Brihattantrasaar Book | बृहत्तन्त्रसार पुस्तक
Brihattantrasaar Book/बृहत्तन्त्रसार पुस्तक: The fascinating book of Tanvshastra written by Shri Krishnanand Bhattacharya ‘Agamvagish’ is the universally accepted authentic book of Tantravadmay. The general meaning of ‘Vrihat Tantra-Sara’ is ‘comprehensive essence of Tantras’. The literal meaning of ‘Aagamvagish’, used as the title of the author, is ‘Lord of the Aagams’.
The summary is that Shri Krishnananda Bhattacharya. The expert of all the Aagams, made a detailed compilation of the essence of the Tantras and gave it. A concrete form and named the book ‘Brihat Tantrasar’. First of all, two words are worth considering here – ‘Tanv’ and ‘Aagam’. The word ‘Tantra’ has many meanings in Sanskrit literature. But here the meaning ‘Tanyate Vistaryante Gyanam Iti Tantram’ is valid here.
The word ‘Tantra’ is derived from the root ‘Tanu Vistare’ by the addition of suffix ‘Hun’. The root ‘tan’ means ‘to expand’ and ‘va’ means ‘to protect’. The meaning is that ‘Tantra’ expands the knowledge which is protective of humans.
Description of Brihattantrasaar Book:
It is said in ‘Kamikagam’ that Tanvshastra expands on immense subjects including elements and mantras and protects life. That is why it is designated with the designation ‘Tantra’.
In Sanskrit language, the word ‘Tantra’ contains within itself a very broad meaning. This has been explained in ‘Vachaspati Abhidhan’ and ‘Shabdakalpadrum’.
Family gathering etc. acts, principles, medicine based Vedic passages, Veda branch purposes, two-way use, itikavyatavya, tantuvaya. Following the nation, concern for the nation, management, oath, money, home, means of living. Total Shiva based personal behavior and rules.
Shakhmatra is called ‘Tantra’ – this has been said in ‘Matrikabheda’ Tanva. This particular part of astrology is also known by the word ‘Tanv’. Acharya Varahamihir has also said
Smandesmin Ganiten or Grahagatistanyaabhidhana tvatsi.
According to ‘Sankhyakarika’, Sankhya philosophy is called ‘Tantra’. Acharya Shankar, while mentioning Smritivandh named Tanva, says –
Smriti Tanvaakhya Paramrishipraneeta Shishtaparigrihita.
In ‘Sushrut Samhita’, Ayurvedashas has been discussed in the form of Tanva –
Ityashtangamidam Tanva (ன)
Shlok of Brihattantrasaar Book:
According to ‘Kularnavatantra’, the description of conduct, divine motion-attainment and Aagamatattva is called Agama. Such as
Aacharkaynaad Divyagatipraptivadhaanh. Mahatmatattvam kaynaadagamah kachitah Priye.
According to ‘Rudrayamal’, the Vishnumat which comes out from the mouth of Shiva and goes into the mouth of Parvati is called Aagam. That is, by combining the first letters of these three words Aagam, Gatam and Matam, the word ‘Aagam’ is formed –
Aagatam Shivavvavebhyo Gatam Cha Garijamukhe. Matam srivasudevasya tasmadagam uchyate.
It is clear that Tanva has three divisions – Tantra, Agama and Yamal. Like the Vedas, Tanva literature was also rich in a wide variety of art in the past. It has also been said in the scriptures-
Saptasaptashasrani numbertani manishibhi.
According to this, fourteen hundred Tagva texts were in circulation in ancient times. It is clear that once upon a time there was a vast literature of Tanvi available. Which is gradually disappearing and currently exists in very limited numbers.
बृहत्तन्त्रसार पुस्तक | Brihattantrasaar Book
श्रीकृष्णानन्द भट्टाचार्य ‘आगमवागीश’ द्वारा प्रणीत तन्वशास्त्र का मोहनीय ग्रन्थ ‘वृहत् तंत्रसार तंत्रवाड्मय का सर्वमान्य प्रामाणिक ग्रन्थ है। ‘वृहत् तन्त्र-सार’ का सामान्य अर्थ ‘तन्त्रों का विस्तृत सार’ होता है। ग्रन्थकर्ता के उपाधिरूप से प्रयुक्त ‘आगमवागीश’ का शाब्दिक अर्थ ‘आगमों का स्वामी’ है।
सारांश यह है कि सभी आगमों के ज्ञाता श्रीकृष्णानन्द भट्टाचार्य ने तन्त्रों के सार का विस्तृत संकलन कर उसे मूर्त स्वरूप प्रदान करते हुये ग्रन्थ का नाम ‘बृहत् तंत्रसार’ रक्खा है। सर्वप्रथम यहाँ दो शब्द विचारणीय है- ‘तन्व’ और ‘आगम’। संस्कृत साहित्य में ‘तंत्र’ शब्द के अनेक अर्थ होते हैं; किन्तु यहाँ पर ‘तन्यते विस्तार्यंते ज्ञानं इति तन्त्रम्’ यहां अर्थ मान्य है।
‘तन्त्र’ शब्द ‘तनु विस्तारे’ धातु से ‘हुन्’ प्रत्यय का योग होकर निष्पन्न होता है। ‘तन्’ धातु का अर्थ ‘विस्तार करना’ एवं ‘व’ का अर्थ ‘रक्षा करना’ होता है। आशय यह है कि ‘तन्त्र’ उस ज्ञान का विस्तार करता है, जो मनुष्यों का रक्षाकारक है।
बृहत्तन्त्रसार पुस्तक विवरण:
‘कामिकागम’ में कहा गया है कि तन्वशास्त्र तत्व और मन्त्रसहित अपार विषयों का विस्तार करता है एवं जीवन की रक्षा करता है, इसीलिये इसे ‘तन्त्र’ अभिधान से अभिहित किया जाता है-
संस्कृत भाषा में ‘तन्त्र’ शब्द अतीव व्यापक अर्थ को अपने-आप में समाहित किये हुये है। ‘वाचस्पति अभिधान’ और ‘शब्दकल्पद्रुम’ में इसे व्याख्यायित करते हुये कहा गया है৷
कुटुम्बभरणादि कृत्य, सिद्धान्त, ओषधप्रधान वेदपरिच्छेद, वेदशाखाहेतु, उभयार्थक प्रयोग, इतिकर्तव्यता, तन्तुवाय, राष्ट्रपरछन्दानुगमन, स्वराष्ट्रचिन्ता, प्रबन्ध, शपथ, धन, गृह, वयन-साधन कुल शिवाद्युक्त शखव्यवहार व नियम।
शाखमात्र को ‘तन्त्र’ कहते हैं- ऐसा ‘मातृकाभेद’ तन्व में कहा गया है। ज्योतिष के अंशविशेष को भी ‘तन्व’ शब्द से जाना जाता है। आचार्य वराहमिहिर ने कहा भी है-
स्मन्देऽस्मिन् गणितेन या ग्रहगतिस्तन्याभिधाना त्वत्सी।
बृहत्तन्त्रसार पुस्तक श्लोक:
‘सांख्यकारिका’ के अनुसार सांख्य दर्शन को ‘तन्त्र कहते हैं। आचार्य शंकर तन्व- नामक स्मृतिवन्ध का उल्लेख करते हुये कहते है-
स्मृतिथ तन्वाख्या परमर्षिप्रणीता शिष्टपरिगृहीता।
‘सुश्रुतसंहिता’ में आयुर्वेदशास की तन्वरूप में चर्चा की गई है-
इत्यष्टाङ्गमिदं तन्व (৩)
‘कुलार्णवतन्त्र’ के अनुसार जिसमें आचार-वर्णन, दिव्य गति-प्राप्तिविधान और आगमतत्त्व का कथन किया गया हो, उसे आगम कहा जाता है। यथा-
आचारकयनाद् दिव्यगतिप्राप्तिविधानतः। महात्मतत्त्वं कयनादागमः कचितः प्रिये।।
‘रुद्रयामल’ के अनुसार शिव के मुख से निकाल कर पार्वती के मुख में जाने वाले विष्णुमत को आगम कहते हैं अर्थात् आगतं, गतं और मतं इन तीन शब्दों के प्रथमाक्षर आगम को मिलाकर ‘आगम’ शब्द निष्पन्न होता है-
आगतं शिववववेभ्यो गतं च गरिजामुखे। मतं श्रीवासुदेवस्य तस्मादागम उच्यते।।
स्पष्ट है कि तन्व के तीन विभाग- तन्त्र, आगम और यामल हैं। वेदों के समान ही तन्वसाहित्य भी भूतकाल में बहुत ही विस्तृत कलेवर से सम्पन्न या। तत्वग्रन्थ में कहा भी गया है-
सप्तसप्तसहस्राणि संख्यातानि मनीषिभिः।
इसके अनुसार प्राचीन काल में चौदह सौ तग्वग्रन्थ प्रचलन में थे। स्पष्ट है कि किसी समय में तन्वीं का विशाल साहित्य उपलब्ध था, जो शनैः शनैः लुप्त होते-होते वर्तमान में अत्यन्त ही सीमित संख्या में गोचर होते हैं।
Brihattantrasaar Book Details:
Book Publication: Chaukhamba Prakashan
Book Author: Shri Kapildev Narayan
Weight: 1658 gm
Size: 22.5 x 14.5 x 8 cm
Book Language: Hindi, Sanskrit
Pages: 1274 Pages
Edition: 2024
Shipping: Within 4-5 Days in India
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