Shodashi Mahavidya Sadhana, षोडशी महाविद्या

Shodashi Mahavidya Sadhana | षोडशी महाविद्या साधना

Method of Shodashi Mahavidya Sadhana (षोडशी महाविद्या साधना): This Shodashi Mahavidya Sadhana is accomplishmentful. For this Sadhana all the materials must be sainted. For this energized sainted Tripur Sundari Yantra, Sodhashi Rosary and Kalp Vriksh Gutika should be with Sadhak.

The time for Sadhana is either early in the morning at 4 to 5 am or quarter past ten at night. The person should take bath and afterwards wear red dresses sit on a red woolen mat facing west. Take a wooden stool covered with a red cloth and make hexagon with red vermillion on it. Put a Lotus on the hexagon and in the centre of the flower, put the Yantra and on the Yantra keep the Gutika. Make 16 small heaps of rice and put one clove on the heap, which shows the symptoms of sixteen arts. Keep the burning ghee lamp and perform the puja with resolution after the appropriation.

ॐ अस्य श्री महा त्रिपुरसुन्दरी महामन्त्रस्य दक्षिणा मूर्तिऋषि: पन्क्तिश्छन्द: श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता ऐं बीजं सौं: शक्ति: क्लीं कीलकं ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

Pledge to the sages: Take water on the left palm and join all the five fingers of right hand pour the fingers into the water and touch different parts of the body feeling that all your body parts are being sanctified and scrumptious. This will empower the body parts and makes sensible.

दक्षिणामूर्तिऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
पंक्तिश्छ्न्दे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्रीमहात्रिपुरसुन्दर्ये नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)
ऐं बीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)
सौं: शक्तये नम: पादयो (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
क्रीं कीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पुरे शरीर को स्पर्श करें)

Hand pledge: Touch the fingers with your thumbs which make your fingers sensible.

ह्रीं श्रीं अं अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं आं तर्जनीभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं सौ: मध्यमाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं अं अनामिकाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं आं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं सौ: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

Heart Pledge: Again take water on the left palm and join all the five fingers of right hand pour the fingers into the water and touch different parts of the body feeling that all your body parts are being sanctified and scrumptious. This Shodashi Mahavidya Sadhana will empower the body parts and makes sensible.

ह्रीं श्रीं अं ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं शिरसे स्वाहा (सर को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं सौ: शिखायै वषट् (शिखा को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं अं कवचाय हुम् (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं सौ: अस्त्राय फट् (अपने सर के ऊपर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

Meditation of Matangi: Thereafter with folded hand meditate on Maa Sodhashi and then worship. Use incense, joss stick, rice and chant the sixteen names Jnana, Kriya, Kamini, Kaamdayini. Rati, Reetipriya, Nanda, Manomalini, Ichcha, Subhga, Bhaga, Bhagsarpini, Bhagpalya, Anang Nagaya Anang Mekhla and Anang Mekhla Sodhashi and offer one petal of lotus on every spell.

After this chant the Sodhashi Mahavidya (Shodashi Mahavidya Sadhana) Mantra given as under.

बालार्कायुततैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं ।
नानालंगकृतिराजमानवपुषं बालेन्दुयुकशेखराम् ।।
हस्तैरिक्षुधनु: स्रणिं सुमशरं पाशं मुदा बिभ्रतीं ।
श्रीचक्रस्थित सुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां भजे ।।

After the Puja take the sainted Sodhashi rosary and chant the following spell for 23 rosaries for 11 days or 63 rosaries for 21 days and thereafter recite the Kavach.

।। ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं ।।
or
।। श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं: ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं सकल ह्रीं सौं: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।।
or
।। श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं क्लीं सौं ह्रीं क्लीं श्रीं ।।

षोडशी महाविद्या कवच

ॐ पूर्वे मां भैरवी पातु बाला मां पातु दक्षिणे ।
मालिनी पश्चिमे पातु त्रासिनी उत्तरेऽवतु ।।
ऊधर्व पातु महादेवी महात्रिपुरसुन्दरी ।
अधस्तात् पातु देवेशी पातालतलवासिनी ।।
आधारे वाग्भव: पातु कामराजस्तथा हदि ।
डामर: पातु मां नित्यं मस्तके सर्वकामद: ।।
ब्रह्मरन्ध्रे सर्वगात्रे छिद्रस्थाने च सर्वदा ।
महाविद्या भगवती पातु मां परमेश्वरी ।।
ऐं ह्रीं ललाटे मां पातु क्लीं क्लूं सश्च नेत्रयो: ।
नासायां मे कर्णयोश्च द्रीं द्रैं द्रां चिबुके तथा ।।
सौ: पातु गले ह्रदये सह ह्रीं नाभिदेशके ।
कलह्रीं क्लीं स्त्रीं गुहादेशे स ह्रीं पादयोस्तथा ।।
सह्रीं मां सर्वत: पातु सकली पातु सन्धिषु ।
जले स्थले तथाऽऽकाशे दिक्षु राजग्रहे तथा ।।

This Shodashi Mahavidya Sadhana has to be completed within 11 days. During this time the Sadhak feel that something special is happening on him. This is an accomplishment of 11 days. Follow the instructions of accomplishment thoroughly. With full trust and fearlessly chant the spell. Keep this Shodashi Mahavidya Sadhana a secret. At the end with 10% of the total spell numbers perform the Yajna with the bastard teak flower, Ghee and Havan materials.

After the Yajna wrap the Yantra in a red cloth and keep it in the chest for a year and rest of the Puja materials flow into the running water. This way the accomplishment is said to be completed. Mother Sodhashi gives blessing to such Sadhak and fulfils his resolution. This Shodashi Mahavidya Sadhana enhances wisdom and removes poverty.

In tantra Sadhna of Dus Mahavidya Sadhak consider ma Tripur Sundari to give immediate results to obtain a beauty, good fortune, wealth, pleasure and salvation. The aspirant Sadhak, having perfected this Sadhna get all Ashtsidhis. This Shodashi Mahavidya Sadhana evokes innumerable advantages for all round financial prosperity and stability, expansion of business, name and fame, blesses with long and prosperous married life. The results are realised instantly after the accomplishment of the Sadhna.

Shodashi Mahavidya Sadhana, षोडशी महाविद्या साधना

षोडशी महाविद्या साधना | Shodashi Mahavidya Sadhana

षोडशी महाविद्या साधना: यह साधना पूर्ण सिद्धिदायक साधना है। इस साधना को करने के लिए सामग्री विशेष रूप से सिद्धि युक्त होनी चाहिये। इसके लिए सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ‘त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र’, षोडशी माला’, ‘कल्पवृक्ष गुटिका’ ये तीन चीजें साधना के लिए साधक के पास अवश्य होनी चाहिये

साधना करने के लिए साधक प्रात: के समय 4 से 5 बजे के बीच या रात्रि सवा दस बजे के समय स्नान कर शुद्ध लाल वस्त्र धारण कर, पश्चिम दिशा मुख कर, लाल ऊनी आसन पर बैठे, अपने सामने किसी बाजोट(चौकी) पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर रोली से षटकोण बनाये, उस षटकोण पर एक कमल पुष्प रखें, उस कमल पुष्प के बीच सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ‘षोडशी त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र यंत्र’ स्थापित करें, यंत्र के बीच कल्पवृक्ष गुटिका रखें। यंत्र के चारों ओर 16 छोटी-छोटी चावल की ढेरियां बनाकर उस पर लौंग स्थापित करें, जो सोलह कला सवरूप है। यंत्र के सामने शुद्ध घी का दीपक लगाकर और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करें –

ॐ अस्य श्री महा त्रिपुरसुन्दरी महामन्त्रस्य दक्षिणा मूर्तिऋषि: पन्क्तिश्छन्द: श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता ऐं बीजं सौं: शक्ति: क्लीं कीलकं ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

ऋष्यादि न्यास: बाएँ (Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ (Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

दक्षिणामूर्तिऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
पंक्तिश्छ्न्दे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्रीमहात्रिपुरसुन्दर्ये नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)
ऐं बीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)
सौं: शक्तये नम: पादयो (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
क्रीं कीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास: अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न अंगुलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से अंगुलियों में चेतना प्राप्त होती है।

ह्रीं श्रीं अं अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं आं तर्जनीभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं सौ: मध्यमाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं अं अनामिकाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं आं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
ह्रीं श्रीं सौ: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास: पुन: बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों अंगुलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

ह्रीं श्रीं अं ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं शिरसे स्वाहा (सर को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं सौ: शिखायै वषट् (शिखा को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं अं कवचाय हुम् (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं आं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ह्रीं श्रीं सौ: अस्त्राय फट् (अपने सर के ऊपर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

ध्यान: इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती षोडशी का ध्यान करें, ध्यान के बाद षोडशी देवी के सोलह स्वरूपों पर सोलह नाम उच्चारण कर एक-एक कमल पुष्प की पंखुड़ी चढ़ाये-

ज्ञान, क्रिया, कामिनी, कामदायिनी, रति, रीतिप्रिया, नन्दा, मनोमालिनी, इच्छा, सुभगा, भगा, भगसर्पिणी, भागमाल्या, अनंग नगाया, अनंग मेखला और अनंग मदना षोडशी, इस तरह माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर षोडशी महाविद्या मन्त्र का जाप करें।

बालार्कायुततैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं ।
नानालंगकृतिराजमानवपुषं बालेन्दुयुकशेखराम् ।।
हस्तैरिक्षुधनु: स्रणिं सुमशरं पाशं मुदा बिभ्रतीं ।
श्रीचक्रस्थित सुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां भजे ।।

पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित षोडशी” माला से निम्न मंत्र की 23 माला 11 दिन तक मंत्र जाप करें, मन्त्र जाप के पश्चात् षोडशी कवच का पाठ करें —

षोडशी मन्त्र:

।। ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं ।।
या
।। श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं: ॐ ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं सकल ह्रीं सौं: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ।।
या
। श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं क्लीं सौं ह्रीं क्लीं श्रीं ।।

षोडशी महाविद्या कवच

ॐ पूर्वे मां भैरवी पातु बाला मां पातु दक्षिणे ।
मालिनी पश्चिमे पातु त्रासिनी उत्तरेऽवतु ।।
ऊधर्व पातु महादेवी महात्रिपुरसुन्दरी ।
अधस्तात् पातु देवेशी पातालतलवासिनी ।।
आधारे वाग्भव: पातु कामराजस्तथा हदि ।
डामर: पातु मां नित्यं मस्तके सर्वकामद: ।।
ब्रह्मरन्ध्रे सर्वगात्रे छिद्रस्थाने च सर्वदा ।
महाविद्या भगवती पातु मां परमेश्वरी ।।
ऐं ह्रीं ललाटे मां पातु क्लीं क्लूं सश्च नेत्रयो: ।
नासायां मे कर्णयोश्च द्रीं द्रैं द्रां चिबुके तथा ।।
सौ: पातु गले ह्रदये सह ह्रीं नाभिदेशके ।
कलह्रीं क्लीं स्त्रीं गुहादेशे स ह्रीं पादयोस्तथा ।।
सह्रीं मां सर्वत: पातु सकली पातु सन्धिषु ।
जले स्थले तथाऽऽकाशे दिक्षु राजग्रहे तथा ।।

यह षोडशी महाविद्या साधना ग्यारह दिन तक सम्पन्न करनी है। इन ग्यारह दिनों में साधक को यह अनुभव अवश्य होता है कि उसे एक विशेष शक्ति का पूर्ण सहयोग निरन्तर प्राप्त हो रहा है एवं उसके शरीर में, मन में, कार्य में शीघ्र परिवर्तन हो रहे हैं। ग्यारह दिन तक साधना के नियमों का पालन अवश्य करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन तक मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद जिस मन्त्र का आपने जाप किया है उसका दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन कमल गट्टे, शुद्ध घी, हवन समग्री में मिलाकर हवन करें।

हवन के पश्चात् षोडशी यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर रख दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है, षोडशी माँ साधक के संकल्प सहित कार्य भविष्य में शीघ्र ही पूर्ण करती है। इस षोडशी महाविद्या साधना से साधक को जीवन में प्रत्येक सुख प्राप्त होता है, जिस कामना को मन में रख कर वह साधना करता है। धन प्राप्ति के उसे नये नये अवसर प्राप्त होते है, माँ षोडशी उसके जीवन की दरिद्रता पूर्णत: समाप्त कर देती है।

वास्तव में षोडशी महाविद्या साधना जीवन की सभी शक्तियों को प्रदान करने वाली साधना है, इस साधना से सिद्ध साधक वास्तव में ही एक विशेष शक्ति का, त्रिशक्ति का स्वामी हो जाता है और उसके अपने जीवन में ही मनोभाव पूर्ण होते हैं, उसकी इच्छाएं पूर्ण होती है और उसके जीवन के समस्त पाप क्षय होते हैं।