Saryuparin Brahman Vanshavali Book
Saryuparin Brahman Vanshavali Book (सरयूपारीण ब्राह्मण वंशावली पुस्तक): In fact, this is such a big society that no matter how much is written about it, it cannot be called complete. What can be more glorious than the fact that even Lord Shri Ramchandra, the epitome of character, accepted its discipleship with utmost reverence.
This Saryuparin society has not emerged from anywhere, this is the historical holy land of the above mentioned Dwija castes since the time of Annadivarna system. From the past, present and future experts like Maharishi Vashistha, Gautam till today, the society has been producing famous Maharishi, virtuous, renunciant, ascetic, self-controlled and great scholars.
This Saryuparin society is not a branch or sub-branch of anyone but is completely independent. Despite the difference in the local common lifestyle, they still take pride in being Saryuparin in their main conduct. It is not a matter of ordinary pride for us that this Saryuparin society got the power of worship, scholarship, worship etc. of a Yajaman like Lord Ram. Other Brahmins of that time created various disturbances against this society out of jealousy, but finally became silent after gaining knowledge. Information about this Saryuparin society has been given in this book.
Saryuparin Brahman Vanshavali Publications:
This important book of Shastri Publications is written by Shridhar Shastri. This book is of 100 pages.
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सरयूपारीण ब्राह्मण वंशावली पुस्तक
वास्तव में यह इतना बड़ा समाज है कि जिसके सम्बन्ध में कितना भी लिखा जाय परिपूर्ण नहीं कहा जा सकेगा। इसका गौरव तो इससे अधिक क्या होगा कि जिसकी शिष्यता मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री रामचन्द्र ने भी परम श्रद्धा से ग्रहण की। यह सरयूपारीण-समाज कहीं से उठकर नहीं आया है, अन्नादिवर्ण-व्यवस्थाकाल से ही उक्त द्विजातियों की यह ऐतिहासिक पवित्र भूमि है। महर्षि वशिष्ठ, गौतम जैसे त्रिकालज्ञों से लेकर आजतक समाज में लोकख्यात महर्षि, सदाचारी, त्यागी, तपस्वी, जितेन्द्रिय, महाविद्वान् होते आ रहे हैं।
यह सरयूपारीण समाज किसी की शाखा-उपशाखा नहीं अपितु सर्वथा स्वतन्त्र है। स्थानीय साधारण रहन-सहन में अन्तर होते हुए भी मुख्य आचरण में वे अब भी सरयूपारीणता का अभिमान रखते हैं। हमारे लिये यह साधारण गर्व की बात नहीं कि भगवान् राम जैसे यजमान का याजनसामर्थ्य, पाण्डित्य, पूज्यता आदि इसी सरयूपारीण समाज को उपलब्ध हुई। उस समय के अन्य ब्राह्मणों ने ईष्यांवश इस समाज के प्रति विविध उपद्रव किया, अन्ततः ज्ञान प्राप्त कर चुप हुये। इस पुस्तक में इन्ही सरयूपारीण समाज के बारे में जानकारी दी गयी है।
सरयूपारीण ब्राह्मण वंशावली पुस्तक प्रकाशन:
शास्त्री प्रकाशन की यह महत्वपूर्ण पुस्तक जो श्रीधर शास्त्री के द्वारा रचित हैं। यह पुस्तक 100 पृष्ठ की है।
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Saryuparin Brahman Vanshavali Book Details:
Book Prakashan: Shastri Prakashan
Book Author: Shridhar Shastri
Language: Hindi
Weight: 62 gm Approx.
Pages: 100 Pages
Size: “11.5” x “17.5” x “0.7” cm
Edition: 2024
Shipping: Within 4-5 Days in India
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