Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book/धनप्राप्ति धार्मिक अनुष्ठान पुस्तक : Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book is an important book, in which information about puja viddhi is hidden.
Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book About :
Mahalakshmi ji is worshipped in Satyuga, Tretayuga, Dwaparug and Kaliyuga, by Brahma, Vishnu, Uma, Nardadi Rishis and the zodiac have been blessed in all ages, and whoever has attained riddhi-siddhi, happiness-sampada has attained by him. There is evidence in Vedas that even large sages have recited Srishuktam to achieve Lakshmi. The reason is that residing in the inferno Lakshmi is offering auspicious results, publishing the effect of karma and giving to the virtues. In the house where Lord Lakshmi is pleased, all virtues, all possible things, all the welfare work are done and the mind does not panic. Sacrifice, clothing, eating, building, splendor Aishwarya, fourteen Gems, all come from Mahalaxmi’s grace. It destroys the sins of the creature. -Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book.
But the subject of misfortune on the holy land of India is that Brahmin is not educated at most places. If there is a Brahmin, then he has neither the information of many sources mentioned in Srisuktam, Kanakdhara Stotra, and Lakshmi Ashtak and in the book nor is there any book available to them. Then the masses are certainly the most deprived of them. At the end of the Yajna, the dessert is imposed by the Shree Suktam’s Ahuati by the Brahmins. But not everyone has the knowledge of its importance. -Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book.
धनप्राप्ति धार्मिक अनुष्ठान पुस्तक/Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book
धन प्राप्ति धार्मिंक अनुष्ठान, यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें पूजा विद्धि के बारे में जानकारी दी गई है।
धनप्राप्ति धार्मिक अनुष्ठान पुस्तक के बारे में..
महालक्ष्मी जी को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग, चारों ही युगों में ब्रह्मा, विष्णु, उमा, नारदादि ऋषियों तथा प्राणीमात्र ने ध्याया है और जिसने भी ध्याया उसने रिद्धि-सिद्धि, सुख-सम्पदा प्राप्त की है। वेदों में प्रमाण है कि बड़े बड़े ऋषियों ने भी लक्ष्मी प्राप्ति हेतु श्रीसुक्तम का पाठ किया है। कारण यह है कि पाताल निवासिनी लक्ष्मी शुभ फल देने वाली, कर्मो के प्रभाव को प्रकाशित करने वाली और सद्गुणों को प्रदान करने वाली है। श्री लक्ष्मी जिस घर में कृपा करता है वहां सब सद्गुण, सब सम्भव, समस्त मंगल कार्य होते है तथा मन नहीं घबराता है। यज्ञ, वस्त्र, खान-पान, भवन, वैभव. ऐश्वर्य, रत्नचतुर्दश, सब महालक्ष्मी की कृपा से ही आते है। इससे प्राणीमात्र के पाप नष्ट हो जाते है। -Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book.
किन्तु भारतवेश की पवित्र भूमि पर दुर्भाग्य का विषय यह है कि अधिकाँश स्थानों पर शिक्षित ब्राह्मण ही नहीं है। ब्राह्मण है तो उन्हें श्रीसूक्तम, कनकधारा स्तोत्र, लक्ष्मी अष्टक तथा पुस्तक में वर्णित अनेक स्त्रोतों की न तो जानकारी है और न ही उनके पास यह पुस्तकें उपलब्ध ही है। तो फिर जनसाधारण तो निश्चय ही इन सबसे वंचित ही है। यज्ञादि में अंत में खीर से श्रीसूक्तम की आहुति ब्राह्मणों द्वारा लगा दी जाती है। किन्तु सभी को उसके महत्व का ज्ञान नहीं है। -Dhanpraapti Dharmik Anushthan Book.
Dhan Praapti Dharmik Anushthan Book Details:
Book Publisher: Randhir Prakashan
Book Author: Shree Anil Modi
Language: Hindi
Weight: 260 gm Approx.
Pages: 160 Pages
Size: “21” x “14” x “1” cm
Edition: 2016
Shipping: Within 4-5 Days in India
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Deepu Sharma –
इस पुस्तक को पढ़ने से मुझे बहुत लाभ मिला है, धन की भी प्राप्ति हुई