Saturn Mantra, शनि ग्रह मन्त्र

Saturn Mantra | शनि ग्रह मन्त्र

Saturn Mantra (शनि ग्रह मन्त्र): If there is anything that the knowledgeable of astrology fear most it is the Dasha or the period of Saturn (Saturn Mantra). And no wonder, for even if Saturn is a benefice in one’s horoscope, it does show some of its natural ill effects during the Dasha.

And if by chance it is a malefic in the horoscope then it could simply unbalance life and make one go through unimaginable and unforeseeable trials and tribulations during this nineteen year long period.

There are so many popular ways to make Saturn favorable. Many believe that there is no cure for it. Others resort to rituals through priests which could or could not work. Some believe that wearing iron rings or stones or giving away black cloth and mustard oil on Saturdays could negate the effect. Not that these methods are futile but the best way to counter the fury of Saturn is a Sadhana as prescribed by our Rishi.

Through these Sadhana devised by the great Yogis, who were master astrologers as well, one could not just nullify Saturn’s negative effect but also make it favorable so that it could benefice results in its Dasha. And know it that once one has appeased Saturn (Saturn Mantra/शनि ग्रह मन्त्र) there is no looking back for the person in terms of success and fame earned.

Saturn also rules over professionals like engineering, medicine, politics, police and army, explosives and industry. So any one related to these fields could also try Saturn Mantra Sadhana for more success.

Gem of Saturn Planet:

According to gemmology the gem for Saturn is Blue Sapphire. On Saturday evening about  5 and  quarter whit Blue Sapphire made on the gold or silver ring hold on middle finger of right hand.

Method for Saturn Mantra Sadhana:

Try this Sadhana on any Saturday. It has to be repeated on three consecutive Saturdays.

In the night of a Saturday between 7.30 pm and 10.30 pm have a bath and wear black clothes. Sit in a black mat or blanket facing the South. Cover a wooden seat with a black cloth and place an image of Lord Shiva on it. Take a platter and make U shape on the platter with black soot and fill it with Black Kidney been lentil and place the Shani Yantra on it.

After this light a mustard oil lamp. Then pray to Lord Saturn to free you of all obstacles, fears, problems, pains and afflictions. Then chant one round of Guru Mantra (Saturn Mantra/शनि ग्रह मन्त्र) and pray to the Guru for success in the Sadhana. Take water on right palm and do the appropriation chanting the following spell.

Appropriation of Saturn Mantra:

“हे शनि देव आप सूर्य पुत्र, वक्रगति, कृष्ण वर्णीय रूप में हैं। सूर्य पुत्र एवं शक्ति सम्पन्न देव का मैं साधक विधि-विधान सहित पूजन करता हूँ।

After appropriation do meditation on Guru.

नीलद्दुतिं शूलधरं किरीटिनं गृधस्थितं त्रासकरं धनुर्द्धरम।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं, वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेणयम् ॥

After the meditation once again worship the Shani Yantra. Then with a Black Hakik Rosary or Rudraksh rosary  chant Shani Gayatri Mantra and Shani Sattvic Mantra each rosary.

Shani Gayatri Mantra:

॥ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युपुरुषाय धीमहि तन्नो शनि: प्रचोदयात् ॥

Shani Sattvic Mantra:

॥ ॐ शं शनैश्र्वराय नम: ॥

Thereafter chant Shani Tantrokta Mantra for 23 rosaries for 11days

Shani Tantrokta Mantra:

॥ ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ॥

Shani Stotra: After chanting recite the Shani Stotra in Hindi or Sanskrit

नम: कृष्णाय नीले शितिकण्ठनिभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्रायशुष्काय भयाकृते ॥2॥
नमो: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्राय ते नम: ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्षाय वै नम: ।    
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुखाय ते नम: ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्कराऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तकाय ते नम: ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुष्मते तुभ्यं काश्यपात्मजसूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्य सिद्धिविद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति च मूलतः ॥9॥
प्रसादं कुरु मे देव वरार्होऽस्मात्युपात्रत: ।
मया स्तुत: प्रसन्नास्य: सर्व सौभाग्य दायक: ॥10॥

Meaning of the  Saturn Mantra Stotra:

  • Lord of Black and Blue body, Looks like Lord Shiva, shinning as fire of holocaust, and as ferocious as the god of death, Shanidev I salute you. ॥1॥
  • The Lord who has body without flesh, with long beard and jumbled hair, arrogant and fearsome eyes, I salute you. ॥2॥
  • With a complete structure, big hair grooves, dry body, fearsome teeth, O Lord Shanidev, I salute you. ॥3॥
  • Lord with dented inside eyes, to whom looking is very hard, heavy sharp, ferocious and fearful Shanidev, I salute you. ॥4॥
  • Lord with strong face, you can eat everything. You are the son of Sun, you are giver of dauntlessness, I salute you. ॥5॥
  • Lord keeping eyesight down, you control everyone, slow mover, holder of sword, I salute you. ॥6॥
  • By austerity, you kept your body fit, regularly performing Yoga, sad due to hunger, always unsatisfied, O Lord I salute you. ॥7॥
  • Descendant of Kashyap cult, son of Sun Shanidev is full of wisdom. If he is happy, he gives the kingdom and if not happy destroys everything. ॥8॥
  • If you are a little unhappy, Gods, Devils, Men, Lions and all poisonous things are destroyed. ॥9॥
  • Lord Shanidev, I am under your niche, you are capable of giving boon. You please be happy with me and give me fortune. ॥10॥

End of Saturn Mantra Sadhana:

It is an accomplishment of 11 days. During the span of the accomplishment follow the rules of accomplishment thoroughly. Fearlessly with full trust chant the Mantra for 11 days. Prior to the chanting a brief worship is to be done). Keep this Saturn Mantra performance secret. For 11 days the number of spell you have recited, 10% of that number should be chanted while performing Yajna with pepper, five dry fruits, and pure ghee. After the Yajna Circumbulate the Mascot anti clock wise around your head and keep it under any people tree which is in isolation. This Saturn Mantra will be treated as a complete accomplishment. This Saturn Mantra will fulfil your desire very soon. Dosha will be removed completely.

Saturn Mantra, शनि ग्रह मन्त्र

शनि ग्रह मन्त्र | Saturn Mantra

शनि ग्रह मन्त्र (Saturn Mantra): शनि ग्रह उग्र प्रकृति का ग्रह है। जीवन में इसका प्रभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। शनि को तीव्र ग्रह माना जाता है क्योंकि यह तामस स्वभाव वाला, चिंता कारक ग्रह है। मनुष्य के जीवन में सबसे अधिक चिंता का कारण आयु, मृत्यु, धन हानि, घाटा मुकदमा, शत्रुता इत्यादि है, सभी लोग शनि ग्रह की शांति चाहते हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि शनि सूर्य पुत्र होते हुए भी अपने पिता से शत्रुवत व्यवहार करता है और कई स्थितियों में तो यह सूर्य के प्रभाव को भी कम कर देता है। यह मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी है। इसका उच्च स्थान तुला राशि तथा नीच स्थान मेष राशि है।

शनि ग्रह बुध के साथ सात्विक व्यवहार तथा शुक्र के साथ होने पर राजसी व्यवहार तथा चन्द्रमा और सूर्य के साथ शत्रुवत व्यवहार करता है। यह मंद गति का ग्रह है और इससे आकस्मिक विपत्ति, नौकरी के अलावा, राजनैतिक जीवन में सफलता, असफलता जानी जाती है। यह ग्रह तस्करी, जासूसी, दुष्कर्म भी सम्पन्न करा सकता है। यह अपने स्थान से, तीसरे, सातवें और दसवें भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है। विंशोत्तरी दशा में शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। यह 29 वर्ष 5 महीने 17 दिन में 12 राशियों का भ्रमण कर लेता है।

शनि साधना कौन करे?

शनि उग्र प्रकृति का क्रूर ग्रह है। इस ग्रह के विपरीत प्रभाव से, एक्सीडेंट, कर्जा चढ़ना, कोर्ट केस, तांत्रिक प्रयोग, मृत्यु, झूठी बदनामी, जेल जाना, नशा करना, बर्बाद होना, धन हानि, शत्रु से नुकसान, चोरी होना, दु:ख, चिंता, दुर्भाग्य, पैसा फंसना, समय पर काम न होना, घर में क्लेश बना रहना, पारिवारिक झगड़े, अगर स्त्री हो तो उसकी शादी लेट होना, अच्छा पति न मिलना, पति का शराब पीना, लड़ाई झगड़े करना, अपनी इच्छा से विवाह न होना, घर से भाग जाना, संतान कष्ट, पुत्र प्राप्ति न होना, अपमान, तनाव, आर्थिक तंगी, गरीबी, नौकरी न लगना, प्रमोशन न होना, व्यापार न चलना, बच्चों से नुकसान अर्थात बच्चे का बिगड़ना, शिक्षा प्राप्त न होना, परीक्षा में फेल होना, गुप्त शत्रु होना, गुप्त स्थानों के रोग, जोड़ो के दर्द होना, साँस की समस्या, पेट के रोग, शरीर में मोटापा, बीमारियों पर पैसा खर्चा होना, जीवन में असफलता आदि सब शनि की महादशा, अंतर दशा, गोचर या शनि (Saturn Mantra) के अनिष्ट योग होने पर होता है।

यदि आपके जीवन में इस तरह की कोई समस्या आ रही है तो कहीं न कहीं शनि ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है। शनि ग्रह के अशुभ फल से बचने के लिए अन्य बहुत से उपाय है पर सभी उपायों में मन्त्र का उपाय सबसे अच्छा माना जाता है। इन मंत्रों का कोई नुकसान नहीं होता और इसके माध्यम से शनि ग्रह के अनिष्ट प्रभाव से पूर्णता बचा जा सकता है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।

किसी कारण वश आप यदि साधना न कर सके तो शनि तांत्रोक्त मन्त्र की नित्य 5 माला काले आसन पर बैठकर काले हकीक की माला से या रुद्राक्ष माला से जाप करें तब भी शनि ग्रह का विपरीत प्रभाव शीघ्र समाप्त होने लग जाता है पर ऐसा देखा गया है कि मंत्र जाप छोड़ने के बाद फिर पुन: आपको शनि ग्रह के अनिष्ट प्रभाव देखने को मिल सकते है इसलिए साधना करने का निश्चय करें तो अधिक अच्छा है। अगर आप साधना (Saturn Mantra) नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से भी करवा सकते है।

शनि का रत्न:

रत्न विज्ञान के अनुसार शनि ग्रह का रत्न नीलम है। शनिवार के दिन शाम को सवा पांच रत्ती का नीलम रत्न दाहिने हाथ की मध्यमा (बीच की अंगुली) अंगुली में चांदी की अंगूठी या सफ़ेद सोने में बनवाकर धारण करना चाहिये।

साधना विधान:

शनि साधना (Saturn Mantra) किसी भी शनिवार से प्रारम्भ कर सकते है। यह साधना शाम को (7:30 से 10:30 के बीच) करनी चाहिए, शनि साधना को करने के लिए साधक स्नान आदि से पवित्र हो कर काले रंग के वस्त्र धारण कर लें। पश्चिम दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें, अपने सामने लकड़ी की चौकी पर काले रंग का कपड़ा बिछा कर उस पर शिव (गुरु चित्र) चित्र या मूर्ति स्थापित कर, मन ही मन शिव जी से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद प्राप्त करें। शिव चित्र के सामने एक थाली रखे, उस थाली के बीच काजल से U बनाये, उस U के बीच साबुत काली उड़द की दाल भर दे, उसके ऊपर प्राण प्रतिष्ठा युक्त “शनि यंत्र’ स्थापित कर दें। यंत्र के सामने शुद्ध तेल का दिया जलाये फिर संक्षिप्त पूजन कर दाहिने हाथ में पवित्र जल लेकर विनियोग करें –

विनियोग:

“हे शनि देव आप सूर्य पुत्र, वक्रगति, कृष्ण वर्णीय रूप में हैं। सूर्य पुत्र एवं शक्ति सम्पन्न देव का मैं साधक विधि-विधान सहित पूजन करता हूँ।

विनियोग के पश्चात् गुरु का ध्यान करें—

नीलद्दुतिं शूलधरं किरीटिनं गृधस्थितं त्रासकरं धनुर्द्धरम । 

चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं, वन्दे सदाऽभीष्टकरं वरेणयम् ॥

ध्यान के पश्चात् साधक एक बार पुन: ‘शनि यंत्र’ का पूजन कर, पूर्ण आस्था के साथ ‘काली हकीक माला’ से या रुद्राक्ष माला से शनि गायत्री मंत्र की एवं शनि सात्विक मंत्र की एक-एक माला मंत्र जप करें-

शनि गायत्री मंत्र :   

॥ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युपुरुषाय धीमहि तन्नो शनि: प्रचोदयात् ॥

शनि सात्विक मंत्र :              

॥ ॐ शं शनैश्र्वराय नम: ॥

इसके बाद साधक शनि तांत्रोक मंत्र की नित्य 23 माला 11 दिन तक जाप करे।

शनि तांत्रोक्त मंत्र: 

॥ ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ॥

शनि स्तोत्र: नित्य मन्त्र जाप के बाद शनि स्तोत्र का पाठ हिन्दी या संस्कृत में अवश्य करें –

नम: कृष्णाय नीले शितिकण्ठनिभाय च ।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्रायशुष्काय भयाकृते ॥2॥

नमो: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः ।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्राय ते नम: ॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्षाय वै नम: ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुखाय ते नम: ।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्कराऽभयदाय च ॥5॥

अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तकाय ते नम: ।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥

तपसा दग्ध देहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

ज्ञानचक्षुष्मते तुभ्यं काश्यपात्मजसूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

देवासुरमनुष्याश्य सिद्धिविद्याधरोरगा: ।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति च मूलतः ॥9॥

प्रसादं कुरु मे देव वरार्होऽस्मात्युपात्रत: ।

मया स्तुत: प्रसन्नास्य: सर्व सौभाग्य दायक: ॥10॥

स्तोत्र का भावार्थ:

  • काले और नीले रंग के शरीर वाले, भगवान शंकर के सदृश दीप्तिमान, प्रलय कालीन अग्नि के समान तीक्ष्ण एवं यमराज के समान भयावह शनिदेव को मैं नमन करता हूं। ॥1॥
  • मांस से रहित देह, लम्बी दाढ़ी एवं जटाओं से युक्त, रूद्र एवं डरावनी बड़ी-बड़ी आंखों वाले शनिदेव को नमस्कार करता हूँ।॥2॥
  • भरे-पूरे शरीर से युक्त, लम्बे-लम्बे रोम समूह वाले, विशाल और शुष्क शरीरधारी, भयप्रद दांतों वाले शनिदेव को मेरा नमन है।॥3॥
  • अन्दर धंसी हुई आंखों वाले, जिसकी ओर देख पाना कठिन है। घोर, तीक्ष्ण, भीषण एवं विकराल शनिदेव को मेरा प्रणाम।॥4॥
  • हे बलिमुख! आप सब कुछ भक्षण कर जाते है। हे सूर्य पुत्र। आप अभय देने वाले हैं, आपको मेरा नमस्कार है।॥5॥
  • नीची द्रष्टि किये हुए सभी को अपने वश में करने वाले, मंदगति वाले, तलवार धारण करने वाले शनिदेव को मेरा नमन स्वीकार हो।॥6॥
  • तपो बल से अपने देह को साधे हुए, निरन्तर योगाभ्यास में लगे हुए, सदैव भूख से दु:खी और असंतुष्ट रहने वाले शनिदेव को मेरा प्रणाम है।॥7॥
  • कश्यप गोत्रीय सूर्यपुत्र शनिदेव ज्ञान दृष्टि से युक्त हैं। प्रसन्न होने पर राज्य प्रदान कर सकते हैं, अप्रसन्न  होने पर उसी समय सर्वस्व नष्ट कर देते हैं।॥8॥
  • आपके किञ्चित भी अप्रसन्न होने पर देव, असुर, मनुष्य, सिंह, विषधर तथा समस्त सर्प आदि का सर्वनाश हो जाता है।॥9॥
  • हे शनिदेव! मैं आपकी शरण में हूँ, आप वर देने में समर्थ हैं, मेरी स्तुति से प्रसन्न होकर मुझे सौभाग्य प्रदान करें।॥10॥

शनि मंत्र साधना का समापन:

यह साधना ग्यारह दिन की है। साधना (Saturn Mantra) के बीच साधना नियम का पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद मंत्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन करें। हवन के पश्चात् यंत्र को अपने सिर से उल्टा सात बार घुमाकर दक्षिण दिशा में किसी निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दें, इस तरह से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। धीरे-धीरे शनि अपना अनिष्ट प्रभाव देना कम कर देता है। शनि से संबंधित दोष आपके जीवन से समाप्त हो जाते है।

Shani Grah Vedic Mantra | शनि ग्रह वैदिक मंत्र