Vastu Entrance Gate, वास्तु मुख्य द्वार

Vastu Entrance Gate | वास्तु मुख्य द्वार

Vastu Entrance Gate (वास्तु मुख्य द्वार): The main door is the prime section of a building. Establishing the main door is too important for the owner According to Vastu Entrance Gate placing the main door should be according to the sun sign of the owner.

In the ancient texts it was mentioned that placing of the main door of the house must be according to the horoscope and Zodiac sign of the owner. According to ancient text Jyotinirbhandh, Vaasturajvallabh, and Brahadddewaggyarajjan the direction of main door (Vastu Entrance Gate) for the zodiac sign Aries etc are as follows:

Vastu Entrance Gate Jyotinirbhandh: According to Vastu Entrance Gate the persons having Zodiac sign Cancer, Scorpio, Pisces should construct the main door in the east direction, and Libra, Aquarius, Taurus in the west direction, Leo Aries and Sagittarius should set house gate in the north direction.

Vastu Entrance Gate Vaasturajaywalabhkot: For the people with Zodiac sign Scorpio, Pisces, and Leo to make the door in the east direction, Capricorn, Virgo and cancer to the south direction, Libra, Gemini, Sagittarius in the west direction, and Taurus and Aries to the north direction are auspicious.

Vastu Entrance Gate Bhraddewagyanrajjn: The persons with the Zodiac sign Cancer, Scorpio, Pisces should put their main gate towards the east direction, Taurus Virgo and Capricorn in the south direction, Gemini, Libra and the Aquarius in the west, Aries, Leo, Sagittarius in the north direction.

Many options are available in the scriptures, but directed by Bhraddewagyanrajjn distinction is considered acceptable by all, as stated in Vastupradeep to confirm –

Syaatpraanmukhan braamhanaraashisadabh chodangamukhan kshatriyaraashikaanaam.
Vaishyasy gyeyan yamadingamukhan hi shoodraabhidhaanaamarth pashchimaasyam

As stated in a voluminous evidence, that main door (Vastu Entrance Gate) should not be in the middle of the main entrance building, it should be on the left of the center line of the building, to determine right status of the building, it is divided into 9 equal width, thereafter leaving 5 parts in the left and 3 parts to the right, the doors are to be constructed which is considered auspicious.

Note: (The right and left side should be determined while coming out of the house.)

Navagraha plot method, i.e., the width of the front portion to be divided in 9 equal parts respectively and from the first part from the left side the position of the Sun, Moon, planets, etc., are set accordingly.

Roads:

Surya Chandra Mangal Budh Guru Shukar Shani Rahu

Ketu

Plot:

The region of the planet wherein the main door (Vastu Entrance Gate) is built, the effect of the planetary impacts on the members of the house can be are ominous Vastu Entrance Gate. For the main door the region of mercury, Jupiter, Venus is auspicious, the region of Sun, Moon, Saturn, Mars, Dragon head and Dragon tail is considered disposable.

In the 81 squares of Parmshayikam, there are 45 idols of god is established. Out of these in the outer region there are 32 sections wherein 32 idols of god are located. The main doors (Vastu Entrance Gate) under the influence of these idols have different kinds of effects which are stated hereunder:

Praising Padmashayaikam:

East Direction:

Anilabhayaṁ Strījananaṁ Prabhūtadhanatā Narēndravāllabhyama.
Krōdhaparatānr̥tatvaṁ krōrya chaurya cha pūrvēṇa..

  • Shikhi: Fixing door on this plot, will cause the fear of fire and suffers from agony.
  • Parjanya: Door on this plot will lead to face the poverty and cause the birth of many
  • Jayant:: Constructing door on this plot will make source of earning.
  • Indra: One gains respect and power by building main door on this plot.
  • Surya: Building door on this plot can make greater source of money but also face plethora of problems.
  • Satya:: Making the doors in this plot will force to face the problem of theft, birth of many girls and false commitments will be there.
  • Bhrash: Loss and brutality occurs if door is made on this plot.
  • Vyom: Fears from theft will remain if the door (Vastu Entrance Gate) made in this direction.

South Direction:

Alpasutatvan Preshyan Neechatvan Bhakshyapaanasutavrddhi
Raudran Krtaghnamaghanan Sutaveeryadhnan Ch Yaamyen..

  • Anil: One can face the problem of loss of son or death of son if one build main entrance in this plot
  • Pusha: Misunderstanding occurs between the loved one if one builds main entrance in this plot
  • Vilath: Obsequiousness and fear increases if one build main entrance in this plot
  • Som: Increase in profit and sons if one build main entrance (Vastu Entrance Gate) in this plot
  • Yum: No peace and happiness if one build main entrance (Vastu Entrance Gate)in this plot
  • Gandharv: Rise to fame, fearlessness but ingratitude increases if one build main entrance in this plot
  • Bhringraj: Face poverty ,fear of thieves if one build main entrance in this plot
  • Mrig: Son has a fear of disease if one builds main entrance in this plot.

Vastu Entrance Gate.वास्तु मुख्य द्वार

वास्तु मुख्य द्वार | Vastu Entrance Gate

वास्तु मुख्य द्वार: वास्तु मुख्य द्वार (Vastu Entrance Gate) का एक अति मुख्य भाग होता है। इसकी स्थापना का निर्णय स्वामी के लिए महत्वपूर्ण होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार मुख्य द्वारा की स्थिति घर के स्वामी की राशि के अनुसार होनी चाहिए।

प्राचीन ग्रन्थों में अलग-अलग राशि के जातकों के अनुसार वास्तु मुख्य द्वार  की दिशा के बारे में निर्देशित किया गया है। प्राचीन ग्रन्थ “ज्योतिर्निबन्ध, वास्तुराजवल्लभ एवं ब्रहददैवज्ञरज्जन” के मतानुसार मेषादि राशियों के जातकों के लिए द्वार की दिशा निम्न प्रकार है –

ज्योर्तिर्निबन्धोक्त: इसके अनुसार कर्क, वृश्चिक और मीन राशि वालों के लिए पूर्व दिशा में तथा तुला, कुम्भ व वृष राशि वालों के लिए पश्चिम दिशा में एवं मेष, सिंह व धनु राशि वालों के लिए उत्तर दिशा में घर का मुख्य द्वार बनाना उत्तम होता है।

वास्तुराजवल्लभोक्त: वृश्चिक, मीन और सिंह राशि वालों के लिए पूर्व दिशा और कन्या, कर्क व मकर राशि वालों के लिए दक्षिण दिशा में तथा धनु, तुला, मिथुन राशि वालों के लिए पश्चिम दिशा में और कुंभ, वृष तथा मेष राशि वालों के लिए उत्तर दिशा में मकान का द्वार बनाना श्रेष्ठ होता है। वास्तु मुख्य द्वार

ब्रहददैवज्ञरज्जन: कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वालों को पूर्व दिशा में, वृष, कन्या व मकर वालों को दक्षिण दिशा में, मिथुन, तुला व कुम्भ राशि वालों को पश्चिम दिशा में, मेष, सिंह व धनु राशि वालों के लिए उत्तर दिशा में घर का द्वार बनाना उत्तम होता है। वास्तु मुख्य द्वार

कई विकल्प शास्त्रों में उपलब्ध है, परन्तु ब्रहददैवज्ञरज्जन द्वारा निर्देशित भेद सर्वमान्य माना जाता है, इसकी पुष्टि के लिए वास्तु (Vastu Entrance Gate) प्रदीप में कहा गया है –

स्यात्प्रान्मुखं ब्राम्हणराशिसदभ चोदंगमुखं क्षत्रियराशिकानाम।
वैश्यस्य ज्ञेयं यमदिंगमुखं हि शूद्राभिधानामर्थ पश्चिमास्यम ।।

एक स्थूल प्रमाण के रूप में कहा गया है, कि मुख्य द्वार (Vastu Entrance Gate) भवन के मध्य में नहीं होना चाहिए। यह भवन की मध्य रेखा के बाईं तरफ होना चाहिए। इसकी सही स्थिति ज्ञात करने के लिए भवन की चौडाई को 9 बराबर हिस्सों में बांटा जाता है फिर दायीं तरफ से 5 भाग एवं बाईं तरफ से 3 भाग छोड़कर अर्थात बाईं तरफ से चौथे भाग में द्वार स्थापना शुभ मानी जाती है। वास्तु मुख्य द्वार

नोट: (दायाँ और बायाँ भाग उसको मानना चाहिए, जो घर से बाहर निकलते समय हो।)

नवग्रह विधि भूखण्ड के सामने वाले भाग अर्थात चौडाई को 9 समान भागों में विभक्त करके बाईं ओर से प्रथम भाग में क्रमशः सूर्य, चन्द्र इत्यादि ग्रहों की स्थिति मानी गई है।

सडक:

सूर्य चन्द्र मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि राहु केतु

भूखण्ड

जिस ग्रह के क्षेत्र में मुख्य द्वार (Vastu Entrance Gate) बनाया जाएगा उस क्षेत्र का घर, भवन में रहने वालों पर, अपने स्वभाव के अनुसार शुभ, अशुभ प्रभाव डालता है। मुख्य द्वार के लिए बुद्ध, गुरु, शुक्र, क्षेत्र उत्तम व सूर्य, चन्द्र, मंगल, शनि, राहु व केतु के क्षेत्र त्याज्य माने जाते है।

81 वर्गों वाले परमशायिकम पद विन्यास पर कुल 45 देवता स्थित होते है इनमें से बाहरी सीमा पर 32 वर्गो में 32 देवता स्थित है। इन देवताओं के वर्गो पर मुख्य द्वार की स्थिति के भिन्न भिन्न फल कहे गए है जो निम्न प्रकार है।

पदमशायिकम पद विन्यास:

पूर्व दिशा:

  • शिखि – इस वर्ग पर मुख्य द्वार बनाने से दुःख एवं अग्नि से भय होता है।
  • पर्जन्य – इस वर्ग पर द्वार बनाने से कन्या रत्न में वृद्धि एवं निर्धनता होती है।
  • जयंत – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धनागम होता है।
  • इंद्र – इस वर्ग पर द्वार बनाने से राज सम्मान में वृद्धि एवं यश प्राप्ति होती है।
  • सूर्य – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धन प्राप्ति परन्तु क्रोध की अधिकता रहती है।
  • सत्य – इस वर्ग पर द्वार बनाने से चोरी, कन्याओं की वृद्धि एवं असत्य भाषण की अधिकता होती है।
  • भ्रश – इस वर्ग पर द्वार बनाने से पुत्र हानि व क्रूरता उत्पन्न होती है।
  • व्योम – इस वर्ग पर द्वार बनाने से चोरी का भय होता है।

दक्षिण दिशा:

  • अनिल – इस वर्ग पर द्वार बनाने से पुत्र सन्तान में कमी तथा मृत्यु होती है।
  • पूषा – इस वर्ग पर द्वार बनाने से दासत्व व बंधन की प्राप्ति होती है।
  • वितथ – इस वर्ग पर द्वार बनाने से नीचता एवं भय की वृद्धि होती है।
  • सोम – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धन एवं पुत्र लाभ होता है।
  • यम – इस वर्ग पर द्वार बनाने से अशांति होती है।
  • गन्धर्व – इस वर्ग पर द्वार बनाने से यश वृद्धि, निर्भयता परन्तु कृतघ्नता बढती है।
  • भृंगराज – इस वर्ग पर द्वार बनाने से निर्धनता, चोर भय होता है।
  • मृग – इस वर्ग पर द्वार बनाने से पुत्र नाश एवं रोग भय होता है।

पश्चिम दिशा:

  • पितर – इस वर्ग पर द्वार बनाने से पुत्रक्षय, निर्धनता एवं शत्रुओं से भय होता है।
  • द्वारपाल – इस वर्ग पर द्वार बनाने से भार्या दुःख तथा भय होता है।
  • सुग्रीव – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धन वृद्धि होती है।
  • पुष्पदन्त – इस वर्ग पर द्वार बनाने से पुत्र तथा धन की वृद्धि होती है।
  • वरुण – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धन तथा सौभाग्य की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।
  • असुर – इस वर्ग पर द्वार बनाने से राजभय तथा मानसिक संताप होता है।
  • शोष – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धन का नाश एवं दुखों की प्राप्ति होती है।
  • पापयक्ष्मा – इस वर्ग पर द्वार बनाने से रोग भय एवं मन का उच्चाटन होता है।

उत्तर दिशा:

  • रोग – इस वर्ग पर द्वार बनाने से मृत्यु, बंधन, स्त्रिहानि एवं निर्धनता होती है।
  • नाग – इस वर्ग पर द्वार बनाने से शत्रुवृद्धि निर्बलता एवं भय होता है।
  • मुख्य – इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्र धनादि लाभ होता है।
  • भल्लाट – इस स्थान पर द्वार बनाने से धन धान्य तथा सम्पत्ति की वृद्धि होती है।
  • सोम – इस स्थान पर द्वार बनाने से पुत्र, धनागम एवं सर्वसमृद्धि होती है।
  • मृग – इस वर्ग पर द्वार बनाने से शत्रुभय तथा राजभय होता है।
  • अदिति – इस वर्ग पर द्वार बनाने से कुल की स्त्रियों में दोष, शत्रुभय एवं मानसिक अशांति होती है।
  • दिति – इस वर्ग पर द्वार बनाने से धनलाभ एवं सर्व समृद्धि में रुकावट होती है।

मुख्य द्वारों के अन्य भेद इस प्रकार है:

सव्य द्वार – प्रथम द्वार से प्रवेश के बाद भीतरी द्वार यदि दायीं तरफ पड़े तो उसे सव्य द्वार कहते है। ऐसे द्वार से सुख, धन – धान्य एवं पुत्र पौत्रादि व सर्वसमृद्धि होती है।

अपसव्य द्वार – यदि प्रथम द्वार से प्रवेश के उपरोक्त भीतरी द्वार यदि बाईं तरफ स्थित हो तो द्वार को अपसव्य द्वार कहते है। अपसव्य द्वार से धन की कमी बन्धु बांधवों की कमी, स्त्री की दासता तथा रोग वृद्धि होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार वामावर्त द्वारा सदा विनाशकारक और स्वयं सदा कल्याणकारक होता है।

मुख्य द्वार की चौखट – मुख्य द्वार की चौखट की स्थापना के लिए तिथि के अनुसार फल निम्न प्रकार है –

पंचमी तिथि में द्वार स्थापना करने से धन लाभ, इसके अतिरिक्त सप्तमी, अष्टमी नवमी तिथियाँ भी शुभ होती है। प्रतिपदा तिथि को द्वार स्थापना करने से दुःख की प्राप्ति होती है। अत: यह वर्जित है। तृतीया में रोग, चतुर्थी में भय, षष्ठी में कुलनाश, दशमी में धननाश और पूर्णिमा, अमावस्या वैर कारक होती है।

भवेत्पूषणी मैत्रपुष्ये च शाक्रे करे दसचित्राऽनिले चादितौ च ।
गुरुश्चन्द्रशुक्रार्कसौम्ये च वारे तिथौ नन्दपूर्णाजया द्वारशारंखा।।

रेवती, अनुराधा, पुष्य, ज्येष्ठा, हस्त, अश्विनी, चित्रा, स्वाति और पुर्नवसु नक्षत्र, रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्रवार तथा नंदा, जया व पूर्णा तिथियाँ द्वार स्थापना में शुभ होती है।

मेष, सिंह, धनु राशि वालों के लिए उत्तर दिशा। वृष, कन्या, मकर राशि वालों के लिए दक्षिण दिशा। मिथुन, तुला, कुम्भ राशि वाले जातकों के लिए पश्चिम दिशा। कर्क व मीन राशि वालों के लिए पूर्व दिशा में द्वार बनाना शुभ होता है।

दिशाओं के आधार पर स्थापित मुख्य द्वार का फल इस प्रकार है:

पूर्व – इस दिशा में स्थित द्वार विजय द्वार कहलाता है। यह सर्वत्र विजय करने वाला सुखदायक एवं शुभफल देने वाला होता है।

दक्षिण – इस दिशा में स्थित द्वार ‘यमद्वार’ कहलाता है। जो संघर्ष कराने वाला तथा स्त्रियों के लिए दुखदायी होता है।

पश्चिम – इस दिशा में स्थित द्वार मकर द्वार कहलाता है। जो आलस्यप्रद तथा विशेष प्रयत्न करने पर सिद्ध देने वाला है।

उत्तर – इस दिशा में स्थित द्वार ‘कुबेर द्वार’ कहलाता है। जो सर्व समृद्धि एवं सुख देने वाला होता है।

द्वार की ऊँचाई, चौडाई से दोगनी से अधिक होनी चाहिए।

मार्ग, वृक्ष, कूप, स्तम्भ से वेध युक्त द्वार अशुभ होता है किन्तु द्वार की ऊँचाई से दोगुनी दूरी पर ये सब हो तो उक्त दोष नहीं होते है।

दरवाजा यदि अपने आप खुलता हो तो ‘उन्माद’ रोग होता है। स्वयं बंद होता हो तो कुल नाश, प्रमाण से अधिक हो तो राजभय, प्रमाण से कम हो तो चोर भय व शारीरिक कष्ट होता है। द्वार के ऊपर द्वार (Vastu Entrance Gate) शुभ नहीं होता है। द्वार का झुकाव घर के अंदर की तरफ हो तो ग्रहस्वामी का मरण होता है। यदि बाहर की तरफ झुकाव हो तो प्रदेश में निवास करता है।

वायव्य दिशा में द्वार वाले घर में, ग्रह्स्वामी बहुत कम ही रह पाते है एवं दक्षिण दिशा वाले मकान अधिक बेचे जाते है।

द्वार सरलता से खुलना चाहिए। द्वार खुलने पर कर्कश ध्वनि ग्रह्स्वामी के लिए शुभ नहीं होती है। द्वार के कपाट आपस में टकराने नहीं चाहिए। टकराने वाले द्वार  पारिवारिक झगड़े का कारण बन सकते है।

मुख्य द्वार को छोड़कर भवन में द्वारों की संख्या सम होनी चाहिए। विषम संख्या अशुभ होती है। साथ ही उनकी कुल संख्या 10, 20, 30 नहीं होनी चाहिए।

द्वारस्योपरि यद द्वारं द्वारं द्वारस्य सम्मुखं ।
न कार्य व्ययदं यच्च संकटं तद्दरिद्रकृत ।।

अर्थात् द्वार के ऊपर द्वार और द्वार के सामने द्वार व्यय कराने वाला और दरिद्रता देने वाला होता है।

मुख्य द्वार सज्जा: मुख्य प्रवेश द्वार पर निम्न प्रतीक स्थापित करना शुभ होता है।

  • कुल देवता की मूर्ति
  • द्वार के दोनों तरफ पहरेदार
  • शंख व पद्द्निधि
  • गाय बछड़ा
  • लक्ष्मी जी
  • कमल के आसन पर शुभ आठ प्रतीकों की माला अष्टमंगल
  • गणेश जी की मूर्ति
  • काले घोड़े की नाल