Yoni Tantram Book/योनीतंत्रम् पुस्तक
Yoni Tantram (योनीतंत्रम् पुस्तक) is an important book, Yoni Tantram Book is not easily available, this book is written by Vinay Kumar Rai, this Yoni Tantram Book is published by Prachya Publications, this book has 53 pages.
Yoni Tantram Book Content list:
According to the content list of the book, the contents are duly expressed in a simple language for the convenience of the readers. The matters are mentioned here under. Yoni Tantram is explained in detail, which is an important part of the Yoni Tantram Book.
Yoni Tantram Book Benefits:
- Reading the Yoni Tantram Book gives information about the importance of sources.
- By reading the Yoni Tantram Book you can understand the importance of Yonitantram.
Yoni Tantram Book Description:
Both Agama and Tantra are considered synonymous terms, Agama is believed to be derived from eternal tradition. As it is mentioned that Lord Shiva preached the tantras to Bhagwati Paramba Parvati by his five faces – Sadyojat, Vamdev, Aghor, Tattpurush and Ishaan and these systems were also accepted by Shrimannarayana to Lord Vasudeva and accordingly East, South, West, North And vertically, it came into being in the five Aagnaya Tantras. In the Kali Yuga one cannot attain Sidhdhi without adopting the Agam Marg, also, the Agama is universal while the Corporation is transcendental. It is mentioned that the Vedic ethos is valid in Satyayuga, Smrityupadisht Acharata Tretayuga, and the mythological ethos Dwaparyuga and Agamoktya Acharya Kali Yuga.- Yoni Tantram Pushtak.
As has been said – if we consider the word etymology, the word ‘A’ is prefixed by gum metal with the meaning of motion. The meaning of the prefix ‘A’ is widespread everywhere. This means that the knowledge that provides comprehensiveness or provides comprehensive momentum in the entire universe is the only step. As it has come in the scriptures, there is definitely a corporation leading to the element and a sensory arrival of a particular element emerging from the word. The description of all the elements, mantras, deities, spiritual practices, fruits, etc. and those who protect the seeker are called Shastra or Vidya or knowledge system. The word is formed by affixing the suffix to a tan metal with an expansion meaning. Tantra has many differences, mainly 64 are considered. Among them, Shaivites, Shaktas then become majority with Vaishnava, Buddhist and Jain distinctions. It is believed that all have been invented by Lord Shiva.- Yoni Tantram Pushtak.
योनितन्त्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book
योनितन्त्रम् एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, योनितन्त्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book आसानी से उपलब्ध नही होती, यह पुस्तक विनय कुमार राय के द्वारा लिखी हुई है, इस योनितन्त्रम् पुस्तक को प्राच्य प्रकाशन, ने प्रकाशित किया है, इस पुस्तक में 53 पृष्ठ(पेज) है।
योनीतंत्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book की विषय सूचि:
योनितन्त्रम् पुस्तक सूचि अनुसार – योनितन्त्रम् के बारे में विस्तार रूप से बताया गया है, जोकि योनितन्त्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book के महत्वपूर्ण अंग है।
योनीतंत्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book के लाभ:
- योनितन्त्रम् पुस्तक को पढ़ने से स्त्रोतों के महत्व की जानकारी मिलती है।
- योनितन्त्रम् पुस्तक को पढ़कर आप योनितन्त्रम् के महत्व को समझ सकते है।
योनीतंत्रम् पुस्तक/Yoni Tantram Book का विवरण:
आगम और तन्त्र दोनों पर्यायवाची पद माने गये है, आगम अनादि परम्परा प्राप्त माना गया है। जैसा कि उल्लेख है कि भगवान शिव ने अपने पांच मुखों- सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान द्वारा भगवती पराम्बा पार्वती को तंत्रों का उपदेश दिया तथा ये तन्त्र श्रीमन्नारायण भगवान वासुदेव को भी मान्य हुए और तदनुसार ही पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और ऊर्ध्व ये पांच आम्नाय तंत्रों में प्रचलित हुए। कलियुग में आगम मार्ग को अपनाए बिना सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकती, साथ ही, आगम सार्ववार्णिक है जबकि निगम त्रैवर्णिक।
उल्लेख है कि वैदिक आचार सत्ययुग, स्मृत्युपदिष्ट आचार त्रेतायुग, तथा पौराणिक आचार द्वापरयुग तथा आगमोक्त्य आचार कलियुग में मान्य है। जैसा कि कहा गया है – यदि शब्द व्युत्पत्ति पर विचार करें तो आगम शब्द ‘आ’ उपसर्गपूर्वक गति अर्थवाले गम धातु से बनता है। ‘आ’ उपसर्ग का अर्थ चारों तरफ यानि सर्वत्र व्यापक रूप से होता है। तात्पर्य यह हुआ समग्र ब्रह्माण्ड में व्यापकता प्रदान करने वाला या व्यापक गति प्रदान करने वाला ज्ञान ही आगम है। जैसा कि शास्त्रों में आया है निश्चित रूप से तत्व की ओर ले जाने वाला निगम तथा वचन से आविर्भूत तत्वार्थ विशेष का संवेदी आगम होता है। तत्व, मन्त्र, देवता, साधनाविधि, फल आदि सभी का वर्णन जिसमें हो तथा जो साधक की रक्षा भी करें वह शास्त्र या विद्या अथवा ज्ञान तन्त्र कहलाता है। यह शब्द विस्तार अर्थवाले तन धातु से औणादिक ‘ष्ट्रन’ प्रत्यय करने पर बनता है। तंत्रों के अनेक भेद है मुख्यत: 64 माने गये है। उनमें भी शैव, शाक्त फिर वैष्णव, बौद्ध और जैन भेद से बहुसंख्यक हो जाते है। माना यह गया है कि सभी का आविष्कार भगवान शिव के द्वारा ही हुआ है।
Yoni Tantram Book Details:
Book Publisher: Prachay Prakashan
Book Author: Vinay Kumar Rai
Language: Sanskrit
Weight: 163 gm Approx.
Pages: 53 Pages
Size: “22” x “14” x “1” cm
Shipping: Within 4-5 Days in India
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Shresth –
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