Tripura Bhairavi Mahavidya | त्रिपुर भैरवी महाविद्या
Tripura Bhairavi Mahavidya (त्रिपुर भैरवी महाविद्या): The fifth Great Cosmic Wisdom of the Hindu pantheon is Tripura Bhairavi, correlated both to the terrible force of destruction of the evil and impure, and to the energy of the subtle universal fire.
In other words, she signifies Gods amazing, colossal, unmatchable, and terrible force of action, which destroys all that, is bad and impure and in the same time transforms in the sense of evolution the various types of manifestation.
This terrible manifestation of the Great Cosmic Wisdom Tripura Bhairavi Mahavidya is always directed towards both the destruction of impurities (on their various levels of manifestation) and the elimination of negative forces and influences that tend to block the devotees spiritual progress. She in the form of ferocity remains with Lord Shiva during destruction.
पद्ममष्टदलोपेतं नवयोन्याढयकर्णिकम्।
चतुद्वासमायुक्तं भुग्रहं विलिखेत्तत:।।
This goddess is having passionate qualities. This character is implied on human beings. She takes away the negative characters from the devotees. The implications of these aspects are numerous (Tripura Bhairavi Mahavidya). For instance, the purification action performed by the Great Cosmic Wisdom Tripura Bhairavi implies the manifestation of her savior aspect, because she saves her devotees from all suffering and negative karma-ic pressures.
From an etymologic point of view, the name Bhairavi comes from three groups of letters, with a precise semantics: bha symbolizes the act of preservation, in the sense of continuity; ra signifies ramana, the creative divine activity and va coming from vamana, referring to the relaxation, or ceasing a certain activity.
Consequently, she helps the devotee to overcome any sickness, sadness, suffering, and ultimately death (Tripura Bhairavi Mahavidya). We may also note the close connection between Tripura Bhairavi and Tara, as they both represent the logos, even if under its different aspects. Bhairav was known as Rudra, the “angry” god, who was one of the most important deities in the ancient Vedic pantheon, from which later on the Hindu tradition took Shiva.
Shiva is the peace and tranquility that follow after the terrible display of Rudra’s forces, whose main target is the “adjustment” of the devotee’s life to the parameters of the divine laws and harmony. A subtle form of approaching the taps, as a worship of Tripura Bhairavi Mahavidya is to gradually renounce all egotistic desires, all attachments and illusory pleasures in order to become free from the karma-ic prison.
Method of Accomplishment:
This is to be done on any Wednesday or Friday after 9 pm. After taking bath, wear clean cloths and according to the instructions of chanting spell put a wooden stool duly covered by a red cloth before you and place an image of Lord Shiva or your preceptor (Tripura Bhairavi Mahavidya). Before that image keep a platter and make a triangle on the platter with red vermillion and on that triangle put the sainted Kamala Yantra which is energized and sanctified. Burn a ghee lamp so that it should burn till end. Burn incense and joss sticks and thereafter perform the Puja and resolute and do the appropriation by taking water in the right palm (Tripura Bhairavi Mahavidya).
ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।
Pledge to the sages: Take water on the left palm and join all the five fingers of right hand pour the fingers into the water and touch different parts of the body feeling that all your body parts are being sanctified and scrumptious (Tripura Bhairavi Mahavidya). This will empower the body parts and makes sensible.
दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)
वाग्भवबीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)
शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
कामराजकीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पुरे शरीर को स्पर्श करें)
Hand pledge: Touch the fingers with your thumbs which make your fingers sensible.
हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।
ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।
ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।
Heart Pledge: Again take water on the left palm and join all the five fingers of right hand pour the fingers into the water and touch different parts of the body feeling that all your body parts are being sanctified and scrumptious (Tripura Bhairavi Mahavidya). This will empower the body parts and makes sensible.
हस्त्रां ह्रदयाय नम: ।
हस्त्रां शिरसे स्वाहा ।
ह्स्त्रूं शिखायै वषट् ।
हस्त्रां कवचाय हुम् ।
ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
हस्त्र: अस्त्राय फट् ।
Meditation of Tripura Bhairavi: Thereafter with folded hand meditate on Maa Tripura Bhairavi and then worship (Tripura Bhairavi Mahavidya). Use incense, joss stick, rice and chant the Tripura Bhairavi spell.
उधदभानुसहस्त्रकान्तिमरूणक्षौमां शिरोमालिकां,
रक्तालिप्रपयोधरां जपवटी विद्यामभीतिं परम् ।
हस्ताब्जैर्दधतीं भिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,
देवी बद्धहिमांशुरत्नस्त्रकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ।।
After the Puja take a sainted Coral rosary and chant the following spell for 23 rosaries for 11 days or 63 rosaries for 21 days and thereafter recite the Kavach (Tripura Bhairavi Mahavidya).
Spell:
॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥
या
॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥
त्रिपुर भैरवी कवच
हस्त्रां मेगशिर: पातु भैरवी भयनाशिनी ।
सकलरीं नेत्रं च हस्त्रांश्चैव ललाटकम् ।।
कुमारी सर्वगात्रे च वाराही उत्तरे तथा ।
पूर्वे च वैष्णवी देवी इंद्राणी मम दक्षिणे ।।
दिग्विदिक्षु च सर्वत्र भैरवी सर्वदाऽवतु ।।
This is an accomplishment of 21 days. For 11 days if 23 rosaries are chanted only a small part of spell is done but if chanted 63 rosaries for 21 days, it will complete full one lakh and 25 thousands spell. Follow the instructions of accomplishment thoroughly. With full trust and fearlessly chant the spell. Keep this Tripura Bhairavi Mahavidya Sadhana a secret. At the end with 10% of the total spell numbers perform the Yajna with Kamal Gatta, Ghee and Havan materials. After the Yajna wrap the Yantra in a red cloth and keep it in the chest for a year and rest of the Puja materials flow into the running water. This way the accomplishment is said to be completed. Mother Bhagawati gives blessing to such Sadhak and fulfils his resolution. This Tripura Bhairavi Mahavidya enhances wisdom and removes poverty.
त्रिपुर भैरवी महाविद्या | Tripura Bhairavi Mahavidya
त्रिपुर भैरवी महाविद्या: त्रिपुर भैरवी महाविद्या दस महाविद्याओं में छठी महाविद्या है। ‘त्रिपुर’ शब्द का अर्थ हैं, तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल) और ‘भैरवी‘ विनाश के सिद्धांत रूप में अवस्थित हैं। तीनों लोकों के अंतर्गत विध्वंस कि जो शक्ति हैं, वह भैरवी ही हैं। देवी, विनाश एवं विध्वंस से सम्बंधित भगवान शिव की शक्ति हैं। उनके विध्वंसक प्रवृति की देवी प्रतिनिधित्व करती हैं। विनाशक प्रकृति से युक्त देवी पूर्ण ज्ञानमयी भी हैं। विध्वंसकाल उपस्थित होने पर देवी अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप में भगवान शिव के साथ उपस्थित रहती हैं।
पद्ममष्टदलोपेतं नवयोन्याढयकर्णिकम्।
चतुद्वासमायुक्तं भुग्रहं विलिखेत्तत: ।।
यह महाविद्या तामसी गुण सम्पन्न हैं। यह गुण मनुष्य के स्वभाव पर प्रतिपादित होते हैं जैसे क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ एवं मदिरा सेवन, धूम्रपान इत्यादि जो मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। वहीं देवी इन विध्वंसक तत्वों को मनुष्य के अंदर से समाप्त कर देती है। यह देवी काल रात्रि या महाकाली के समान गुण वाली हैं।
भैरवी देवी का सम्बन्ध विनाश से होते हुए भी वे सज्जन जातकों के लिए नम्र तथा सौम्य हैं तथा दुष्ट प्रवृति, पापियों के लिए उग्र तथा विनाशकारी हैं। दुर्जनों को देवी की शक्ति ही विनाश की ओर अग्रसित करती हैं, जिससे उनका पूर्ण विनाश हो जाता हैं या बुद्धि विपरीत हो जाती हैं।
भैरवी शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना हैं, प्रथम ‘भै या भरणा’ जिसका तात्पर्य ‘रक्षण’ से हैं, द्वितीय ‘र या रमणा’ रचना तथा ‘वी या वमना’ मुक्ति से सम्बंधित हैं। प्राकृतिक रूप से देवी घोर विध्वंसक प्रवृति से सम्बंधित हैं। जो विध्वंसक वस्तुओं से सम्बन्ध रखती हैं – जैसे श्मशान भूमि, अस्त्र-शस्त्र, मृत शव, रक्त, मांस, कंकाल, खप्पर, मदिरा पान, धूम्रपान इत्यादि। देवी के उग्र स्वरूप के कारण, विपरीत एवं भयंकर परिणाम उन्हीं को भोगना पड़ता हैं जो दुष्ट प्रवृति के व्यक्ति होते हैं। विनाश शक्ति स्वरूप में देवी, दुष्टों के सम्मुख प्रकट होकर उनका विनाश करती हैं और अंततः मृत्यु पश्चात दंड भी देती हैं।
वास्तव में देवी भैरवी विनाश रूपी पूर्ण शक्ति हैं। त्रिपुर भैरवी साधना करने से माँ प्रसन्न होकर जहां साधक के जीवन की दरिद्रता को समाप्त करती है तो वहीं दूसरी और माँ उस साधक की बुरी प्रव्रतियों रोग, शत्रु, क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ एवं मदिरा सेवन, धूम्रपान आदि दूर कर उसे निर्मल बना देती है।
साधना विधान:
यह साधना किसी भी बुधवार या शुक्रवार की रात्रि में 9 बजे के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके मन्त्र विधान अनुसार संकल्प और पूजन कर अपने सामने लकड़ी के बाजोट(चौकी) पर लाल कपडा बिछाकर, सामने शिव या गुरु का चित्र स्थापित करें। उनके सामने स्वच्छ प्लेट में रोली से त्रिकोण बनाकर, उस त्रिकोण पर ‘कमला यंत्र’ जो चैतन्य, मंत्रसिद्ध प्राणप्रतिष्ठित हो उसे स्थापित करें और शुद्ध घी का दीपक जलाये यह दीपक मन्त्र जाप तक जलता रहे। धुप या अगरबत्ती आदि भी जला दें, जिससे वातावरण शुद्ध बना रहे। इसके पश्चात मन्त्र विधान अनुसार पूजन व संकल्प कर, सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करे—
ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।
ऋष्यादि न्यास: बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।
दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)
वाग्भवबीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)
शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
कामराजकीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)
कर न्यास: अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।
हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।
ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।
ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।
ह्र्दयादि न्यास: पुन: बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।
हस्त्रां ह्रदयाय नम: ।
हस्त्रां शिरसे स्वाहा ।
ह्स्त्रूं शिखायै वषट् ।
हस्त्रां कवचाय हुम् ।
ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
हस्त्र: अस्त्राय फट् ।
त्रिपुर भैरवी ध्यान: इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर त्रिपुर भैरवी महाविद्या मन्त्र का जाप करें।
उधदभानुसहस्त्रकान्तिमरूणक्षौमां शिरोमालिकां,
रक्तालिप्रपयोधरां जपवटी विद्यामभीतिं परम् ।
हस्ताब्जैर्दधतीं भिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,
देवी बद्धहिमांशुरत्नस्त्रकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ।।
पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित लाल ‘मूंगा’ माला से निम्न मंत्र की 23 माला 11 दिन या 63 माला 21 दिन तक मंत्र जप करें, नित्य मन्त्र जाप के पश्चात् कवच का पाठ करें —
जप मन्त्र:
॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥ या ॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥
त्रिपुर भैरवी कवच
हस्त्रां मेगशिर: पातु भैरवी भयनाशिनी ।
सकलरीं नेत्रं च हस्त्रांश्चैव ललाटकम् ।।
कुमारी सर्वगात्रे च वाराही उत्तरे तथा ।
पूर्वे च वैष्णवी देवी इंद्राणी मम दक्षिणे ।।
दिग्विदिक्षु च सर्वत्र भैरवी सर्वदाऽवतु ।।
यह ग्यारह या इक्कीस दिन की साधना है। ग्यारह दिन 23 माला रोज जाप करने से लघु पुरश्चरण संपन्न होता है और 63 माला 21 दिन करने से सवा लाख मन्त्र जाप होता है, यह पुरश्चरण कहलाता है। साधना के बीच साधना के नियमों का अवश्य ही पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ मंत्र जप करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। साधना के अंत में जिस मन्त्र का आपने जाप किया है, उस मन्त्र का दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन लाल कमल पुष्प या कमल गट्टे को शुद्ध घी में मिलाकर करें।
हवन के पश्चात् यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक वर्ष के लिए रख दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। माँ भगवती त्रिपुर भैरवी साधक के संकल्प सहित सभी मनोरथों को शीघ्र ही पूर्ण करती है और साधक को धन, धान्य और यश प्रदान करती है। जिससे साधक के जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है। वह सभी दृष्टियों से पूर्ण बन जाता है।