Karmvipaksanhita Book (कर्मविपाकसंहिता पुस्तक): Karmvipaksanhita is an important book, in which information about karma is hidden.
Karmvipaksanhita Book About:
Brahmadi-grass and ants, living creatures, creeper, neoplasm, mountain, river etc. In the real world always happens according to the deeds of the living beings. This creation is considered to be eternal. It runs through its rules according to the ages. In the Vedas, ‘Dhata Yathapuravamkalpayat’ is the sentence affirms that when there is creation behind a cataclysm. And then there is only five physical creations according to the previous one. -Karmvipaksanhita Book.
This is the obvious thing that Lord Krishna has said in Gita – that all the beings are born in the world according to their own deeds. There is nothing doubt in the fact that the substances of the universe are innumerable in them; the actions of the creatures are endow in them, that is, by their good deeds, the human beings. Gandharva are also born in the best of the best exquisite castes and animals, the animal birds, the insects. In the same way, according to that, happiness is the indulgence of sorrow etc. By having eternal and eternal deeds, this world always remains. -Karmvipaksanhita Book.
Lord Shankaracharya has said that – it is also seen that, at the same time, the king and sons of the beggar are born. The king enjoy with many pleasures in them. Even if they are born at the same time, they also have different temperament according to their deeds. By seeing this discrimination, all the free tribes accept the primacy of the karmas. Rather, there is a trap of accumulated cremation and future karmas that the creatures cannot get out of their cycle.
कर्मविपाकसंहिता पुस्तक/Karmvipaksanhita Book
यह कर्मविपाकसंहिता, एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें कर्मों के बारे में बताया गया है।
कर्मविपाकसंहिता पुस्तक के बारे में..
ब्रह्मादि तृणपिपीलिकांत जीवसृष्टि, लता, गुल्म,गिरि, नदी आदि स्थावर सृष्टि सदा जीवों के कर्मानुसार हुआ ही करती है। इस सृष्टि को अनादि माना है। यह युगों के अनुसार अपने नियम से चलती है; वेद में ‘धाता यथापूर्वमकल्पयत्’ यह वाक्य ही इस बात की पुष्टि करता है कि एक प्रलय के पीछे जब सृष्टि होती है तो पहले के अनुसार ही पांचभौतिक सृष्टि होती है।
भगवान श्रीकृष्ण गीता में स्पष्ट इसी बात को कह गये है – कि सब जीव अपने अपने कर्मो के अनुसार संसार में जन्म ग्रहण करते है। इसमें कुछ भी संशय नहीं है कि, सृष्टि के पदार्थ असंख्य है उन सबों में जीवों के कर्म अनुगत है अर्थात जीव अपने उत्तम कर्मो से मनुष्य देव गंधर्वादि उत्तम उत्तम जातियों में भी उत्पन्न होते है और निन्ध्य कर्मो से पशु पक्षी कृमि वृक्ष लतादि हीन हीन जातियों में भी उसके अनुसार ही सुख दुःख आदि का भोग करते है। अनादि और अनंत कर्म होने से यह संसार सदा हुआ ही करता है।
भगवान श्रीशंकराचार्य ने कहा है कि – यह प्रत्यक्ष भी देखा जाता है कि, एक ही समय में राजा तथा रंक के पुत्र उत्पन्न होते है। उनमें राजा अनेक सुखों को भोगता है रंक दुःख सहने को ही उत्पन्न होता है। विद्वान्, मूर्ख, सती, कुलटा, दयालु, क्रूर इत्यादि एक ही समय में जन्म लेने पर भी अपने अपने कर्मो के अनुसार भिन्न भिन्न स्वभाव वाले होते है। इस वैषम्य को देखकर सभी मुक्त कण्ठ होकर कर्मो की प्रधानता स्वीकार करते है। बल्कि संचित क्रियमाण और भविष्य कर्मो का ऐसा जाल है कि जीव उनके चक्र में से निकल ही नहीं सकता।
Karmvipaksanhita Book Details:
Book Publisher: Khemraj Prakashan
Book Author: Shyam Sundar Lal Tripathi
Language: Sanskrit
Weight: 0.221 gm Approx.
Pages: 228 Pages
Size: “22” x “14” x “1.5” cm
Edition: 2014
Shipping: Within 4-5 Days in India
Shop: Books | Yantra | Rosary | Rudraksha | Gemstones | Rings | Kavach | Lucky Charms | Online Puja | Puja Items | Gutika | Pyramids | FengShui | Herbs | View All
Rohila –
must read.. nyc book