संन्यास सूक्तं | Sanyasa Suktam
(संन्यास सूक्तं/Sanyasa Suktam)
न कर्मणा न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः ।
परेण नाकं निहितं गुहायां विभ्राजदे तद्यतयो विशन्ति ॥१॥
वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः संन्यास योगाद्यतय शुद्धसत्त्वाः ।
तेब्रह्मलोके तु परान्तकाले परामृतात्परिमुच्यन्ति सर्वे ॥२॥
दह्रं विपापं परमेश्मभूतं यत्पुण्डरीकं पुरमध्यसग्गस्थम् ।
तत्रापि दह्रं गगनं विशोकस्तस्मिन् यदन्तस्तदुपासितव्यम् ॥३॥
योवेदादौ स्वरः प्रोक्तो वेदान्ते च प्रतिष्ठितः ।
तस्य प्रकृतिलीनस्य यः परः स महेश्वरः ॥४॥
Sanyasa Suktam | संन्यास सूक्तं
na karmaṇā na prajayā dhanena tyāgenaike amṛtatvamānaśuḥ .
pareṇa nākaṃ nihitaṃ guhāyāṃ vibhrājate tadyatayo viśanti ..1..
vedāntavijñānasuniścitārthāḥ saṃnyāsa yogādyataya śuddhasattvāḥ .
tebrahmaloke tu parāntakāle parāmṛtātparimucyanti sarve ..2..
dahraṃ vipāpaṃ parameśmabhūtaṃ yatpuṇḍarīkaṃ puramadhyasaggastham .
tatrāpi dahraṃ gaganaṃ viśokastasmin yadantastadupāsitavyam ..3..
yovedādau svaraḥ prokto vedānte ca pratiṣṭhitaḥ .
tasya prakṛtilīnasya yaḥ paraḥ sa maheśvaraḥ ..4..
संन्यास सूक्तं विशेषताएँ:
संन्यास सूक्तं का पाठ नियमित रूप से किया जाए तो, इस सूक्तं का बहुत लाभ मिलता है, यह सूक्तं शीघ्र ही फल देने लग जाते है| यदि साधक इस सूक्तं का पाठ प्रतिदिन करने से बुराइया खुद- ब- खुद दूर होने लग जाती है साथ ही सकरात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है| अपने परिवार जनों का स्वस्थ्य ठीक रहता है और लम्बे समय से बीमार व्यक्ति को इस सूक्तं का पाठ सच्चे मन से करने पर रोग मुक्त हो जाता है| यदि मनुष्य जीवन की सभी प्रकार के भय, डर से मुक्ति चाहता है तो वह इस सूक्तं का पाठ करे|
संन्यास सूक्तं के पाठ करने से मनोवांछित कामना पूर्ण होती है| और नियमित रुप से करने से रुके हुए कार्य भी पूर्ण होने लगते है | और साधक के जीवन में रोग, भय, दोष, शोक, बुराइया, डर दूर हो जाते है साथ ही देवी की पूजा करने से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि प्राप्त होती है। याद रखे इस संन्यास सूक्तं पाठ को करने से पूर्व अपना पवित्रता बनाये रखे| इससे मनुष्य को जीवन में बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है|