Vastu Purusha, वास्तु पुरुष

Vastu Purusha | वास्तु पुरुष

Vastu Purusha (वास्तु पुरुष): Vastu Shasta’s life is said to be “Vastu Purusha”. The house is built on the basis of this. According to legend, there was a fierce battle between Andhakasur Demon and Lord Shankar in ancient times; In this war, a few drops of sweat from Shiva’s body fell to the ground, from that point a zombie-headed creature was born.

The creature took the blood of Andhakasur but even when he was not satisfied, he began to perform austerity before Lord Shankar, being pleased with his austerity, God told him that whatever you wish, ask for it, that creature asked for That I want to be able to grab all the three worlds, after receiving the boon, he stopped the earth from his huge body and fell on the earth, then the fearful all the gods pushed him down and stamped there. The god whom he pressed on, gave birth to the same part of the god. Due to the residence of all the deities, Brahma ji named it Vastu Purusha.

“Vastu Purusha Namasteastha Bhatsari Bharat Prabhu, Madagharha Dhanadiya Dasamrithan Kuru”

Vastu Purusha is a form of ancient Vedic deity named Vaasthosapati. In the Rig Veda he is addressed as Prajapati, Som, Agni, Dhata and Grahapati. All of these Vasu Dev has been given the position of Dev, the head of Vastu Mandal.

Vastu Purusha Board the directions are as follows:

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According to Vastu Purusha the significance of Direction:

Directions and details of the principal elements of twelve different sign are as follows:

Zodiac Sign Directions Principal of Elements
Aries East Fire
Taurus South Earth
Gemini West Air
Cancer North Water
Leo East Fire
Virgo South Earth
Libra West Air
Scorpio North Water
Sagittarius East Fire
Capricorn South Earth
Aquarius West Air
Pisces North Water

The east direction of the Vastu Purusha – the lord of this direction is Indra Deity. Sun also emerges in this direction. Openness in this direction is helpful in the long life of the head of the family.

The south direction of the Vastu Purusha– the lord of this direction is Yama and Mangal is the lord. If there is Vastu creation then this direction has success, happiness and peace.

The west direction of the Vastu Purusha–   Varuna is the lord of this direction and according to astrology of this direction; Shani is the dean of this direction. This direction has a great success and fortune.

The north direction of Vastu Purusha– the lord of this direction is Kuber Deity who is the god of wealth and prosperity. Mercury is the governor of this direction. Openness in the north has wealth richness factor.

The North-East direction of the Vastu Purusha– this is a watery area. Its lord is Shiva. There should not be any construction work in this direction. In this direction, wells or water caps give good results. This part of the house should be clean. Dev Guru Brahaspati is the dean of this direction.

The South-East direction of the Vastu Purusha– the lord of this direction is fire and Venus is the dean of this direction. This direction is appropriate for the kitchen. This part is architecturally good, then it is a provider of good health.

Southwest direction of Vastu Purusha– the owner of this direction is Southwest and the Deity Rahu / Ketu. This direction is suitable for proper and elevated water tank for heavy construction works.

The northwestern direction of the Vastu Purusha: Lord Vayu Dev and the moon dean of this Vastu Purusha direction. This part is the cause of friends’ relations. If construction is done in this direction, then there is no shortage of good friends.

Vastu Purusha, वास्तु पुरुष

वास्तु पुरुष | Vastu Purusha

वास्तु पुरुष (Vastu Purusha): वास्तु शास्त्र के प्राण को “वास्तु पुरुष” कहा गया है। इसके आधार पर ही घर का निर्माण किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अन्धकासुर दैत्येवं भगवान शंकर के बीच भयंकर युद्ध हुआ, इस युद्ध में शिवजी के शरीर से पसीने की कुछ बूंदे भूमि पर गिरी, उस बिंदु से एक विकराल मुख वाला प्राणी पैदा हुआ।

उस प्राणी ने अन्धकासुर के रक्त को ग्रहण कर लिया फिर भी जब वह तृप्त नहीं हुआ तब भगवान् शंकर के सम्मुख घोर तपस्या करने लगा, उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उससे कहा कि तुम्हारी जो कामना हो, वर मांगो, उस प्राणी ने वर मांगा कि मैं तीनो लोकों को ग्रसने में समर्थ होना चाहता हूँ, वर प्राप्त करने के उपरान्त वह अपने विशाल शरीर से लोकों को अवरुद्ध करते हुए पृथ्वी पर आ गिरा तब भयभीत सभी देवताओं ने उसको अधोमुख करके वहीं स्तम्भित कर दिया, जिस देवता ने उसको जहां दबाया था वह देवता उसके उसी अंग पर निवास करने लगे। सभी देवताओं के निवास करने के कारण ब्रह्मा जी ने इसका नाम वास्तु पुरुष रखा।

“वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु भूशय्याभिरत प्रभो। मदग्रहं धनधान्यदिसमृद्धं कुरु सर्वदा”

वास्तु पुरुष (Vastu Purusha) वास्तोष्पति नामक प्राचीन वैदिक देवता का ही रूप है। ऋग्वेद में प्रजापति, सोम, अग्नि, धाता, ग्रहपति के रूप में सम्बोधित है। ये सभी वसु देव वास्तु मण्डल के प्रधान पद देव को स्थान दिया गया है।

वास्तु मण्डल में दिशाओं की स्थिति निम्न प्रकार है:

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वास्तु पुरुष अनुसार दिशा का महत्व:

मेषादि बारह विभिन्न राशियों की दिशाएँ एवं प्रधान तत्वों का विवरण निम्न प्रकार है –

राशि

दिशा प्रधान तत्व
मेष पूर्व अग्नि
वृष दक्षिण पृथ्वी
मिथुन पश्चिम वायु
कर्क उत्तर जल
सिंह पूर्व अग्नि
कन्या दक्षिण पृथ्वी
तुला पश्चिम वायु
वृश्चिक उत्तर जल
धनु पूर्व अग्नि
मकर दक्षिण पृथ्वी
कुम्भ पश्चिम वायु
मीन उत्तर जल

वास्तु पुरुष की दक्षिण दिशा  इस दिशा का स्वामी यम व मंगल अधिष्ठाता है। यदि वास्तु सम्मत निर्माण हो तो यह दिशा सफलता, प्रसन्नता व शान्तिकारक है।

वास्तु पुरुष की पश्चिम दिशा  इस दिशा का स्वामी वरुण व ज्योतिषानुसार शनि इस दिशा के अधिष्ठाता है। यह दिशा सफलता प्रसिद्धि देने वाली व भाग्यकारक है।

वास्तु पुरुष की उत्तर दिशा  इस दिशा के स्वामी कुबेर देवता है जो धन एवं समृद्धि के देवता है। बुध इस दिशा का अधिष्ठाता है। उत्तर दिशा में खुलापन धन समृद्धि कारक है।

वास्तु पुरुष की ईशान दिशा  यह एक जल क्षेत्र है। इसके स्वामी शिव है। इस दिशा में कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। इस दिशा में कुआं या जलकूप अच्छे परिणाम देता है। घर का यह भाग स्वच्छ रहना चाहिए। देव गुरु ब्रहस्पति इस दिशा के अधिष्ठाता है।

वास्तु पुरुष की आग्नेय दिशा  इस दिशा का स्वामी अग्नि है व शुक्र इस दिशा के अधिष्ठाता है। रसोई के लिए यह दिशा उपयुक्त है यह भाग वास्तु सम्मत है तो अच्छे स्वास्थ्य का प्रदाता है।

वास्तु पुरुष की नैऋत्य दिशा इस दिशा के स्वामी नैऋत्य व अधिष्ठाता राहु/केतु है। यह दिशा भारी निर्माण कार्यो के लिए उचित एवं उच्चीकृत पानी की टंकी के लिए उपयुक्त है।

वास्तु पुरुष की वायव्य दिशा  इस दिशा के स्वामी वायुदेव व चन्द्रमा अधिष्ठाता है। यह भाग मित्रों सम्बन्धों का कारक है। यदि इस दिशा में निर्माण वास्तु अनुसार हो तो अच्छे मित्रों की कमी नहीं रहती है।

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