Vastu Chakra, वास्तु चक्र

Vastu Chakra | वास्तु चक्र

Scientist of Vastu Chakra: Vastu Shastra is a very ancient scripture; it has religious significance, as is the scientific significance. This science is based on astral studies and experiences. By following the rules of the Vastu Chakra, man attains happiness, peace and prosperity. Therefore, in today’s era man is getting attracted towards architecture.

While using the rules of Vastu Chakra, many important things have been kept in mind. In addition to the energy received from the sun, the moon and the air, the effects on the earth by other planets have also been kept in mind.

If we adapt the city to the physical system, then we can save ourselves from the industrial pollution. The principles of Vastu Chakra have been made in accordance with geographical conditions and it has been taken care of, that how can they be used in the building, by taking proper sources of energy for public welfare by natural resources. That is why the rules of such a Vastu Chakra have been made to get the most utilized from the natural sources to obtain the subtle and the subtle power directly and indirectly.

Our earth is affected by the heat of the sun and the moon, all the planets of the solar system continue to affect one another, and the world without them also does not remain affected. According to Vastu Chakra when considering the position of the solar system, it is known that the water is 100 times higher than the earth, the fire is 100 times more than the water, air is 100 times the air, and the sky is 100 times by air, in which the solar system is located in the womb. Life and light are possible on the earth from the sun’s heat.

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Influence Of Magnetic Waves According To Vastu Chakra:

According to the Vastu Chakra, the idea of ​​availing the magnetic waves coming from the North Pole and the sun rays coming from the east, in determining directions in the construction of the house, is contained. According to Vastu Chakra, the building is constructed in such a way that there is no hindrance in the flow of these magnetic waves and sun rays.

According to Vastu Chakra it is clear that the impact of the magnetic waves flowing through the North and the South Pole on the affect human body and the brain. Similarly, the energy absorbed in the morning sunlight from the east, which transmits the energy, Vitamin D and A by affecting our mind, brain and body through ultra violet rays. Due to the elevation of the south-western part of the building, the sun protects against infrared and cosmic rays.

Importance of Five elements in Vastu Chakra:

Earth:

According the rules of Vastu Chakra the special attention is taken to the angles, slopes, roads, directions etc. in the land. Land should be high towards south west. The long east side of the temple is the Sun Vedhi and in the north, there is a long lunar Vedhi. Chandra Vedhi House is auspicious and providential. Both the Sun Vedhi and Chandra Vedhi buildings are considered suitable for garden gardens. Sun and Vedhi are not considered in the construction of the temple.

Water:

It is taken care of the water that all the water of the house should flow towards north-east. According to Vastu Chakra the well, tube well, swimming pool etc. should be built in the northeast. The bath water should also be in the north east. North East (Ishan) angle is most suitable for water. Pure clean water should be in the north east and flow or installation of septic tank and sewer line in the northwest.

Fire:

According to Vastu Chakra the direction of fire is south east (southeast angle). In the building, the kitchen, fireplace, geyser, electricity meter etc. should be kept in the same angle. Its second option is the northwest (northwest) angle as the fire is directly linked to this angle.

Wind:

Importance of the air is well-known in the buildings of the people because of the life of the people living in it is the base air. According to Vastu Chakra if they continue to get pure air, they can stay healthy. This is possible only if there is continuous flow of pure air in the building. Keeping this fact in sight, it became the principle of Vastu Chakra that the eastern direction and north direction remained the most open and the surface remained lower, in which the Sun’s light and pure air could be continuously received from the beginning of the month. All the instruments of air should be kept in the north east direction of the house like doors, windows, and screen sheets, coolers, ACs, room coolers, verandas, balconies etc.

Sky:

Sky refers to the courtyard in the building. The central part of the plot is considered as the place of Brahma, which is kept open according to the Vastu Chakra. The effects of natural energies from the open sky remain uninterrupted. Keeping the courtyard in the building, the open sky can be found, and the sun’s radiation and the movement of air are also done in a proper manner, so that those who live in the building also benefit. According to Vastu Chakra the building is kept high in the southwest, doing so protects the afternoon sun from the harmful rays and protects against harmful air flowing from the west in the rainy season. The sky is the primacy of the universe in, so one cannot forget its importance even in the building.

Vastu Chakra, वास्तु चक्र

वास्तु चक्र | Vastu Chakra

वास्तु चक्र की वैज्ञानिकता: वास्तु शास्त्र अत्यंत प्राचीन शास्त्र है, इसका जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही वैज्ञानिक महत्व भी है। यह शास्त्र सूक्ष्म अध्ययन और अनुभवों के आधार पर बना है। वास्तु चक्र के नियमों का पालन करने से मनुष्य सुख-शान्ति और सम्पन्नता प्राप्त करता है। इसलिए आज के युग में मनुष्य वास्तुकला की ओर आकर्षित होता जा रहा है।

वास्तु चक्र के नियमों का उपयोग करते समय कई महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा गया है। सूर्य, चन्द्र और वायु से प्राप्त ऊर्जा के अतिरिक्त अन्य ग्रहों द्वारा पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों को भी ध्यान में रखा गया है।

यदि हम नगर को प्राक्रतिक व्यवस्था के अनुकूल बना लें, तो प्राक्रतिक प्रदूषण से स्वयं को बचा सकते है। वास्तु चक्र (Vastu Chakra) के सिद्धान्त भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप बनाए गए है और यह ध्यान रखा गया है, कि प्राक्रतिक स्त्रोतों द्वारा लोक कल्याण हेतु ऊर्जा को समुचित ढंग से ग्रहण करते हुए भवन में इनका उपयोग किस प्रकार किया जा सके। इसीलिए प्राक्रतिक स्त्रोतों से सूक्ष्म से सूक्ष्मतम शक्ति को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करने के लिए ऐसे वास्तु चक्र (Vastu Chakra) के नियमों को बनाया गया है, जिसे सर्वाधिक उपयोग किया जा सके

हमारी पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के ताप से प्रभावित होती है, सौरमण्डल के समस्त ग्रह एक दूसरे को प्रभावित करते ही रहते है और इनसे भूमण्डल भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है। सौरमण्डल की स्थिति पर विचार करें तो ज्ञात होता है कि पृथ्वी से जल 100 गुना अधिक है, जल से अग्नि 100 गुना अधिक है, अग्नि से वायु 100 गुनी है और वायु से आकाश 100 गुना है, जिसके गर्भ में सौरमण्डल स्थित है। सूर्य ताप से ही पृथ्वी पर जीवन व प्रकाश सम्भव हो पा रहा है।

वास्तु चक्र अनुसार चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव:

वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार घर के निर्माण में दिशाओं के निर्धारण में उत्तरी ध्रुव से आने वाली चुम्बकीय तरंगों तथा पूर्व से आने वाली सूर्य रश्मियों से लाभ उठाने का विचार निहित है। वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार में भवन का निर्माण इस प्रकार किया जाता है, कि इन चुम्बकीय तरंगों और सूर्य रश्मियों के प्रवाह में कोई बाधा न आए।
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वास्तु चक्र अनुसार यह स्पष्ट है कि मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव से प्रवाहित होने वाली चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव पड़ता है। इसी तरह पूर्व से उदित सूर्य की प्रात: कालीन रश्मियों में समाहित ऊर्जा जो अल्ट्रा वायलेट किरणों के माध्यम से हमारे मन, मस्तिष्क एवं शरीर को प्रभावित करके आवश्यक ऊर्जा, विटामिन डी एवं ए को पहुंचाती है। भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग ऊँचा होने के कारण सूर्य की इन्फ्रारेड व कास्मिक किरणों से रक्षा होती है।

वास्तु चक्र में पंच तत्वों की महत्वता:

भूमि :

वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार भूमि में कोणों, ढलाव, मार्गो, दिशाओं आदि पर विशेष ध्यान रखा जाता है। भूमि दक्षिण पश्चिम की ओर ऊँची होनी चाहिए। पूर्व से पश्चिम की ओर लम्बा भवन सूर्य वेधी होता है और उत्तर दक्षिण में लम्बा भवन चन्द्र वेधी होता है। चन्द्र वेधी भवन शुभ और धनकारक होता है। बाग़ बगीचे हेतु सूर्य वेधी और चन्द्र वेधी दोनों भवन उपयुक्त माने गए है। देवालय निर्माण में सूर्य और चन्द्रवेध का विचार नहीं किया जाता है।

जल :

जल के विषय में यह ध्यान रखा जाता है, कि भवन का समस्त जल उत्तर पूर्व दिशा में बहे। कुआं, ट्यूबवेल, स्विमिंग पूल आदि उत्तर पूर्व में रहना चाहिए। स्नानग्रह का जल भी उत्तर पूर्व में जाना चाहिए। वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार उत्तर पूर्व(ईशान) कोण जल के लिए सर्वथा उपयुक्त होता है। शुद्ध साफ़ जल उत्तर पूर्व में और सैप्टिक टैंक और सीवर लाइन का प्रवाह या स्थापना उत्तर पश्चिम में होनी चाहिए।

अग्नि:

वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार अग्नि की दिशा दक्षिण पूर्व(आग्नेय कोण) है। भवन में रसोईघर, अग्नि स्थान, गीजर, विदयुत मीटर आदि इसी कोण में रखने चाहिए। इसका दूसरा विकल्प उत्तर पश्चिम(वायव्य) कोण भी है क्योंकि अग्नि का इस कोण से सीधा सम्पर्क है।

वायु:

वायु की भवन में महत्वता सर्वविदित है क्योंकि इसमें वास करने वाले लोगों का जीवन आधार वायु है। यदि इनको निरंतर शुद्ध वायु मिलती रहे तो वे स्वस्थ रह सकते है। यह तभी सम्भव है जब भवन में निरंतर शुद्ध वायु का प्रवाह होता रहे। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखकर ही वास्तु चक्र (Vastu Chakra) का यह सिद्धांत बना कि पूर्व दिशा एवं उत्तर दिशा का भाग सर्वाधिक खुला रहे तथा सतह नीची रहे जिसमें प्रात: काल से सूर्य का प्रकाश एवं शुद्ध वायु निरंतर प्राप्त होती रहे। घर में उत्तर पूर्व दिशा में वायु के सभी साधन दरवाजों, खिडकियों, रोशनदान, कूलर, ए.सी., रूम कूलर, बरामदा, बालकनी आदि रखने चाहिए।

आकाश:

आकाश का तात्पर्य भवन में आंगन से है। भूखण्ड का मध्य भाग ब्रह्मा का स्थान माना गया है जिसे वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार खुला रखा जाता है। खुले आकाश से नैसर्गिक ऊर्जाओं का प्रभाव निर्बाध रूप से प्राप्त होता रहता है। भवन में आंगन रखने से खुला आकाश तो मिलता ही है और सूर्य की किरणे व हवा का आवागमन भी सम्यक ढंग से होता है, जिससे भवन में वास करने वालों को भी लाभ होता है। वास्तु चक्र (Vastu Chakra) अनुसार दक्षिण पश्चिम में भवन ऊँचा रखा जाता है, ऐसा करने से दोपहर बाद की सूर्य की हानिकारक रश्मियों से रक्षा होती है और वर्षा ऋतु में पश्चिम की ओर से प्रवाहित होने वाली हानिकारक वायु से भी रक्षा होती है। जिस प्रकार ब्रह्मांड में आकाश तत्व की प्रधानता है उसी प्रकार भवन में भी इसकी महत्वता को विस्मृत नहीं कर सकते है।