Sudarshan Kavach | सुदर्शन कवच
Sudarshan Kavach (सुदर्शन कवच) is the great protective kavach of Lord Vishnu. By reciting this kavach protects one from Serious diseases, Evil eye, Black magic etc., and gives good health. If a person is suffering from a serious illness for a long time, not getting cured even after treatment and medication, due to which he has to bear a lot of physical pain and suffering, his family members are also getting very upset, in such a situation, to get rid of this problem a person must recite Sudarshan Kavach. With this recitation, serious illnesses gradually start to heal and physical health also remains in good condition, the person gets the blessing of a long life.
If there is an effect of any kind of Negative energy, Evil eye, Tantra-mantra obstract, Black magic etc., in a person’s house, due to which there are fights between the family members on some issue or the other every day, there is resentment in everyone’s mind for each other, there is unrest, then in such a situation, by reciting Sudarshan Kavach and placing Sudarshan Yantra in the house, the person and his family start getting protected from all Negative energy, Black magic etc. Every person should recite Sudarshan Kavach in daily worship, so that he can get the divine blessings of Lord Vishnu.
सुदर्शन कवच | Sudarshan Kavach
सुदर्शन कवच जीवन में समस्त बाधा निवारण/शांति हेतु सुदर्शन कवच का प्रयोग किया जाता है, इसके अलावा ऊपरी बाधा, अला-बला, भूत, भूतिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी या अन्य किसी भी तरह की ओपरी विपत्ति में श्री सुदर्शन कवच रक्षा करता है। यह अद्वितीय तांत्रिक शक्ति से युक्त है, यह सुदर्शन चक्र की भांति इसके धारणकर्ता/पाठक की रक्षा करता है।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
ॐ अस्य श्री सुदर्शन कवच माला मंत्रस्य श्री लक्ष्मी नृसिंह: परमात्मा देवता क्षां बीजं ह्रीं शक्ति मम कार्य सिध्यर्थे जपे विनयोग:।
हृदयादि न्यास:
ॐ क्षां अन्गुष्ठाभ्याम नम: हृदयाय नम:
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्याम नम: शिरसे स्वाहा
ॐ श्रीं मध्यमाभ्याम नम: शिखाए वषट
ॐ सहस्रार अनामिकभ्याम नम: कवचाय हुम
ॐ हुं फट कनिष्ठिकाभ्याम नम: नेत्रत्रयाय वौषट
ॐ स्वाहा करतल-कर प्र्ष्ठाभ्याम नम: अस्त्राय फट
ध्यान:
उपसमाहे नृसिंह आख्यम ब्रह्म वेदांत गोचरम/भूयो-लालित संसाराच्चेद हेतुं जगत गुरुम पंचोपचार पूजनं:
लं पृथ्वी तत्वात्मकम गंधंम समर्पयामि
हं आकाश तत्वात्मकम पुष्पं समर्पयामि
यं वायु तत्वात्मकम धूपं समर्पयामि
रं अग्नि तत्वात्मकम दीपं समर्पयामि
वं जल तत्वात्मकम नैवेद्यं समर्पयामि
सं सर्व तत्वात्मकम ताम्बूलं समर्पयामि
ॐ सुदर्शने नम: ॐ आं ह्रीं क्रों नमो भगवते प्रलय काल महा ज्वाला घोर वीर सुदर्शन नृसिंहआय ॐ महा चक्र राजाय महा बले सहस्रकोटिसूर्यप्रकाशाय सहस्रशीर्षआय सहस्रअक्षाय सहस्रपादाय संकर्षणआत्मने सहस्रदिव्याश्र सहस्र हस्ताय सर्वतोमुख ज्वलन ज्वाला माला वृताया विस्फु लिंग स्फोट परिस्फोटित ब्रह्माण्ड भानडाय महा पराक्रमाय महोग्र विग्रहाय महावीराय महा विष्णु रुपिणे व्यतीत कालान्त काय महाभद्र रोद्रा वताराया मृत्यु स्वरूपाय किरीट-हार-केयूर-ग्रेवेयक-कटक अन्गुलयी-कटिसूत्र मजीरादी कनक मणि खचित दिव्य भूषणआय महा भीषणआय महा भिक्षया व्याहत तेजो रूप निधेय रक्त चंडआंतक मण्डितम दोरु कुंडा दूर निरिक्षणआय प्रत्यक्ष आय ब्रह्म चक्र विष्णु चक्र कल चक्र भूमि चक्र तेजोरूपाय आश्रितरक्षाय/ ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात इति स्वाहा स्वाहा भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षयॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम शत्रून नाशय नाशयॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल चंड चंड प्रचंड प्रचंड स्फुर प्रस्फुर घोर घोर घोरतर घोरतर चट चट प्रचटं प्रचटं प्रस्फुट दह कहर भग भिन्धि हंधी खट्ट प्रचट फट जहि जहि पय सस प्रलय वा पुरुषाय रं रं नेत्राग्नी रूपाय ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही आगच्छ आगच्छ भूतग्रह- प्रेतग्रह- पिशाचग्रह-दानावग्रह-कृत्रिम्ग्रह- प्रयोगग्रह-आवेशग्रह-आगतग्रह-अनागतग्रह- ब्रह्म्ग्रह-रुद्रग्रह-पतालग्रह-निराकारग्रह -आचार-अनाचार ग्रह- नन्जाती ग्रह- भूचर ग्रह- खेचर ग्रह- वृक्ष ग्रह- पिक्षी चर ग्रह- गिरी चर ग्रह- श्मशान चर ग्रह -जलचर ग्रह -कूप चर ग्रह- देगारचल ग्रह- शुन्यगार चर ग्रह- स्वप्न ग्रह- दिवामनो ग्रह- बालग्रह -मूकग्रह- मुख ग्रह -बधिर ग्रह- स्त्री ग्रह- पुरुष ग्रह- यक्ष ग्रह- राक्षस ग्रह- प्रेत ग्रह किन्नर ग्रह- साध्य चर ग्रह – सिद्ध चर ग्रह -कामिनी ग्रह- मोहनी ग्रह-पद्मिनी ग्रह- यक्षिणी ग्रह- पकषिणी ग्रह संध्या ग्रह-उच्चाटय उच्चाटय भस्मी कुरु कुरु स्वाहाॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ क्षरां क्षरीं क्षरूं क्षरें क्षरों क्षर : भरां भरीं भरूं भरें भरों भर: ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रें ह्रों ह्र: घरां घरीं घरूं घरें घरों घर: श्रां श्रीं श्रुं श्रें श्रों श्र: ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात एही एही सालवं संहारय शरभं क्रन्दया विद्रावय विद्रावय भैरव भीषय भीषय प्रत्यांगिरी मर्दय मर्दय चिदंबरम बंधय बंधय विदम्बरम ग्रासय ग्रासय शांर्म्भ्वा निबंतय कालीं दह दह महिषासुरी छेदय छेदय दुष्ट शक्ति निर्मूलय निर्मूलय रूं रूं हूँ हूँ मुरु मुरु परमन्त्र – परयन्त्र – परतंत्र कटुपरं वादपर जपपर होमपर सहस्र दीप कोटि पुजां भेदय भेदय मारय मारय खंडय खंडय परकृतकं विषं निर्विष कुरु कुरु अग्नि मुख प्रकांड नानाविध कृतं मुख वनमुखं ग्राहान चुर्णय चुर्णय मारी विदारय कुष्मांड वैनायक मारीचगणान भेदय भेदय मन्त्रं परअस्माकं विमोचय विमोचय अक्षिशूल कुक्षीशूल गुल्मशूल पार्श्वशूल सर्वाबाधा निवारय निवारय पांडूरोगं संहारय संहारय विषम ज्वर त्रासय त्रासय एकाहिकं द्वाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं पंचाहिकं षष्टज्वर सप्तमज्वर अष्टमज्वर नवमज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर दानवज्वर महाकालज्वरं दुर्गाज्वरं ब्रह्माविष्णुज्वरं माहेश्वरज्वरं चतु:षष्टि योगिनीज्वरं गन्धर्वज्वरं बेतालज्वरं एतान ज्वरान्न नाशय नाशय दोषं मंथय मंथय दुरित हर हर अन्नत वासुकी तक्षक कालौय पद्म कुलिक कर्कोटक शंख पलाद्य अष्ट नाग कुलानां विषं हन हन खं खं घं घं पाशुपतं नाशय नाशय शिखंडी खंडय खंडय प्रमुख दुष्ट तंत्र स्फोटय स्फोटय भ्रामय भ्रामय महानारायणअस्त्राय पंचाशधरणरूपाय लल लल शरणागत रक्षणाय हूँ हूँ गं वं गं वं शं शं अमृतमूर्तये तुभ्यं नम: ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात भो भो सुदर्शन नारसिंह माम रक्षय रक्षय ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात ॐ सुदर्शन विद्महे महा ज्वालाय धीमहि तन्न: चक्र: प्रचोदयात मम सर्वारिष्ट शान्तिं कुरु कुरु सर्वतो रक्ष रक्ष ॐ ह्रीं हूँ फट स्वाहा ॐ क्ष्रोम ह्रीं श्रीं सहस्रार हूँ फट स्वाहा
सुदर्शन कवच के लाभ:
सुदर्शन कवच भगवान विष्णु का महा रक्षा कवच हैं। इस कवच का पाठ करने से गंभीर रोग, नज़र ग्रह दोष, टोना-टोटका आदि से रक्षा होने लगती हैं और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती हैं। यदि कोई व्यक्ति काफी लम्बे समय से किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा हैं, इलाज और दवा के बाद भी ठीक नही हो पा रहा हैं, जिसके कारण उसे बहुत अधिक शारीरिक कष्ट और पीड़ा सहन करनी पड़ रही हैं, उसके परिवार के सदस्य भी अत्यंत परेशान हो रहे हैं, ऐसे में इस समस्या से छुटकारा प्राप्त करने के लिए, उस व्यक्ति को सुदर्शन कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। इस पाठ को करने से गंभीर बीमारियाँ धीरे-धीरे ठीक होने लगती हैं और शारीरिक स्वास्थ्य भी स्वस्थ बना रहता हैं, व्यक्ति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
अगर किसी व्यक्ति के घर में किसी प्रकार की नकरात्मक ऊर्जा, नज़र दोष, तंत्र-मंत्र बाधा, टोना-टोटका आदि का प्रभाव हैं, जिसके कारण परिवार के सदस्यों के बीच आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़े हो रहे हैं, सभी के मन में एक-दूसरे के लिए में मन मुटाव पैदा हो रहा हैं, अशांति बनी हुई हैं, तो ऐसे में सुदर्शन कवच का पाठ करने के साथ सुदर्शन यंत्र घर में स्थापित करने से समस्त नकारात्मक ऊर्जा, काले जादू आदि से व्यक्ति तथा उसके परिवार की रक्षा होने लगती हैं। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए, कि वे नित्य पूजा में सुदर्शन कवच का पाठ अवश्य करे, जिससे उसे भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो सके।