Yagy Vidhan Book/यज्ञ विधान पुस्तक : The word “GURU” is itself enlightened and divine word. Referring to this word with lips, purity, knowledge and consciousness are realized, it seems that we have dipped into Mansarovar, it seems that the idol of God inside us has been established, because this word is in itself is the synonyms of love, energy and divinity. -Yagy Vidhan Book. Guru-worship is a different thing, if we are uneducated, less educated, short-lived, we have a lack of discretion, then in such a situation, the only solution is avoided, that we will be very revered, with the words of the word Pronouncing Guru. And the pronunciation of these two words only fills the whole body with the inner brightness, gives bath by the Ganga water, gives the ability to fly in the entire sky, because it is not only two characters, but the mind-conscious power of mantra Shakti, is the essence of the Vedas, the essence of the Upanishads, the essence of life with inner meaning. -Yagy Vidhan Book.
Yagy Vidhan Book/यज्ञ विधान पुस्तक About Author:
The world famous Dr. Narayan Dutt Shrimali was an exponent spiritual Guru of this era. He implied the lost spiritual science into a modern way, which was a true cultural heritage of India particularly on subjects such as Mantra, Tantra, Palmistry, Astrology, Ayurveda, Hypnotism, Kriya Yoga, Solar Science, and Alchemy to the easy reach of common people. He introduced the significance of Tantra in beautification of one’s life and in shaping a healthy, constructive society. -Yagy Vidhan Book.
यज्ञ विधान पुस्तक/Yagy Vidhan Book:
हमारा भारतीय समाज यज्ञों पर अवलम्बित रहा है, अत: यज्ञों के द्वारा समाज को सत्य मार्ग पर बढने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, क्योंकि हजारों वर्षो से यज्ञों की महत्वता निर्विवाद रूप से प्रमाणिक और सत्य मानी जाती रही है। आज के इस कलियुग में अग्नि में कुछ सामग्री के वितरित कर देने को ही यज्ञ मान लिया जाता है, क्योंकि इस भौतिकवादी युग में, जबकि मनुष्य का झुकाव पाश्चात्य संस्क्रति की ओर उन्मुख हो गया है, मानव यज्ञ की मूल क्रिया-पद्धति को भुला बैठा है। आज इसके विशेष जानकार भी नहीं रह गए है, जोकि यज्ञ को पूर्ण वैधानिक रूप से सम्पन्न कर उसके वास्तविक अर्थ को स्पष्ट कर सकें।यज्ञ एक वैज्ञानिक पद्धति है, क्योंकि इसका आधार कोरी कल्पनाएं नहीं है, अपितु वास्तविकता है, यह बात और है कि हम इसे गौण समझ बैठे है, क्योंकि नई पीढ़ी इस प्रकार के कार्यो को ढोंग, अंधविश्वास और पाखण्ड समझने लगी है, जबकि ये सारे वक्तव्य उनकी हीन मनोवृत्ति एवं क्षीण बुद्धि के परिचायक है। शास्त्रों, पुराणों आदि में ऋषियों, मुनियों आदि ने अनेकों प्रकार के यज्ञों का विधान प्रस्तुत किया है, जैसे – पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, विजय यज्ञ, शान्ति यज्ञ, महालक्ष्मी प्राप्ति यज्ञ, शतचण्डी यज्ञ इत्यादि। यज्ञों के द्वारा हर प्रकार की मनेच्छा को पूर्ण किया जा सकता है, यदि उस यज्ञ विद्या का सही ढंग से समझ कर कर प्रयोग किया जाए, तो आज का समाज उससे पूर्ण लाभ प्राप्त कर सुखी व समृद्ध हो सकता है। – Yagy Vidhan Book
कहा जाता है कि यज्ञ से ही इस सृष्टि का प्रारम्भ हुआ है, इसका वर्णन ‘पुरुष सूक्त’ के चौदहवें मन्त्र में इस प्रकार है –
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतंवत।
वसन्तोरुयासीदाज्यं ग्रीष्म इहम: शरद्ववि: ।।
अर्थात परमात्मा सृष्टि का प्रारम्भ करता है, तभी ऋतु-चक्र भी प्रारम्भ हो जाता है। ये पूरी सृष्टि यज्ञ रूपी कुण्ड के समान होती है, जिसमें बसंत घृत, ग्रीष्म ऋतु लकड़ी और शीत ऋतु सामग्री के रूप में प्रस्तुत होती है। शरद और ग्रीष्म ऋतु से विविध प्रकार की वायु उत्पन्न होती है और उनकी गतियां उत्पन्न हो जाती है, अत: यज्ञ मानव के लिए इस दृष्टि से समस्त ऋतुओं को, समस्त वातावरण व प्रक्रति को अपने अनुरूप बना लेने की एक श्रेष्ठतम प्रक्रिया है। -Yagy Vidhan Book.
यज्ञ का सीधा सम्बन्ध वेदोक्त मन्त्रों से होता है। यज्ञ तो कोई भी सम्पन्न कर सकता है, किन्तु आवश्यकता है उस जटिल प्रक्रिया को सही ढंग से समझने की, क्योंकि जब तक इसकी बारीकियों व रहस्यों को नहीं समझा जाएगा, तब तक किसी प्रकार के कार्यों में पूर्णता भी नहीं पाई जा सकती। – Yagy Vidhan Book
Yagy Vidhan Details:
Book Publisher: S Series Books
Book Author: Dr. Narayan Dutt Shrimali
Language: Hindi
Weight: 054 gm Approx.
Pages: 43 Pages
Size: “21” x “14” x “0.5” cm
Edition: 2017
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