Gaytrimahatantram Book/गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक
Gaytrimahatantram (गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक) is an important book, Gaytrimahatantram Book is not easily available, this book is written by Acharya Radheshyam Chaturvedi Ji, this Gaytrimahatantram Book is published by Chaukhamba Prakashan, Varanasi, in 2013, there are 378 pages in this book.
Gaytrimahatantram Book Content list:
According to the content list of the book, the contents are duly expressed in a simple language for the convenience of the readers. The matters are mentioned here under. Gayatrimantrasya significance, Sapta vyahtaya, Sandhya, Tarpanam, Gayatri Puja, Mudra, Shapavimochanam, Shatakshara Gayatri, Gayatri Stotram, Gayatriatattvam, Purushsuktam, Pavanapavanamantra :, Pranapratistha, Guru Puja, Peethadevatapujanam, Chakrarachana, Sarvatobhachamna Vocabulary, Vedic Mantravali, Gayatri Chakra and Yantra, Srividya worship are the important part of the Gaytrimahatantram Book.
Gaytrimahatantram Book Benefits:
- Reading the Gaytrimahatantram Book provides information about important topics of Gayatri worship.
- By reading the Gaytrimahatantram Book you can understand the importance of Tantra scriptures.
- With the Gaytrimahatantram Book you can change your life.
Gaytrimahatantram Book Description:
All beings in this world are constantly striving for the prevention of sorrow and the benefit of happiness. Interpreting the nature of grief, it is said – ‘Adverse-Vednyam Dukham.’ Similarly, the symptom of happiness has been described as favorable sentimentality. –‘Anukulvedniyam Sukham. To feel good body and mind is called ‘happiness’ and not feeling good is called ‘grief’. At the core of these two, the relation of subject and sense works. Since the universe is three-dimensional, so all its substances are three-dimensional. This is why in different countries and different times, the same thing is sad and also pleasant. After thinking deeply, it seems that ultimately the whole world is miserable. The emergency which appears to be pleasant also gives sorrow in the end, hence the immediate and eternal retirement of sorrow and the immediate attainment of happiness is said to be the ultimate effort of the creature.- Gaytrimahatantram Pushtak
The ascetic sages on the land of Bharat, who had attained heaven and exclusion, discovered the remedy for the benefit of this supreme effort by their divine powers, and by the grace of God, they received the path of Agama and Nigam. The corporation’s path was laid down for all mankind. Initially, both the streams were free, but later on, mixing and mixing of both took place.- Gaytrimahatantram Pushtak
गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक/Gaytrimahatantram Book
गायत्रीमहातन्त्रम् एक महत्वपूर्ण पुस्तक है गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक/Gaytrimahatantram Book आसानी से उपलब्ध नहीं होती, यह पुस्तक आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी जी के द्वारा लिखी हुई है, इस गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक को चोखाम्बा प्रकाशन, वाराणसी, ने सन् 2013 में प्रकाशित किया है, इस पुस्तक में 378 पृष्ठ(पेज) है।
गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक/Gaytrimahatantram Book की विषय सूचि:
गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक में विषय सूचि अनुसार- गायत्रीमन्त्रस्य महत्वम्, सप्त व्याह्तय:, सन्ध्या, तर्पणम्, गायत्री पूजा, मुद्रा, शापविमोचनम्, शताक्षरा गायत्री, गायत्रीस्तोत्रम्, गायत्रीतत्वम्, पुरुषसूक्तम्, पवनपावनमन्त्र:, प्राणप्रतिष्ठा, गुरु पूजा, पीठदेवतापूजनम्, चक्ररचना, सर्वतोभद्रचक्रम्, जपमालाय लक्षणम्, दीक्षा, देहे आसनभावना, पारिभाषिक शब्दावली, वैदिक मन्त्रावली, गायत्री चक्र एवं यन्त्र, जोकि श्रीविद्या उपासना रहस्य पुस्तक के महत्वपूर्ण अंग है।
गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक/Gaytrimahatantram Book के लाभ:
- गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक को पढ़ने से गायत्री आराधना के महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है।
- गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक को पढ़कर आप तन्त्र शास्त्रों के महत्व को समझ सकते है।
- गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक से आप अपने जीवन में बदलाव ला सकते है।
गायत्रीमहातन्त्रम् पुस्तक/Gaytrimahatantram Book का विवरण:
इस सृष्टि में समस्त प्राणी दुःख के निरोध एवं सुख के लाभ के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। दुःख के स्वरूप का निर्वचन करते हुए कहा गया है – ‘प्रतिकूल-वेद्नीयं दुःखम्।‘ इसी प्रकार सुख का लक्षण अनुकूलवेदनीयता को बतलाया गया है। -‘अनुकूलवेदनीयं सुखम्।‘ शरीर एवं मन को अच्छा लगना ‘सुख’ और अच्छा न लगना ‘दुःख’ कहलाता है। इन दोनों के मूल में विषय एवं इन्द्रिय का सम्बन्ध काम करता है। चूँकि सृष्टि त्रिगुणमयी है अतः इसके समस्त पदार्थ त्रिगुणमय हैं। यही कारण है कि भिन्न देश एवं भिन्न काल में एक ही वस्तु दुःखद होती है और सुखद भी। गम्भीर चिन्तन करने पर प्रतीत होता है कि अन्ततोगत्वा समस्त संसार दुःखमय ही है। जो आपातत: सुखद प्रतीत होता है वह भी अन्त में दुःख ही देता है इसलिये दुःख की ऐकान्तिक और आत्यन्तिक निवृति तथा सुख की ऐकान्तिक प्राप्ति को जीव का परम पुरुषार्थ कहा गया है। स्वर्ग एकम अपवर्ग को प्राप्त करने वाली भारतभूमि पर तपोमूर्ति ऋषियों ने तपस्या के बल पर इस परम पुरुषार्थ के लाभ के उपाय का अन्वेषण अपनी दिव्य शक्तियों के द्वारा किया एवं परमात्मा के अनुग्रह से उन्हें आगम और निगम दो मार्ग प्राप्त हुए। निगम का मार्ग समस्त मानव जाति के लिये विहित हुआ। प्रारम्भ में दोनों धारायें स्वतन्त्र थी किन्तु आगे चलकर दोनों में मिश्रण एवं मिश्रणों में भी मिश्रण हुआ।- Gaytrimahatantram Pushtak.
Gaytrimahatantram Book Details:
Book Publisher: Chaukhamba Prakashan
Book Author: Acharya Radheshyam Chaturvedi
Language: Hindi, Sanskrit
Weight: 0.593 gm Approx.
Pages: 378 Pages
Size: “23” x “15” x “3” cm
Edition: 2013
Shipping: Within 4-5 Days in India
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