में, मथुरा में एवं काशी आदि में भी प्रकाशित हुई है। परन्तु सभी टीकाकार संस्कृत में तो लम्बी चौड़ी व्याख्या कर गये हैं परन्तु इसके मुख्य सिद्धांत त्रिकोण आदि को भी नहीं समझा पाये हैं कि ‘सर्वे त्रिकोणनेतार’ श्लोक के अनुसार ग्रन्थकार ने यहाँ १, ५, ९ स्थान को त्रिकोण माना है। वे तो अन्य जातक ग्रन्थों के अनुसार ९, ५ को ही त्रिकोण मानते रहे हैं।
पाराशरीकार को तो त्रिकोण में १, ५, ९ को ही मानना अभिमत था। नहीं तो वे श्लोक को ही पलटकर ‘त्रिकोणनेतारौ’ ऐसा पद्य बना देते।एवं काशी जैसे विद्या केन्द्र की मुद्रित एक मध्य पाराशरी में दारिद्ररोग के १५, १६ श्लोकों में धन का अर्थ द्वितीय भाव किया हैं जबकि ग्रन्थकार ने नवम स्थानम् धनम् की पहले ही प्रतिज्ञा की है तथा ‘कटपयवर्ग भवै.’ इत्यादि नियमानुसार भी ‘धन’ शब्द से नवमभाव सिद्ध होता है। एवं ‘त्वत्र’ के स्थान में तत्र बना दिया है, वहां भी त्वत्र का अर्थ २४ द्वादशतष्टित शेष से द्वादशभाव ही सिद्ध होता है।
लेखक परिचिति:
अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु श्री निम्बाकाचार्य श्री ‘श्रीजी’ श्री राधासर्वेश्वरं शरणदेवाचार्यजी महाराज अध्यक्ष अ.भा. श्री निम्बाकाचार्य पीठ सलेमाबाद किशनगढ़ राजस्थान की शुभाशीर्वादात्मक सम्मति विद्वद्वर पंडित श्री धरणीधर जी शास्त्री काव्यतीर्थ अवकाश प्राप्त ह. मे. हाई स्कूल, अजमेर द्वारा निर्मित ‘सरल सर्वदेव प्रतिष्ठा’ तथा ‘सरल नव्यज्यो तिषसार’ दोनों पुस्तकें देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। इन ग्रन्थों को देखने से पण्डितजी की कर्मकाण्ड और ज्योतिष में भी गवेषणापूर्वक विद्वत्ता परिलक्षित होती है। कर्मकाण्ड में नई-नई खोज वाली इनकी बनाई हुई सरल विवाह पद्धति, सरल अन्त्येष्ठि कर्म पद्धति, सरल प्रेतमंजरी, नित्यकर्म आदि से गांवों में ही नहीं अपितु नगरों के पंडितों को भी बहुत लाभ होता रहा है ।
आप संस्कृत तथा हिन्दी भाषा के अच्छे कवि भी है। लघु-पाराशरी और मध्य पाराशरी पर भी आपका हिन्दी पद्यानुवाद अभूतपूर्व हुआ है। सत्यनारायणजी की कथा को भी हिन्दी दोहा चौपाइयों में लिखकर रामायणवत् प्रचारकर्त्ता के रूप में ये एक भक्त कवि भी है। वास्तव में पण्डित जी केवल नाम मात्र के ही शास्त्री नहीं, अपितु अनेक शास्त्रों का मन्थन करके, पन्द्रह सोलह ग्रन्थों का सरल निर्माण करके असंख्य छात्रों के उपकार करने में सफल हुये हैं। हम पण्डित जी के इस लोकहित कार्य की उत्तरोत्तर उन्नति की आकांक्षा करते हुये भगवान श्री सर्वेश्वर से इनकी मंगल कामना करते हैं।
Saral Laghu Parashari Book Details:
Book Publisher: Saraswati Prakashan
Book Author: Pt. Dharnidhar Shastri
Language: Hindi, Sanskrit
Weight: 140 gm Approx.
Pages: 112 Pages
Size: “21.5” x “14” x “0.5” cm
Edition: 2001
Shipping: Within 4-5 Days in India
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