Yantrachintamani Book/यन्त्र चिन्ता मणि पुस्तक : Yantrachintamani Book is an important book of Tantra, in which information about Tantra is hidden.
Yantrachintamani Book About:
In our ancient times, our great Acharyas, Rishimunis made their life pleasant by these mantras. This day, the propagation of Mantra is very rare and it is becoming extinct due to lack of proper text on this topic and increasing public insolence. But if the reader carefully recites and meditates on whatever propaganda is left over in this subject, then he may have fulfilled his desire only in a short period of time with this mantra words, that cannot be achieved by reading other scriptures. In order to achieve Sidhdhi in this Karm Bhumi there are many other scriptures and mantra Shastra too. Wherever the scriptures resemble milk or yogurt, the mantra is similar to butter. Of course, milk or yogurt has a lesser taste and strength than butter (Yantrachintamani Pushtak). It is also proved that Lord Krishna considered Makhan as superior in food. Therefore, there is no other useful script than Mantra to attain the desired result of humans soon. Under “Mantra Shastra” it is the “mechanical system”, in which there are many types of Sidhdhi mantras and Yantra too. –Yantrachintamani Book.
The credit for bringing this into the public is that intelligent in the 64 arts of Shri Ganesh, the supreme devotee, Damodarji. When he saw Shivyokta, Devyukta etc, in a variety of scriptures, he wanted to collect himself for philanthropy, at the same time, the inspiration of Shree Shankar Maharaja in his dream (Yantrachintamani Pushtak). Then Maha-Pandit Damodarji collected this Chintamanirupee Yantra. Then the translator of the Tantra, the well-known commentator of many texts, the creators, editors and the translator system, the Kamaratna Tantra, the astrologer system, the secretarial system, etc. language translator Moradabad resident Param Pujya my uncle Pandit Baldev Prasadji Mishra translated this script into simple Hindi language For which the Tantric society would be grateful to them. But it is a matter of grief that our paternal grandfathers had finished their lifetimes before the publication of this book and got absorbed in Brahma. -Yantrachintamani Book.
यन्त्र चिन्ता मणि पुस्तक/Yantrachintamani Book
यन्त्र चिन्ता मणि, यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमे तंत्र शास्त्र के बारे में बताया गया है।
यन्त्र चिन्ता मणि पुस्तक के बारे में..
प्राचीन काल में हमारे महान् आचार्य ऋषिमुनियों ने इन्हीं मंत्र शास्त्रों के द्वारा अपना जीवन सुखमय बनाया था। इस दिनों मंत्रशास्त्र का प्रचार बहुत कम होने तथा इस विषय पर अच्छे सरल ग्रन्थ न रहने एवं जनता की अश्रद्धा बढने आदि से यह शास्त्र प्राय: लुप्त सा हो रहा है। किन्तु अब भी इस विषय का जो कुछ प्रचार शेष रह गया है उस पर यदि पाठक भली-भांति ध्यान देकर अध्ययन तथा मनन करें तो इस मंत्र वाक्य से अल्प काल में ही उनकी वह चिर अभिलाषा पूरी हो सकती है कि जो मरण पर्यन्त अन्य शास्त्रों के पठन-पाठन से नहीं हो सकती। इस कर्म भूमि में सिद्धि प्राप्त करने के लिए अनेक अन्यान्य शास्त्र है और मन्त्र शास्त्र भी। उसमे जहां शास्त्र दूध अथवा दही के सदृश हैं, वहां मन्त्र शास्त्र मक्खन के सदृश है। मक्खन में दूध या दही से अवश्य ही बहुत अधिक स्वाद और शक्ति होती है। यह इससे भी सिद्ध है कि खाध पदार्थ में श्रीकृष्ण भगवान् माखन को ही श्रेष्ठ समझते थे। अतः शीघ्र ही मनुष्यों के अभिलषित फल प्राप्त होने के लिए मंत्र शास्त्र से बढ़कर कोई दूसरा उपयोगी शास्त्र नहीं है। मंत्रशास्त्र के अंतगर्त ही यह “यंत्रचिन्तामणि” है कि, जिसमे अनेक प्रकार के सिद्धिदायक मंत्र और यंत्र भी हुये। -Yantrachintamani Book.
इसको लोक समक्ष में लाने का श्रेय परमपूज्य महात्मा गंगाधरजी के पुत्र 64 कलाओं में चतूर श्रीगणेशजी के परमभक्त परम बुद्धिमान् दामोदरजी को है। उन्होंने जब शिवोक्त, देव्युक्त प्रभृति अनेकों शास्त्रों को विस्तारपूर्वक देखकर लोकोपकार के लिए स्वयम् मन्त्रयुक्त यंत्रो के संग्रह करने की इच्छा की, उसी समय स्वप्नावस्था में श्रीशंकर महाराज की प्रेरणा हुई। तब महा-पण्डित दामोदरजी ने इस चिन्तामणिरूपी यंत्रो का संग्रह किया। फिर तंत्रों की आदि अनुवादक, अनेक ग्रन्थों के सुप्रसिद्ध टीकाकार, रचयिता, संपादक और महानिवारण तन्त्र, कामरत्न तंत्र, आश्चर्ययोगमाला तंत्र, गुप्तसाधन तंत्र, आदि के भाषा-तरकर्ता मुरादाबाद निवासी परमपूज्य मेरे पितृव्य पण्डित बलदेवप्रसादजी मिश्र ने इस ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद किया, जिसके लिए तान्त्रिक समाज उनका चिर कृतज्ञ रहेगा। किन्तु दुःख की बात है कि हमारे पितृव्यजी इस ग्रन्थ के प्रकाशन के पूर्व ही अपनी जीवनयात्रा समाप्त कर ब्रह्म में लीन हो गये। -Yantrachintamani Book.
Yantrachintamani Book Details:
Book Publisher: Khemraj Books
Book Author: Khemraj Shree Krishna Das
Language: Sanskrit
Pages: 134 Pages Book
Size: “18” x “13” cm.
Weight : 99 gm Approx
Edition: 2011
Shipping: Within 4-5 Days in India
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