Navagraha Stotra Book/नवग्रह स्तोत्र पुस्तक: Navagraha Stotra Book is an important book, in which information about puja vidhi is hidden.
Navagraha Stotra Book About:
Like the flower of a Japa who has the luster, who is born to Kashyap, whose enemy is the darkness, , who destroys all the sins, I salute that Sun God. Like the curd, conch or snow, whose brilliance originated from the dessert Sea, which resides like the decoration on Shiva’s crown, I salute Chandra. Those who have been born from the womb of the earth, I bow to Lord Mars, who has the power of electrifying power (power), who holds the power in his hands. Like the Priyung’s bud, which has black color, there is no likelihood of the form. I salute to Mercury for the gentle and gentle properties. –Navagraha Stotra Book.
Those who are the Gurus of the Gods and Sages, who have the same effect as Kanchan, who bow to the eternal treasures of wisdom and Lord of the three worlds, I bow to the Jupiter. Who has the grace like Blue Anjan, I bow to the Shani Dev, who has the splendor, who is the son of Sun God and the great brother of Yamraaj, whose birth has originated from the shadow of the sun, and I bow to him. -Navagraha Stotra Book.
The planet that has only half the body, in which there is great power, who defeat the moon and the sun, I bow to the Rahu Deity, who have been born from the womb of Lioness. Even the common men and women of the world also suffer from the misery of dreams. Those who read it receive unparalleled wealth and health and confirmation increases. -Navagraha Stotra Book.
नवग्रह स्तोत्र पुस्तक/Navagraha Stotra Book
नवग्रह स्तोत्र, यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें पूजा विधि के बारे में बताया गया है।
नवग्रह स्तोत्र पुस्तक के बारे में..
जपा के फूल की तरह जिनकी कान्ति है कश्यप से जो उत्पन्न हुए है, अन्धकार जिनका शत्रु है, जो सब पापों को नष्ट कर देते है, उन सूर्य भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ। दही, शंख अथवा हिम के समान जिनकी दीप्ति है जिनकी उत्पत्ति क्षीर समुद्र से है, जो शिवजी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते है, मैं चन्द्रदेव को प्रणाम करता हूँ। पृथ्वी के उदर से जिनकी उत्पत्ति हुई है, विद्युत्पुन्ज(बिजली) के समान जिनकी प्रभा है, जो हाथों में शक्ति धारण किये रहते है, उन मंगलदेव को मैं प्रणाम करता हूँ। प्रियुंग की कली की तरह जिनका श्याम वर्ण है, जिनके रूप की कोई उपमा ही नहीं है उन सौम्य और सौम्य गुणों से युक्त बुध को प्रणाम करता हूँ।
जो देवताओं और ऋषियों के गुरु है, कंचन के समान जिनकी प्रभा है, जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार और तीनों लोकों के प्रभु है, उन ब्रहस्पतिजी को मैं प्रणाम करता हूँ। नील अंजन के समान जिनकी दीप्ति है, जो सूर्य भगवान के पुत्र तथा यमराज के बड़े भ्राता है, सूर्य की छाया से जिनकी उत्पत्ति हुई है उन शनि देवता को मैं प्रणाम करता हूँ। जिनका केवल आधा शरीर है, जिनमें महान पराक्रम है, जो चन्द्र और सूर्य को भी परास्त कर देते है, सिंहिका के गर्भ से जिनकी उत्पत्ति हुई है, उन राहु देवता को मैं प्रणाम करता हूँ। संसार के साधारण स्त्री पुरुष और राजाओं के भी दु:स्वप्न जन्य दोष दूर हो जाते है। इसका पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य तथा आरोग्य प्राप्त होता है और पुष्टि की वृद्धि होती है। -Navagraha Stotra Book.
Navagraha Stotra Book Details:
Book Publisher: Randhir Prakashan
Book Author: Pt. Kapil Mohan Ji
Language: Hindi
Weight: 036 gm Approx.
Pages: 32 Pages
Size: “14” x “11” cm
Edition: 2019
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