Gaurikanchalika Tantra Book/गौरीकान्चलिका तन्त्र पुस्तक: Gaurikanchalika Tantra Book has been described about tantra. Reading this book introduces the reader with Gaurikanchalika Tantra.
Gaurikanchalika Tantra Book About:
Although the word Tantra has many meanings, the scriptures are clearly explained in the Puranic history, but the word ‘Tantra’ is heard in the sense that the sense of Sanskrishvasvandvash means the form of Tantra Shastra. Even though this ‘Gaurikanchalikatntra‘ is Shiva-shivasanvad, there is something extraordinary to him. In this, Shri Bhabanji has questioned the wisdom of philanthropy from Shankar Divine to save mankind from fear of disease, grief and death, in his reply, Shree Shankar has called a different kind of life on fever diseases, whereas in the Herbs, vegetation, the various types of power are self-proven and their experiments also have qualities, but the date, constellation, bar, ritual etc. With special emphasis on deletion of their mince, etc., there is a special force in them. – Gaurikanchalika Tantra Book
As in autumn and post autumn period, tree bark and root, fruits in winter, flowers and leaves etc. in the spring. It is a good way of protecting the body, by telling all these things, how many rules have been made in such a manner that by proving the methods of which man can win the fear of old age and death. In this way, by saying big aversion, for the welfare of young women, the measures to make the body beautiful and pleasant, the use of Vashikaran, the increase of memory and the measures to be of good voice, the measures of various types of Lakshmi growth etc. are mentioned with the intention that ordinary people can understand this well by Pandit Shyamasundar ji Tripathi, who has been honored for his simple language. – Gaurikanchalika Tantra Book
गौरीकान्चलिका तन्त्र पुस्तक /Gaurikanchalika Tantra Book
गौरीकान्चलिका तन्त्र, एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें तन्त्र के बारे में जानकारी दी गई है।
गौरीकान्चलिका तन्त्र पुस्तक के बारे में..
यद्यपि तन्त्र शब्द के अनेक अर्थ हैं जो शास्त्र पुराण इतिहास आदि में स्पष्ट विदित होते हैं परन्तु ‘तन्त्र’ शब्द सुनते की बुद्धि में श्रीशिवशिवासंवाद रूप तन्त्र शास्त्र का बोध होने लगता है। यह ‘गौरीकान्चलिकातन्त्र’ शिवशिवासंवाद होने पर भी उससे कुछ विलक्षण है। इसमें श्रीभवानीजी ने शंकर परमात्मा से लोकोपकार की बुद्धि से मनुष्यों को रोग, शोक और मृत्यु के भय से बचाने के लिए प्रश्न किया है, उसके उत्तर में श्रीशंकरजी ने ज्वरादि रोगों पर नाना प्रकार के कल्प कहे हैं, यद्दपि कन्द, मूल, वनस्पति आदियों में नाना प्रकार की शक्ति स्वत: सिद्ध है और उनके प्रयोग से गुण भी होता है, परन्तु तिथि, नक्षत्र, वार, ऋतु इत्यादि के नियम से, क्रिया से उनमें विशेष बल आ जाता है। – Gaurikanchalika Tantra Book
जैसा शरद और हेमन्त में वृक्षों की छाल और जड़ को लेना, शिशिर में फल बसन्त में फूल और पत्ती इत्यादि। यह शरीर रक्षण का अच्छा उपाय है इन सब बातों को कहकर कितने ही नियम इसमें ऐसे बनाये गये है कि जिनके विधिपूर्वक सिद्ध करने से मनुष्य वृद्धावस्था तथा मृत्यु के भय को जीत सकता है। इस प्रकार बड़े बड़े कल्प कह कर युवा युवतियों के देहराग के लिए उबटन, शरीर को सुडौल तथा रमणीय बनाने के उपाय, वशीकरण प्रयोग, स्मृति शक्ति बढ़ाने तथा उत्तम स्वर होने के उपाय नाना प्रकार के लक्ष्मी वृद्धि के उपाय इत्यादि अनेक उपयोगी विषय कहे है सर्व साधारण लोग इसको भलीभांति समझ सकें इस अभिप्राय से मुरदाबाद निवासी पण्डित श्यामसुंदर जी त्रिपाठी द्वारा इसकी सरलशुद्ध भाषा टीका भी कराई गयी है। – Gaurikanchalika Tantra Book
Gaurikanchalika Tantra Book Details:
Book Publisher: Khemraj Prakashan
Book Author: Khemraj Shrikrishnadas
Language: Hindi
Pages: 123 Pages Book
Size: “16” x “11.5” x “1” cm
Weight: 72 Gram Approx
Edition: 1995
Shipping: Within 4-5 Days in India
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